गतांक से आगे:-
मिस्टर बजाज बहुत शातिर खिलाड़ी थे उन्होंने कमल को बैठने का इशारा करके स्वयं खड़े हो गये रमनी का स्वागत करने के लिए ।
"अरे…रे आप और यहां ? सब ठीक तो है ।और सुनाइए मिल में काम कैसा चल रहा है।सुना है एक कर्मचारी घायल हो गया था।"
मिस्टर बजाज ने आगे बढ़कर रमनी का स्वागत करते हुए उसे आदर से बिठाया। इधर रमनी को बैचेनी हो रही थी वो मिस्टर बजाज की औपचारिक बातें सुन कर बोर हो रही थी और मिस्टर बजाज ये जताना चाहते थे कि उन्हें सिया और जिया के विषय में मालूम ही नहीं है कि वो रमनी की बेटियां हैं।तभी रमनी सीधा कमल की ओर मुखातिब होते हुए बोली,
"कमल बेटा ।किसी नसीब को जानते हैं क्या?"
"क्यों आंटी क्या बात हो गई?"कमल अनजान बनता हुआ बोला।
जब मिस्टर बजाज ने नसीब नाम सुना तो अचानक से बोले,"क्या बात हो गई मिसेज जोगिंदर नसीब से आप को क्या काम है?"
"बात दरअसल ये है भाईसाहब। आजकल के बच्चे मां बाप की इज्जत को दांव पर लगाकर अपनी मनमर्जी करतें हैं ।वो ही नसीब नाम का लड़का हमारी बेटी सिया को घर से भगाकर ले गया है। एक बार हाथ लग जाए वो लड़का उसका तो वो हश्र होगा कि भगवान ही जानता है।"
मिस्टर बजाज को ये पता था रमनी जो मन में ठान लेती है उसे पूरा करके ही दम लेती है।तभी वो बोले,"बहन जी नसीब हमारे बेटे की दाईं मां का बेटा है हमें तनिक भी गुमान नहीं था कि ये लड़का ऐसे काम करेगा।हम अभी से उसकी खोज करवाते हैं और आप की बेटी को सही सलामत आपके घर पहुंचा देंगे।…..एक बात और कहनी थी आप से हमारा बेटा कमल आप की बिटिया जिया को पसंद करता है अगर आप को कोई ऐतराज ना हो तो हम आप की बेटी का हाथ अपने बेटे के लिए मांगते हैं।"
रमनी ने अनमने मन से कहा,"देखें …भाईसाहब अभी तो जान पर बनी हुई है कि किसी तरह से बिटिया मिल जाए । आप भी जानते ही होंगे कि जिसकी जवान बेटी घर से लापता हो जाए उस मां का क्या जीना है।"
"जी बहन जी , मैं समझ सकता हूं।"
तभी रमनी उठी और हाथ जोड़कर बोलीं ,"आप को जैसे ही पता चले आप तुरंत खबर करें।"
"जी अच्छा।"यह कहकर मिस्टर बजाज उठे और उसे गाड़ी तक छोड़ने गये।
रमनी की गाड़ी जब गेट से बाहर चली गयी तब कमल एकदम से उछलकर पड़ा,"क्या पापा अभी अच्छा मौका था बात करने का । आपने क्यों नहीं की सही से बात ।और हां आप नसीब का पता उसे बता दोगे?"
