गतांक से आगे:-
सिया की सुबह थोड़ी देर से आंख खुली थी।जब वह जगी तो जिया उसे झिंझोड़ रही थी
"क्या बात है सिया दीदी आज उठना नहीं है क्या? घोड़े बेचकर सो रही हो नहीं तो इस वक्त तक तो तुम पूजा करके भी आ जाती थी कमरे में।"
रमनी ने लड़कियों पर इतनी पाबन्दी लगा रखी थी कि कोठी के एक साइड में मंदिर बनवा रखा था ।वह स्वयं भी और सिया और जिया भी उसी मंदिर में पूजा पाठ करने जाती थी।
सिया एकदम हड़बड़ा कर उठी और बोली,"क्यों कितना टाइम हो गया?"
"अरे दीदी सुबह के नौ बज चुके हैं । बड़ी मां दो बार दाई मां से पूछा चुकी है कि तुम उठी के नहीं ।कमला मां ने तो कह दिया कि सिया का सिर दुःख रहा है।"
जिया ने चहकते हुए कहा।
सिया सोच में पड़ गई कि ये क्या कह दिया कमला मां ने बड़ी मां तो कोचिंग ही नहीं जाने देंगी ।फिर….फिर नसीब से मुलाकात कैसे होगी?
प्रत्यक्ष में सिया बोली ,"कमला मां भी ना…… ऐसे ही बहाना बना दिया । कोई अच्छा सा बहाना बना देती।तुम देखना बड़ी मां मुझे कोचिंग ही नही जाने देंगी।"
जिया आंख मटकाते हुए ,"हां भयी, कोचिंग नहीं जाओ गई तो बात कैसे होगी मुलाकात कैसे होगी।*
अब जिया को भी पता चल गया था कि सिया मन ही मन नसीब को चाहने लगी थी ।
एक आकर्षण सा था उसकी नज़रों में जो जिया भी समझतीं थी।
सिया फटाफट उठी और तैयार होकर कमरे से ही भगवान को नमस्कार कर डाइनिंग हाल में आ गयी।उधर रमनी हाल में बैठकर अखबार पढ़ रही थी।जैसे ही सिया खाने की मेज पर आई रमनी ने उससे पूछा,"अब कैसी तबीयत है तुम्हारी?"
जब रमनी ने उससे पूछा तो एक बार तो सिया को विश्वास ही नहीं हुआ कि बड़ी मां उससे ही पूछ रही है क्योंकि उन्होंने इतने प्यार से कभी बात नहीं की थी।उधर रमनी का भी जी दुखता था अगर उन दोनों को कुछ हो जाता था तो , आखिर पेट जाई तो थी ही।
" मैं कुछ पूछ रही हूं" रमनी ने इस बार कड़क कर बोला।
"वो वो.. बड़ी मां आप को पता ही था रात को मैं सपने में डर गई थी इसलिए आंख खुल गई थी फिर बाद में देर से आंख लगी थी।" सिया एकदम से ही बोल गयी।
इतने में कमला खाना लेकर आ गई।
"अगर तबीयत ठीक ना हो तो कोचिंग मत जाना।" ये कहकर रमनी फैक्ट्री जाने के लिए तैयार होने लगी।
सिया ने जल्दी से बोला,"अब ठीक है तबीयत।"
दोनों बहनें गाड़ी में बैठी और कोचिंग के लिए निकल पड़ी। रास्ते में जिया ने चुटकी ली,"दीदी अगर थोड़ी देर और सोना था तो सो लेती डरावने सपने का भी बहाना क्यों बनाया।"
"नहीं पगली ।सच में कल तुझे नहीं पता मेरे साथ क्या हुआ।" सिया जैसे रात की बात सोच कर सहम गई।
"ऐसा क्या हुआ था रात को ।मैं भी तो वही सो रही थी अगर ऐसा कुछ होता तो तुम मुझे ना जगाती।वैसे किसका सपना दिखा था?" जिया ने हैरानी से उसे देखा ।
"रात चंचला मां की आत्मा आई थी मेरे पास और मुझे प्यार के रास्ते पर चलने को बोल गयी है।"
सिया ने जिया की जिज्ञासा शांत की।
" हैहहहह…. चंचला मां ? पर तुमने कैसे पहचाना की वो चंचला मां थी ।" जिया ने प्रत्युत्तर में प्रश्न किया।
सिया जैसे रात की बात को याद करके सिहर उठी,"उन्होंने स्वयं अपना परिचय दिया था मुझे।पहले तो मैं डर गई थी जब उनकी आत्मा अपने बेड के चारों ओर मंडरा रही थी फिर जब चंचला मां ने अपना परिचय देकर मेरे सिर पर हाथ फेरा तब मेरा सारा डर जैसे छूमंतर हो गया।वो मैं उनसे सब बातें पूछने ही वाली थी कि इतने में बड़ी मां ने मेरी आवाज़ सुन ली और जोर से बोल पड़ी मेरा ध्यान उधर हुआ तो चंचला मां गायब ही हो गई।"
जिया बड़े गौर से सिया के चेहरे के हाव भाव को देख रही थी।उसे ये तो पक्का विश्वास हो गया था कि सिया को वास्तव में चंचला मां की आत्मा दिखाई दी थी।
तभी वो दोनों कोचिंग संस्थान में पहुंच गई। बातों का सिलसिला एक बार को थम सा गया।
जब दोनों क्लास रूम में पहुंची तो सिया ये देखकर उदास हो गई कि आज तो नसीब आया ही नहीं।
कमल अपनी सीट पर बैठा अपनी कोपी में स्केच बना रहा था।सिया धीरे से उसके पास गई और ऐसे ही बहाने से उससे पूछा,"आज अकेले कैसे बैठे हो?"
