@@@@@@ पपीहा बोले पीहू-पीहू @@@@@@ ********************************************************** जान लिया जीवन का सार ,लोग कहते हैं इसको प्यार | सार बहुत ही गहरा है ,जिस पे हो गये सभी निसार || क्यों बचे फिर मैं और तू ,पपीहा बोले पीहू पीहू | बसन्त की बहारों में,सावन की फुवारों में | गाने वाले गाते गाते
तपिश ज़ज़्बातोंकी मन में,न जाने क्योंबढ़ी जाती ?मैं औरत हूँ तोऔरत हूँ,मग़र अबला कहीजाती ।उजाला घर मे जोकरती,उजालों से हीडरती है ।वह घर के हीउजालों से,न जाने क्योंडरी जाती ?जो नदिया हैपरम् पावन,बुझाती प्यास तनमन की ।समन्दर में मग़रप्यासी,वही नदिया मरीजाती ।इज़्ज़त है जोघर-घर की,वही बेइज़्ज़तहोती है ।
हर साल आने वाली बाढ़ हमारे प्रदेश के नेता लोग के बच्चों के लिए मनोरंजन का एक विलक्षण माध्यम है. प्रस्तुत कविता में एक नेता के बच्चे की मानवीय संवेदना से ओत-प्रोत बालसुलभ लालसा का वर्णन किया गया है. नेताजी के बच्चे की बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में लोकप्रियता बढ़ाने के लिए इस कविता को कक्षा पाँच के पाठ्यक
सुनो ज़रा !जैसे बारिश की बूँदें ढूंढें पता,गरम तपते मैदानों का.जैसे माँ के आने का देता था बता,सुन शोर पायल की आवाज़ों का.वैसे ही गर महसूस कर सको मुझे आज,बग़ल की खाली जगह पर,हर हसने वाली वजह पर,बिन बात हुई किसी जिरह पर.कह दो न,जैसे,तुम ‘झूठमूठ’ का कहते थे,और हम ‘सचमुच’ का मान लेते थे.जैसे,तुम कह देते थे
कौन जाने आग पानी कब तलक, बेवफ़ा ढलती जवानी कब तलक। आज खोलें चाहतों की सीपियाँ,मोतियों की महरबानी कब तलक। रौशनी के पर लगाकर तितलियां, खोजती अपनी निशानी कब तलक हाथ में खंजर उठाकर चल दिये,इस तरह रश्में निभानी कब तलक। टूट जाते हो खिलौनों की तरह,अस्थि पिंजर हैं छुपानी कब तलक। क़ैद से बागी परिं
आपसमें हम रूठ गए जो, हाथ हमारे छूट गए जो । ऐसेमें अब तुम ही बोलो, कौन मनाएगा फिर किसको ।|अहम् तुम्हारा बहुत बड़ा है, मुझमेंभी कुछ मान भरा है । नहींबढ़ेंगे आगे जो हम, कौन भगाएगा इस "मैं" को ।।जीवन पथ है संकरीला सा, ऊबड़खाबड़ और सूना सा । चलेअकेले, कोई आकर राह दिखाएगा फिर किसको ||यों ही रूठे रहे अगर हम,
मै गुमनाम रही, कभी बदनाम रहीमुझसे हमेशा रूठी रही शोहरत,तुम्हारी पहली पसंद थी मैफिर क्यो कहते हो मुझे दूसरी औरत ||ज़ुबान से स्वीकारा मुझे तुमनेपर अपने हृदय से नही,मै कोई वस्तु तो ना थीजिसे रख कर भूल जाओगे कहींअंतः मन मे सम्हाल कर रखोबस इतनी सी ही तो है मेरी हसरतपर क्यो कहते हो मुझे दूसरी औरत||तुम्हार
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियहम बनाएँगे अपना घरहोगा नया कोई रास्ता होगी नयी कोई डगरछोड़ अपनी रह तुम चली आना सीधी इधर||मार्ग को ना खोजना ना सोचना गंतव्य किधरमंज़िल वही बन जाएगी साथ चलेंगे हम जिधर||कुछ दूर मेरे साथ चलो तब ही तो तुम जानोगीहर ओर अजनबी होंगे लेकिन ना होगा
जख्म गहरा था मगर, हमने दिखाया ही नहीउन्होने पूछा ही नही, हमने बताया ही नही|फिर जिन यादो को, भुलाने मे जीवन बितायालेकिन हमने कहाँ, यादो ने सताया ही नही|मरके भी वो कब्र मे, कब से जाग रहा हैपर जाने वाला तो कभी, लौट कर आया ही नही|इतने मशरूफ थे हम, चाहत मे तुम्हारीदुनिया ने कहाँ कि, नाम कमाया ही नही|महल
