बेटो के बीच मे गिरे है रिश्तो के मायनेकैसे कहूँ कि इस झगड़े की वजह मे नही हूँ |कुछ और दिन रुक कर बाट लेना ये ज़मींमाना मै मर रहा हूँ, लेकिन मरा नही हूँ ||
@@@@ अपने हुनर को तराश इतना @@@@****************************************************अपने हुनर को तराश इतना ,कि तूदुनिया का सरताज हो जाये |हर ताज रहे तेरी ठोकर में ,और तू बादशाह बेताजहो जाये||अपने इल्म को निखार इतना, कि हर नजर दीदारको बेताब हो जाये |छू ले तू हर बुलन्दी को , और सच्चे तेरे ख्वाबहो जाये
कुछ खोई खोई अपने सपनों मेंअपनी मुश्कान मेंअपने ही ख्यालों में अनजानी सी ....आवाज में वह नमी हैऔर पहचान भर बातेंदूर से छूती है दिल कोऔर लहराते बालो कोसँभालते गुजर जाती है अपनी एक अंजान पहचान छोड़करकोई नाम नहींकोई अनाम भी नहींकुछ सुहाने लम्हों को छोड़जाती है वह .....
कभी हाथों से से मिट्टी को तरासते,तो कभी पत्थरों को नए रूप में गढ़ते,कभी रंगों से कागज पर नयी दुनिया बसाते,या फिर मधुर संगीत की लहरी में हमें डुबाते,हैं तो वो आम हम सब के जैसे, पर लगें हम सबसेभिन्न हैं
टिमटिमाते तारे की रोशनी में मैंने भी एक सपना देखा है । टुटे हुए तारे को गिरते देखकर मैंने भी एक सपना देखा है । सोचता हूं मन ही मन कभी काश ! कोई ऐसा रंग होता जिसे तन-बदन में लगाकर सपनों के रंग में रंग जाता । बाहरी रंग के संसर्ग पाकर मन भी वैसा रंगीन हो जाता । सपनों से जुड़ी है उम्मीदे
गुस्ताख़ रही मेरी नज़रेंतो शिकायत आपको रही / भला आपके हुस्न के फिदरत कि शिकायत हमने की है कभी/ कि बड़ी तल्क है आपकी नज़रें गिरती हैं शोले बनकर और दिल कहता है शिकायत नहीं हो
मध्यप्रदेशऔरछत्तीसगढ़मेंबाढसेतबाहीमुख्यमंत्री ने अफसरों के साथ समीक्षा की उत्तर प्रदेश में सभी नदियों का जलस्तर बढ़ा मुख्यमंत्री और उनके चाचा एक मंच पर दिखे प्रधानमंत्री पाक अधिकृत कश्मीर पर चिंतित उम्र ने अपना घर संभालने की नसीहत दीदिल्ली का मुख्यमंत्री जनमत संग्रह कराएगाप्रधानमन्त्री को भी काम करना
@@@@@@ इन्सान @@@@@@*********************************************सृष्टि का सबसे विचित्र , प्राणी है इन्सान |जीता है वो जिन्दगी,दिखा कर झूठी शान ||नहीं जी पाता वो कभी,सीधी सहज जिन्दगी |झूठ और कपट की ,करता उम्र भर बन्दगी ||बड़ा होना चाहता बचपन में, पचपन में चाहता फिर बचपन |अजीब है इन्सान की फितरत,जिन्द
हर मोड़ पर मिलते है यहाँ चाँद से चेहरेपहले की तरह क्यो दिल को नही भाते ||बड़ी मुद्दतो बाद लौटे हो वतन तुम आजपर अपनो के लिए कुछ आस नही लाते ||काटो मे खेल कर जिनका जीवन गुज़राफूलो के बिस्तर उन्हे अब रास नही आते||किसान, चातक, प्यासो आसमा देखना छोड़ोबादल भी आजकल कुछ खास नही आते ||
सखी री मोरे पिया कौन विरमाये? कर कर सबहिं जतन मैं हारी, अँखियन दीप जलाये, सखी री मोरे पिया कौन विरमाये... अब की कह कें बीतीं अरसें, केहिं कों जे लागी बरसें, मो सों कहते संग न छुरियो, आप ही भये पराये, सखी री मोरे पिया कौन विरमाये... गाँव की
@@@@@ बो विश्वगुरु भारत देश कठे @@@@@ ******************************************************* मानवता है धर्म जकारो ,बे मिनख भलेरा आज कठे | भ्रष्टाचार ने रोक सके , इसो भलेरो राज कठे || पति रो दुखड़ो बाँट सके ,बा सती सुहागण नार कठे| घर ने सरग बणा सके ,बा लुगाई पाणीदार क