यूं अचानक से सिया का बोलना कमल को डरा गया और घबराहट में उसके हाथ से कोपी छूट गई।
"अरे.. ऐसे कैसे ? इतनी घबराहट"
और जैसे ही नीचे से कोपी उठाकर कमल को देने लगी तो देखकर हैरान रह गयी।कमल जिस का स्केच कोपी में बना रहा था वो कोई और नहीं जिया थी।
इसका मतलब …..कमल भी जिया को मन ही मन चाहने लगा था और वो पगली इसकी ओर ध्यान ही नहीं देती ,अपनी मस्ती में मस्त रहती है।" सिया ने मन ही मन सोचा।
जब कमल थोड़ा संभला तो बोला," वो वो… आज नसीब आया ही नहीं इसलिए अकेले बैठा हूं ।उनके यहां कोई जमात वगैरह में जाते हैं वो वहीं गया हुआ है।आप बैठिए।"
उसका यूं सिया को ऐसे मान देकर बुलाना सिया को ये पक्का विश्वास दिला गया कि कमल सच में जिया को चाहने लगा था।
इधर एक बहुत बड़े हाल में नसीब किसी को ढूंढ रहा था ।तभी रज्जाक उसे सामने से आता दिखाई दिया उसने उससे पूछा,"रज्जाक मियां। ये अपने अब्दुल मियां कहां है? सुबह से आया हूं पर एक बार भी नही दिखे।"
रज्जाक अब्दुल मियां का दाहिना हाथ था।जो भी काले धंधे वो करता था उसका सारा लेखा जोखा रज्जाक ही रखता था।नसीब घर से तो जमात में शामिल होने की कह कर आया था पर यहां वह किसी दूसरे ही मिशन पर था। अब्दुल मियां हमेशा ऐसे जवान लौंडों के शिकार की फिराक में रहता था उन्हें बहला फुसलाकर अपने मिशन का हिस्सा बना लेता था।शहर में जितने बम धमाके होते ,लव जिहाद, मार काट होती वो अब्दुल मियां के एक इशारे पर होती थी। अब्दुल और नसीब का मिलन भी संयोग से ही हुआ था।एक बार वो चौराहे पर बस की इंतजार में खड़ा था जैसे ही बस आयी नसीब झट से बस में चढ़ गया और आनन फानन में एक बुजुर्ग से दिखने वाले शख्स की बगल में जाकर बैठ गया ।वो शख्स कुछ ज्यादा ही लालायित था नसीब से बात करने के लिए उसने कहा,"क्या नाम है तुम्हारा बेटा?"
नसीब ने होले से कहा,"नसीब"
"कहां पढ़ते हो ?"
"उज्जवल कोचिंग संस्थान मे।"
बस में भीड़ बहुत थी ।लोग एक दूसरे पर पैर रखकर जा रहे थे।तभी एक व्यक्ति ने उसके पैर पर पैर रख दिया।नसीब चीखा, क्यों कि दर्द ही इतना तेज हो रहा था।वो व्यक्ति माफी मांगना तो छोड़ो उल्टा ये कह कर आगे निकल गया"यार ये मुल्ले हर जगह पर मिल जाते हैं।देश में जीना हराम कर रखा है इन मुल्लों ने ।"
नसीब की आंखों से पानी टपक रहा था।तभी उस पास बैठे व्यक्ति ने फोन पर किसी को बुलाया और उस पैर टेकने वाले का हुलिया बताया।वो व्यक्ति बस से नीचे उतर कर मुश्किल से दस कदम ही चला होगा कि तभी धायं धायं दो गोलियां उस आदमी का भेजा उड़ा गई ।बस में बैठी सवारी हैरान परेशान इस वाकया को देख रही थी तभी पास बैठा बुजुर्ग होले से नसीब के कान में फुसफुसाया," लो ले लिया बदला ।अपनी कौम पर अंगुली उठाने वाले से ।खुदा जन्नत नसीब करें।" यह कहकर वह नसीब को देखकर होले से मुस्कुरा दिया।
नसीब उसे देखकर एक बार तो घबरा गया फिर वो भी उसका परिचय जानने को उत्सुक हो गया।
(क्रमशः)