फासले !!मेरा घर तेरे घर से इतनी दूर भी तो नही हैफिर क्योंफासले इतने बढे की80 गज़ की गली पार होती नही हैकंही ऐसा तो नही तेरे को भी डर है कीगिरफ्तार इश्क़ में हेहम कंही आगे बंदी बन्ने का डरतो नही।© मनमोहन कसाना#इश्क़ में गिरफ्तारी का मज़ा
हर किसी को चाहिये सुसंस्कृत नारी जो बस उसके के ही गीत गायेगी खुद के लक्षण हों चाहे शक्ति कपूर जैसे पर बीबी सपनों में, सीता जैसी आयेगीरूप लावण्य से भरी होनी चाहिये जवानी भी पूरी खरी होनी चाहिए सामने बोलना मंजूर ना होगा हरदम नौकरी भी करती हो तो छा जायेगीघर के काम में दक्षता होना तो लाजिमी है जो उसे दब
आजकल हमारे देश में नौजवानो के लिए साहित्य से लगाव ही नहीं |कविता,कहानी क्या है जानते ही नहीं |न लेखक को पहचानते हैं न कवि को |साहित्य से दूर ही रहते हैं वो तो आजकल अश्लील वीडियो ,अश्लील मूवीज एंव भोजपुरी के अश्लील गाने एंव फिल्मो को देखना पसंद करते हैं इन सबका हमारे देश मे तेजी से वृद्धि भी हो रहा ह
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियहर किसी को आज है, इंतेजार महफ़िल मे मेराफिर भी लगता है कि , बस हम ही बिन बुलाए है||मोहब्बत अगर गुनाह, फिर हम दोनो थे ज़िम्मेदारमहफिले चाँदनी तुम, हम सरे बज्म सर झुकाए है||खामोशी उनकी कहती है, कुछ टूटा है अन्दर तकलगता है जैसे मेरी तरह, वो जमाने के सताए है ||वैसे क्या कम सितम, ज
ना छुपाया गया, ना बताया गया..रिश्ता नाजुक सा था, ना निभाया गया..साँसे बेबस सी थी, बेकरारी भी थी..हालत मेरी जो थी, क्या तुम्हारी भी थी.?दिल बहुत था दुःखा, सब दिल में रखा..दर्द आँखों से मुझसे, ना बहाया गया..रिश्ता नाजुक सा था...की कई कोशिशें, पर समझ ना सका..मैं यूँ घुट घुट जिया, कि तड़प ना सका..कोई बात
रात सिर्फ रात नहींएक मंजिल भी है। सुबह की लगन की दोपहर के सफर की शाम की कथन की। ख्वाब सिर्फ ख्वाब नहीं एक तस्कीन भी है जख्म पर मरहम सी अजनबी चुभन-सी बांहों में दुल्हन-सी। गीत सिर्फ गीत नहीं एक सहारा भी है। तन्हाई में साथी-सा कश्ती में म
जिंदगी है इक झरोखा झांकते रहिये।लक्ष्य से भी अपनी दूरी नापते रहिये। साथ-साथ चलेंगे तो पा ही लेंगे मंजिलें। बस एक दूजे के दु:खों को बांटते रहिये।
सत्य की सड़क मिथ्या की चाैखट पर पहुंचकरमात्र एक गैलरी रह जाती हैऔर शेष भूमि परकविताएं लिख दी जाती हैं,कविताएंजो कभी भी किसी भी सूरत मेंसड्कें नहीं बन सकतीं।प्रशस्ति पत्रों से लिपटी सहमी ग्रामीण दुल्हनों जैसी जीवन भर चक्की पीसती रहती है, रोटियां पकाती रहती है और उधर मिथ्या की काली गैलरी में जेबें काट
नही जख़्मो से हूँ घायल, मुझे मेरी सोच ने मारा ||शिकायत है मुझे दिन सेजो की हर रोज आता हैअंधेरे मे जो था खोयाउसको भी उठाता हैकिसी का चूल्हा जलता होमेरी चमड़ी जलाता है |कोई तप कर भी सोया है,कोई सोकर थका हारा ||नही जख़्मो से हूँ घायल, मुझे मेरी सोच ने मारा ||मै जन्मो का प्यासा हूँनही पर प्यास पानी कीना
कवि:- शिवदत्त श्रोत्रियजब तक आँखो मे आँसू हैतब तक समझो मे जिंदा हूँ||धरती का सीना चीर यहाँनिकाल रहे है सामानो कोमंदिर को ढाल बना अपनीछिपा रहे है खजानो को|इमारतें बना के उँचीछू बैठे है आकाश कोउड़ रहे हवा के वेग साथजो ठहरा देता सांस को|जब तक भूख ग़रीबी चोराहो परतब तक मै शर्मिंदा हूँ||जब तक आँखो मे आँस