गतांक से आगे:-
चंचला खुश थी क्योंकि सदियों बाद उसे मुक्ति मिल रही थी । आखिरकार प्रेत योनि में वह सदियों भटकी थी ।उसने अपनी भक्ति से भगवान को प्रसन्न किया और उनसे मुक्ति मांगी। अपनी और अपने सूरजसेन (जोगिंदर) की ।जो उसके साथ होकर भी रमनी का ही बना रहा ।अब उसे समझ आ गया था कि प्यार छीनने की चीज नहीं होती वो तो रब की मेहर है कब किस पर बरस जाए कोई कह नहीं सकता।
" रमनी एक खुश खबरी है हमारी बेटियां हमारे पास वापस आ रही है ।……हां हां छोटी अपनी जिया और सिया का जीव दोबारा जन्म ले रहा है ।तुम कसम खाओ तुम अपनी पोतियों को इतना प्यार दोगी ,इतना प्यार दोगी कि वो पिछले जन्म के सारे दुःख भूल जाएं।अपने विक्की की बहू गर्भ से है।अब मै जा रही हूं अब तुम्हें ही अपनी बेटियों की रक्षक बनना है।"
यह कहकर चंचला की आत्मा और जोगिंदर की आत्मा सफ़ेद धुएं में तब्दील हो गई और ऊपर आसमान की ओर गमन कर गयी।आज सही माने में चंचला की मुक्ति हो गयी थी।पहले उसकी आत्मा सूरजसेन के लिए भटक रही थी पर अब उसे पता चल गया था कि जो बीत जाता है वह प्यार लौट कर नहीं आता।
आज रमनी अपने आप को बहुत अकेला महसूस कर रही थी।आज वास्तव में उसका सुहाग और रक्षक का हाथ उस पर से हट गया था।तभी बाहर उसे बड़ी बहू के उल्टी करने की आवाज सुनाई दी।वो समझ गई कि चंचला दी सही कह कर गयी है।
आज रमनी का मन नाचने का कर रहा था ।उसकी दोनों बेटियां जो वापस आ रही थी। सालों से मन में एक चिंता थी कि उसका प्राणप्रिय प्रेत योनि में है ।आज उसे मुक्ति मिल गई थी तो रमनी की बेचैनी पूरी तरह से खत्म हो गयी थी ।अब कम से कम मुक्ति पा कर कहीं और जन्म तो होगा।
इधर दोनों बेटियों के वापस आने की खुशी , और क्या चाहिए था रमनी को। जोगिंदर के बगैर रहना तो वो बहुत पहले ही सीख गई थी।
वैसे औरतों में एक कुंठा होती है अपना प्रिय जब किसी और के पास चला जाए तो कुंठित होती है और दूसरी औरत से भी वो छीन जाए मतलब उसका प्रिय तब चरम शांति की प्राप्ति होती है ।मतलब जो मेरा नहीं रहा वो तेरा भी नहीं रहा।कुछ वैसा सुकून रमनी को मिल रहा था वैसे रमनी के परिवार में किसी चीज की कमी नहीं थी।
रमनी जब कमरे से बाहर आई तो बड़ी बहू वाशबेसिन पर खड़ी उल्टी कर रही थी रमनी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखा तो वह शर्मा कर अपने कमरे में दौड़ गई।
रमनी की खुशी का पारावार नहीं था ।उसने जाकर मंदिर में माथा टेका और घंटों जिया और सिया की समाधि पर पड़ी रही जैसे कह रही हो ,
"बेटियों जल्दी से मेरे आंचल में आ जाओ।देखो तुम्हारी मां पश्चाताप की अग्नि में जल रही है ।"
समय धीरे-धीरे सरकने लगा ।रमनी बड़ी बहू के खाने पीने कि पूरा ख्याल रखती थी ।उसे कोई काम नहीं करने देती थी । धीरे-धीरे प्रसव का समय भी नजदीक आ गया।एक रात बड़ी बहू को दर्द शुरू हो गये।रमनी के तो जैसे हाथ पैर ही फूल गये।कभी कुछ करती दौड रही थी तो कभी कुछ करती।
