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कविता

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अब वो नमी नहीं रही इन आँखों में शायद दिल की कराह अब,रिसती नही इनके ज़रिये या कि सूख गए छोड़पीछे अपने  नमक और खूनक्यूँ कि अब कलियों बेतहाशा रौंदी जा रही हैं क्यूंकि फूल हमारे जो कल दे इसी बगिया को खुशबू अपनी करते गुलज़ार ,वो हो रहे हैं तार तार क्यूंकि हम सिर्फ गन्दी? और बेहद नीच एक सोच के तले दफ़न हुए जा

अपने गिरेबां में झांकऐ मेरे रहगुजरसाथ चलना है तो चलऐ मेरे हमसफरचाल चलता ही जा तूरात-ओ-दिन दोपहरजीत इंसां की होगीयाद रख ले मगरइल्म तुझको भी हैहै तुझे यह खबरएक झटके में होगाजहां से बदरशांति दूत हैं तोहैं हम जहरबचके रहना जरान रह बेखबर

धुप काफी थी तो मैंनेे दीवारें बना लिए उससे बचने के लिएपहले छत पक्की नहीं थी लेकिन पेड़ था छाँव देने के लिएपेड़ से गिरी टहनियाँ कभी गिर कर घायल भी कर देतीलेकिन मिलने वाली छाँव के बदले वो कुछ नहीं थाबारिश भी बहोत होती थी मगर उसका कुछ एहसास नही होतालेकिन कुछ तूफ़ान आते और उस पेड़ को कमजोर बना देतेपेड़ को कम

चलो कुछ ऐसा कमाया जायेरिश्तों का बोझ ढहाया जायेआईने पर जम गई है धूल जोमिलकर कुछ यूं हटाया जाये#विशाल शुक्ल अक्खड़

चाहने वालो के लिए एक ख्वाब हो गयी  सब कहते है क़ि तू माहताब हो गयी  जबाब तो तेरा पहले भी नही था  पर सुना है क़ि अब और लाजबाब हो गयी||  कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय

याद सिर्फ सफ़र की होती है, मंजिल की नहीं! जानती हो- सुनो न! सुनो न! कहना, सुना देने से ज़्यादा अच्छा लगता है.... बार बार मिलने का बहाना, मिल लेने से ज़्यादा मज़ा देता है. ठीक वैसे ही, जैसे- बारिश के इंतज़ार में, लिखी नज़्म और कविता येँ, खुद, बारिश से ज़्यादा भीगी लगतीं हैं. बिलकुल जैसे- अधखिली कलि और उलझ

प्यार नाम है    प्यार नाम है बरसात मे एक साथ भीग जाने काप्यार नाम है धूप मे एक साथ सुखाने का ||प्यार नाम है समुन्दर को साथ पार करने काप्यार नाम है कश्मकस मे साथ डूबने का||प्यार नाम है दोनो के विचारो के खो जाने काप्यार नाम है दो रूहो के एक हो जाने का||प्यार नाम नही बस एक दूसरे को  चाहने काप्यार नाम ह

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आजकल चर्चा है इसी बात पर की,ज़माना असहिष्णु होता जा रहा है |कोई वापस देता तमगा है,तो कोई घर छोड़ जा रहा है ||मै तो हूँ अचंभित,सब को दिख रही असहिष्णुता,दुम दबा के मुझसे ही,क्यों भगा जा रहा है ||मैंने खोजा सब जगह,खेत-खलिहान, बाग़-बगीचे |अन्दर-बाहर, सड़क और नदी,पर मुझे तो कही दिख ना रहा है ||कही फटा बम,तो

अगर भगवान तुम हमको, कही लड़की बना देतेजहाँ वालों को हम अपने, इशारो पर नचा देते||पहनते पाव मे सेंडल, लगते आँख मे काजलबनाते राहगीरो को, नज़र के तीर से घायल ||मोहल्ले गली वाले, सभी नज़रे गरम करतेहमे कुछ देख कर जीते, हमे कुछ देख कर मरते||हमे जल्दी जगह बस मे, सिनेमा मे टिकट मिलतीकिसी की जान कसम से, हमारी

