गतांक से आगे:-
रमनी को ऐसे लग रहा था जैसे उसकी सारी थकान उतर गयी हो । स्पर्श जाना पहचाना सा लगा।वह अर्ध निंद्रा में थी उसे साफ साफ महसूस हो रहा था वह जोगिंदर ही था ।उसने देखा जोगिंदर उसके सिरहाने खड़ा उसके सिर पर हाथ फेर रहा है ।वह उसे देखकर एकदम फफक पड़ी,"तुम कहां चले गये मुझे छोड़कर ।देखो …..देखो ना अपने घर पर दो दो लक्ष्मी आई है ।तुम तो एक बेटी की चाहना रखते थे लेकिन भगवान ने हमें दो बेटियां दी है ।पर हाय री किस्मत अब वो मेरी आगोश मे है तो तुम चले गये मुझे छोड़कर।"
यह कहकर रमनी रोने लगी ।
तभी जोगिंदर की आत्मा उसके बिल्कुल करीब आकर बोली,"रमनी मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूंगा।"
इतने में जोगिंदर के पीछे से चंचला की आत्मा बोल पड़ी," हां हां बहन तुम अकेली नहीं हो मैं और सूरज सदैव तुम्हारे साथ रहेंगे।"
रमनी ने चंचला को पहली बार साक्षात देखा था ।बला की खूबसूरत थी चंचला ,आज उसे समझ आ गया था कि जोगिंदर उसे कितना चाहता था ।वह चंचला के आगे कहीं भी नहीं ठहरती थी । साधारण से नयन नक्श वाली वो और चंचला कोई स्वर्ग से उतरी अप्सरा जैसी थी लेकिन जोगिंदर ने सदैव रमनी के प्यार का दम भरा।
पर आज उसका जोगिंदर आत्मा के रूप में चंचला के साथ खड़ा था।
वो मर कर भी उसके बारे में सोच रहा था। हो सकता हो उसने चंचला से वादा लिया हो कि जब तक बच्चे बड़े होकर अपने पांव पर खड़े नहीं हो जाते,अपनी गृहस्थी मे नही रम जाते तब तक वो दोनों रमनी का साथ देंगे।
तभी चंचला की आत्मा रमनी से मुखातिब होते हुए बोली," बहन मैं हमेशा तुम्हारा साथ दूंगी।सूरज जी के बच्चे क्या मेरे बच्चे नहीं हैं मैं हमेशा उनकी बड़ी मां बनकर देखभाल करुंगी । बच्चों पर जरा भी आंच नहीं आने दूंगी।
मैंने तो पहले ही सोच लिया था जब तुम्हारा ब्याह हुआ था सूरज जी के साथ कि मैं इनकी खुशहाल गृहस्थी को बर्बाद नहीं करुंगी पर नियति हर बार मुझे इनके पास खींच लाती थी कभी गाय के रूप में तो कभी बिल्ली के रूप में ।मेरी आत्मा को शांति नहीं मिली। मुझे पता चल गया था कि जब तक मेरा सूरज जी से मिलन नहीं होगा मेरी आत्मा यूं ही भटकती रहेंगी।पर तुम ये मत सोचना कि मैंने तुम्हारा पति छीन लिया है । क्या दो बहनें साथ साथ नहीं रह सकती।"
रमनी डबडबाई आंखों से जोगिंदर को निहार रही थी तभी जोगिंदर और चंचला की आत्मा दोनों बच्चियों और साथ में सोये दोनों बेटों के पास गयी और ढेर सा प्यार उन पर लुटाने लगी। जोगिंदर बच्चों की तरफ देखकर बोला,"रमनी इतना पैसा तो है हमारे पास कि तुम बच्चों को अच्छी परवरिश दे सको। मैं ये चाहता हूं हमारे बच्चे खूब फले फूले।"
रमनी भी हां में सिर हिलाते हुए बोली,"मैं पूरी कोशिश करूंगी।"
तभी रमनी की मां ने उसे हिला दिया और बोली,"बिटिया किस से बातें कर रही हो?"