हां जचचगी का थैला उसने सम्भाल कर पहले ही गाड़ी में रख लिया था।रमनी अपनी जचचगी वाली बात सोचकर ही सिहर उठी थी। उसी समय तो उसका जोगिंदर उससे अलग हुआ था ना तो वो थैला लेने घर जाता ना ही एक्सीडेंट होता।
बहू को पिछली सीट पर लेकर रमनी ही गाड़ी में बैठी। विक्की कार चला रहा था । जल्दबाजी में विक्की से कार चलाई नहीं जा रही थी एक जगह गाड़ी जब दुसरी गाड़ी से टकराने को हुई तो रमनी चीख पड़ी," बस….बस भगवान अब और परीक्षा मत लो मेरी । मैं थक चुकी हूं अब फिर से इतिहास मत दोहराना।"
तभी जैसे चमत्कार हुआ गाड़ी को एक ख़रोंच तक नहीं आई और गाड़ी अस्पताल के आगे आकर खड़ी हो गई।
फटाफट बड़ी बहू को लेबर रूम ले जाया गया और तकरीबन आधे घंटे बाद बच्चों के रोने की आवाज बाहर आई।रमनी तो पागल सी होकर पहले ही टहल रही थी वो तो बावरी सी हो गई आवाज सुनकर । नर्स ने बाहर आकर कहा,"मां जी , जुड़वां बेटियां हुई है बधाई हो घर में लक्ष्मी आई है।"
रमनी ने पर्स से पांच सौ की गड्डी निकाली और नर्स को बधाई दे दी।
दोनों बच्चियों को जब बाहर लाया गया तो रमनी हैरान रह गयी हूबहू जिया और सिया की कार्बन कॉपी थी दोनों।रमनी के मुंह से सहसा निकल गया," मेरी जिया और सिया लौट आई है ।सुन रहा है ना विक्की तू ,आप भी सुन लो अपनी बेटियां अपने घर वापस आ गयी है।, चंचला दीदी मैं आप की अमानत को बड़ा सम्भाल कर रखूंगी।"
कहते हैं रमनी ने दोनों पोतियों के जन्म का उत्सव इतनी धूमधाम से मनाया था कि पूरे शहर में उसकी चर्चा रही थी।हर वक्त दोनों को अपने कलेजे से लगा कर रखती थी । दोनों लड़कियों को लड़कों से भी ज्यादा पाल पोस कर बड़ा किया रमनी ने ।
आज अस्सी साल की बुढ़िया दरवाजे पर टकटकी लगाकर बैठी है ।शायद किसी का इंतजार कर रही है ।तभी पुलिस की चार पांच जिप्सी आकर दरवाज़े पर रुकती है और उसमें से एक लड़की उतरती है और उतरते ही दरवाज़े पर बैठी बुढ़ी औरत को सैल्यूट करती है लड़की की वर्दी पर लिखा है "आई पी एस सिया सिंह "
बुढ़ी औरत की आंखों में ख़ुशी के आंसू बहने लगते हैं ।उसके थोड़ी देर बाद एक गाड़ी और दरवाज़े पर आकर रुकती है।उस से भी एक लड़की बाहर निकलती है जिसके कोट पर लिखा है" एडवोकेट जिया सिंह"
वह तुरंत बुढ़ी औरत के पैर छूती है ।
आज रमनी की सालों की मेहनत सफल हो गयी थी ।उसने जो वादा चंचला दीदी से किया था वो पूरा कर दिखाया था ।वह उपर की ओर नजरें उठा कर आसमान की ओर देखती है जैसे धन्यवाद दे रही हो ।अपने भगवान का,अपनी चंचला दी का ,अपने प्रियतम का , जिन्होंने उसे शक्ति दी अपनी खोई हुई आत्मा को वापस पाने के लिए ।वो प्यार की पुजारिन फिर से एक बार प्यार को मानने लगी थी और अपनी पोतियों को भी इतना समर्थ बना दिया था कि वो किसी भी परिस्थिति का मुकाबला कर सके।वो सच्चे प्यार को पहचान सके और जिंदगी में कभी किसी से ये पूछने की नौबत ना आये कि "क्या यही प्यार है?"
वह अपनी दोनों बेटियों को लेकर घर के अंदर चली गई।
(इति)