@@@@ कथित आधी घरवाली @@@@ ****************************************** उससे है रिश्ता ऐसा जो बोलचाल में गाली है | नाम है गुड्डन उसका,वो मेरी प्यारी साली है || शालीनता की प्रतिमूर्ति,वो नजर मुझको आती है | शर्म के मारे वो साली मेरी,छुईमुई बन जाती है || जब कभी किसी बात पर,वो म
@@@@@@@ दृष्टि का भेद @@@@@@@ ******************************************************** नहीं समझ पाया कोई मुझ को,मेरे व्यवहार-विचारों से | गहराई नदी की कैसे नपती , भला उसके दो किनारों से || किसी ने तुलना की हिटलर से,किसी ने महात्मा गान्धी से| ज्वालामुखी लगता हूँ उनको ,जो ड
ना शिकायत मुझे तुमसे है, ना ही समय से, ना किसी और सेबस है तो अपने आप से हर बार हार जाती हूँ तुम से तो झगड़ती हूँ मन से रूठकर मौन के एक कोने में डालकर आराम कुर्सीझूलती रहती अपनी ही मैं के साथ !... कभी खल़ल डालने के वास्ते आती हैं हिचकियाँ लम्बी-लम्बी गटगट् कर पी लेत
अपने शहर से दूर हूँ, पर कभी-२ जब घर वापस जाता हूँ तो बहाना बनाकर तेरी गली से गुज़रता हूँ मै रुक जाता हूँ उसी पुराने जर्जर खंबे के पास जहाँ कभी घंटो खड़े हो कर उपर देखा करता था गली तो वैसी ही है सड़क भी सकरी सी उबड़ खाबड़ है दूर से लगता नही कि यहाँ कुछ भी बदला है पर पहले जैसी खुशी नही वो
पढ़-लिख कर वे हो गए, देशप्रेम से दूर।ऐसी शिक्षा व्यर्थ है, जो कर देती क्रूर।आज़ादी का अर्थ है, निर्भययुक्त उड़ान।जीने का हक भी मिले, सबको एक समान।।शब्द नहीं है स्वतंत्रता, है यह एक विचार।लोकतंत्र की आत्मा, जीवन का आधार।आज़ादी हमको मिली, हो गए सत्तर साल इसको बेहतर नित करें, देश बने खुशहाल।आज़ादी मतलब यही
तुम कितनी शांत हो गयी हो अब ,बीरान सी भी .वो बावली बौराई सरफिरीलड़की कहाँ छुपी है रे ? जानती हो , कितनी गहरी अँधेरी खाइयों मेंधकेल दी जाती सी महसूसती हूँ खुद कोजब तुम्हारे उस रूप को करती हूँ याद . क्यों बिगड़ती हो यूँ ?जानती हो न ,तु
पसीने से अमोल मोती देखे हैं कहीं ?कल देखा उन मोतियों को मैंनेबेज़ार ढुलकते लुढ़कतेमुन्नार की चाय की चुस्कियों का स्वादऔर इन नमकीन जज़्बातों का स्वादक्या कहा ....बकवास करती हूँ मैं !कोई तुलना है इनकी ! सड़कों पर अपने इन मोतियों की कीमतमेहनतकशी की इज़्ज़त ही तो मांगी है इन्होंनेसखियों की गोद में एक झपकी ले
अंग्रेज़ीदा लोगों का मौफुसिल टाउन ,और यादों का शहर पुराना सा .कुछ अधूरी नींद का जागा,कुछ ऊंघता कुनमुनाता साशहर मेरा अपना कुछ पुराना सा .हथेलियों के बीच से गुज़रतेफिसलते रेत के झरने सा . कुछ लोग पुराने से ,कुछ छींटे ताज़ी बूंदों केकुछ मंज़र अजूबे सेऔर एक ठिठकती ताकती उत्सुक सी सुबह . सरसरी सवालिया निगाह
बिजली की लुका छुपी के खेल और ..चिलचिल गर्मी से हैरान परेशां हम ..ताकते पीले लाल गोले को और झुंझला जाते , छतरी तानते, आगे बढ़ जाते !पर सर्वव्यापी सूर्यदेव के आगे और कुछ न कर पाते ..!पर शाम आज ,सूरज के सिन्दूरी लाल गोले को देख एक दफे तो दिल 'पिघल' सा गया , सूरज दा के लिए , मन हो गया विकल रोज़ दोपहरी आग