कितनी शांत सफेद पड़ीचहु ओर बर्फ की है चादरजैसे कि स्वभाव तुम्हाराकरता है अपनो का आदर||जिस हिम-शृंखला पर बैठाकितनी सुंदर ये जननी है|बहुत दिन हाँ बीत गयेबहुत सी बाते तुमसे करनी है||कभी मुझे लूटने आता हैक्यो वीरानो का आगाज़ करेयहाँ दूर-२ तक सूनापनजैसे की तू नाराज़ लगे||एक चिड़िया रहती है यहाँपास पेड़ क

ऐसी मेरी एक बहना हैनन्ही छोटी सी चुलबुल सीघर आँगन मे वो बुलबुल सीफूलो सी जिसकी मुस्कान हैजिसके अस्तित्व से घर मे जान हैउसके बारे मे क्या लिखूवो खुद ही एक पहचान हैमै चरण पदिक हू अगर वो हीरो जड़ा एक गहना हैऐसी मेरी एक .बहना है………..कितनी खुशिया थी उस पल मेजब साथ-२ हम खेला करतेछोटी छोटी सी नाराजीतो कभी

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बहुतो ने गवयी  अपनी जान कोआपकी राह देखतेआजा अबतो बरसआपके न आने सेधरती ओर जिंदगीबंजर सी हो गई  हैआजा अबतो बरसआपकी  बेरुखी नेकितनो की उल्झन बढाईअपनो से बिछडकेकितनो ने मिटा दिया अपने आपकोआजा अबतो बरस जबतक  देखेंगे नलहरते खेत को धरती परन सुकून मिलेगा उनको जन्नत मे भीआजा अबतो बरसबहुतो का उजडा है चमनअबके

लड़की देखन आय रहे, लड़का वाले लोग,दादी के पकवानों का, लगा रहे सब भोग.सबसे पहले केरी के, शरबत की तरावट,पनीर टिक्का चटपटा, दूर करे थकावट.फिर आया मशरूम संग, मटर भरा समोसाथोड़ी देर में दादी ने, परसा मद्रासी डोसा.पेट भरा पर जीभ तो, मांगे थोड़ा और,डिनर में व्यंजनों का, फिर चला इक दौर.भरवां भिंडी संग लगी, मिस्

विज्ञान और धर्म की ऐसी एक पहचान होविज्ञान ही धर्म हो और धर्म ही विज्ञान हो|आतंक हिंसा भेदभाव मिटें इस संसार सेएक नया युग बने रहे जहाँ सब प्यार से||विज्ञान जो है सिमट गया उसकी नयी पहचान होमेरा तो कहना है, कि हर आदमी इंशान हो||हर आदमी पढ़े बढ़े नये-2 अनुसंधान होउन्नति के रास्ते चले, पर सावधान हो||प्या

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तैयार की जाती है औरतें इसी तरह रोज छेदी जाती है उनके सब्र की सिल हथौड़ी से चोट होती है उनके विश्वास पर और छैनी करती है तार – तार उनके आत्मसम्मान को कि तब तैयार होती है औरत पूरी तरह से चाहे जैसे रखो रहेगी पहले थोड़ा विरोध थोडा दर्द जरुर निकलेगा आहिस्ते – आहिस्ते सब गायब और पुनश्च दी जाती है धार क्रूर

बिन तुम्हें बताए, मोहब्बत करते हैं तुमसेबिन तुम्हारा नाम लिए, मोहब्बत करते हैं तुमसेबिन तुम्हें देखे, मोहब्बत करते हैं तुमसेबिन तुम्हारे क़रीब रहकर, मोहब्बत करते हैं तुमसेबिन तुम्हारी आवाज़ सुने, मोहब्बत करते हैं तुमसेबिन तुम्हारी नज़रों में डूबे, मोहब्बत करते हैं तुमसेबिन तुम्हारे दिल में समाए, मोह

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सावन के बादल उमड़ -घुमड़ इतनी करते मन-मयूर नाच उठता कदम हैं थिरकते। धरती का आंचल हर दिशा हरा-भरा कर देते।  कृषक,साहुकार,जन-सामान्य फलते-फूलते। नदी,तालाब,सिंधु,पोखर सब उमगते जीव-जंतु खुशहाल विचरते दिखते। बाल-वृन्द,नौजवान वृद्ध सब विहसते अपनी-अपनी तरह से खूब आनंद लेते। प्रकृति के रंग क्या अदभुत नित सवंर

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