रमनी हड़बड़ा कर उठी और अपने चारों तरफ ऐसे देखने लगी जैसे उससे उसकी प्रिय चीज छीन ली हो किसी ने …….आह! प्रिय ही तो था जोगिंदर उसके लिए आज जोगिंदर साथ होते हुए भी उसके साथ नहीं था ।भले ही जोगिंदर की आत्मा उसे तसल्ली दे गयी थी पर पति का जो साथ उसे सुरक्षा देता था , सुकून देता था, सरपरस्त था वो अब नहीं रहा था रमनी को दुनिया के दुखों से अकेले ही जूझना था।
मां के इस प्रकार पूछने पर रमनी ने अपनी भर आईं आंखों को पोंछा और बोली,"कुछ नहीं मां …..बस ऐसे ही भ्रान्ति बन जाती है ऐसा लगा जैसे तुम्हारे दामाद आये थे।अब उनके बिना जीने की आदत पड़ती सी पड़े गी।
रमनी की मां का कलेजा फटने लगा बेटी का दुःख देखकर ।उसे पूचकारते हुए बोली"बिटिया अब अपने बच्चों की तरफ देख तुझे अपना मन कड़ा करके उन्हें पालना है कमजोर हो जाएगी तो कैसे पालेगी अब मां भी तुम ही हो और बाप भी ।"
"हां मां तुम सही कह रही हो ।" यह कहकर रमनी ने एक तरफ मूंह फेर लिया।इतने में बच्चियों को भूख लगी और वो रोने लगी ।रमनी की मां ने उन्हें रमनी को दूध पिलाने के लिए दिया तो रमनी ने बेमन से उन्हें अपने हाथों में लिया।
पता नहीं क्यों रमनी को दोनों बेटियों को देखकर यही लगता था कि ये ही कारण है अपने पिता की मृत्यु का ।ये इस दुनिया में आई और उसका सुहाग उससे बिछुड गया।
एक तरह से वो उन बच्चियों को ही इस दुर्घटना का दोषी मान रही थी।
आज जोगिंदर को गये तेरह दिन हो गये थे । जोगिंदर की तेरहवीं करके एक दिन रमनी के मां बापू ने ही मंदिर में जाकर बच्चियों का नामकरण करवाया ।रमनी ने सिरे से मना कर दिया था
"मां मैं नहीं जाऊंगी इन दोनों के नामकरण पर ।जब भी इन दोनों को देखती हूं मुझे ऐसे लगता है जैसे ये दोनों ही कारण है मेरे पति का इस दुनिया से जाने का।"
"अरी बिटिया , ये भी कोई बात है ।इन दोनों ने क्या किया है ।ये तो देख इन बच्चियों ने तो बाप का साया भी नहीं देखा ।जब बड़ी होंगी तो बिन बाप की बेटियां कहलाएं गी।" रमनी की मां ने तनिक रोष में कहा।
"अब तुम कुछ भी कहो मां ।मेरा मन इन्हें ही दोषी मानता है।" रमनी ने तुनक कर कहा।
ये वही रमनी थी जो जोगिंदर के प्यार में दीवानी हो चली थी। प्यार ही उसके लिए सब कुछ था।पर अब वो पत्थर दिल हो गयी थी जोगिंदर के जाने के बाद । प्यार से विश्वास ही उठ गया था उसका। जोगिंदर के प्यार में पागल रमनी को जब से चंचला की सच्चाई का पता चला था तब से मन में थोड़ी तो खटटास आ ही गई थी पर जब चंचला उसके सुहाग,उसके प्यार और उसके जीवन साथी को उससे छीन कर ले गयी तब से वह घृणा करने लगी थी "प्यार" नाम के शब्द से ।
बस अब रमनी ने कुछ और ही बनने का ठान लिया था।
(क्रमशः)