"बिल्कुल बता दूंगा हमें हमारा मिशन पूरा नहीं करना क्या? उसके लिए कितने ही नसीब कुर्बान…….. मिस्टर बजाज की बात मुंह की मुंह में ही रह गयी क्योंकि सामने से नसीब की अम्मी आ रही थी वो आते ही बोली," साहब नसीब का कहीं पता नहीं चल रहा दस रोज से गायब है जमात की कहकर गया था लेकिन वहां से भी सभी आ चुके हैं वो नहीं आया।"
"हमीदा बी , हम पता करवाते हैं।" यह कहकर मिस्टर बजाज उठकर अंदर चले गये।पीछे पीछे कमल भी चला गया आज उसने नसीब को फोन लगाया और उसे बातों ही बातों में ये उगलवा लिया कि वो कहां पर रह रहा है।
अगले दिन कमल उसके बताए हुए ठिकाने पर पहुंच गया ।नसीब उसे बाहर गली में ही मिल गया वह कमल को लेकर एक पार्क में आ गया और वहां बैठकर सारा हालचाल पूछने लगा।कमल ने उसे बहुत भयभीत कर दिया कि सिया की मां ने गुंडे लगा रखे हैं तुम्हें ढूंढने के लिए ।कल हमारे यहां आई थी कह रही थी कि अगर वो मेरे आदमियों के हत्थे चढ़ गया तो उसको जिंदा नहीं छोड़ेंगी।
नसीब अंदर से दहल गया । आखिरकार था तो बचपना ही उसके अंदर वो तो ग़लत आदमियों की सोहबत में रहकर गलत काम करने चला था।दूसरा उसने इन दस दिनों में ये भी देखा लिया था कि सिया अपने धर्म की पक्की है वो अपना धर्म छोड़कर मुसलमान कभी नहीं बनेगी।उसने कमल को मकान की चाबी देकर कहा,"ऐसा है मुझे मालूम पड़ गया है कि हमारे बीच जो भी था वो महज एक आकर्षण था ना वो मुझे प्यार करती है और शायद ना मैं उसे प्यार करता हूं।तुम उसे अपने साथ ले जाओ।"
कमल को तो जैसे मन चाह मिल गया था वो तो ये सोचकर आया था कि सिया को नसीब के चंगुल से छुड़ाने के लिए कहीं मारपीट ना करनी पड़ जाए पर ये तो अपने आप ही सिया को उसके साथ भेजने के लिए राजी हो गया।
कमल जैसे ही उस घर का ताला खोलकर अंदर घुसा तो देखकर हैरान रह गया सिया के हाथ पैर बंधें हुए थे ।ऐसे लग रहा था जैसे उसने काफी दिनों से कुछ खाया नहीं है।जब कमल ने उसे बंधनों से आजाद किया तो वह कमल के गले लगकर रोने लगी ।कमल भी उसे ढांढस बंधाने लगा और वह सिया को लेकर अपने शहर आ गया और उसे लेकर रमनी की कोठी पर जैसे ही पहुंचा ।रमनी ने सिया को जब देखा तो उसकी आंखें अंगारे उगलने लगी वह कमल के आगे तो चुप रही लेकिन जैसे ही कमल गया रमनी ने नौकरों को बुलाकर सिया को रस्सी से बंधवाकर कमरे में बंद कर दिया । सर्द रात में सिया के शरीर पर कोई गर्म कपड़ा नहीं था वो जमीन पर पड़ी थी रमनी रात को उसके कमरे में आई और उसको डंडे से पीटा और बोली ,"कर्म जली तू इसी लायक है पैदा होते ही तुम दोनों बाप को खा गयी अब मुसलमान के साथ भागकर सारे खानदान के मुंह पर कालिख पोत दी। तुम्हें ज़िंदा रहने का कोई हक नहीं है ।"यह कहती जाएं और सिया को पीटती जाए ।सिया ने तो पहले ही सात आठ दिन से कुछ खा नहीं रखा था ऊपर से रमनी की इस सर्द रात में मार सिया का पोर पोर दर्द से कराह रहा था रमनी अपनी भड़ास निकाल कर अपने कमरे में चली गयी।
खाना तो उसके गले से क्या ही उतरना था वह बिना कुछ खाये ही पलंग पर पसर गयी।रात आधी ही बीती थी कि रमनी को ऐसे लगा जैसे उसके पलंग को कोई जोर जोर से हिला रहा है।
(क्रमशः)