गतांक से आगे
नसीब की बेचैनी बढ़ती जा रही थी कि आखिर ये क्या बला है ।अभी इसने फोन पर उस आदमी का हुलिया बताया और दस मिनट में वो आदमी ढ़ेर हो गया।
" मियां आप कौन हैं?" नसीब ने झिझकते हुए पूछा।
वह आदमी थोड़ा रोष में आकर बोला,"अरे बेटा मेरे बारे में जानकर क्या करोगे, वैसे मुझे अब्दुल कहते हैं।बस मुझे यही पर दुख आ जाता है जब कोई हमारी कौम को गाली देता है ,हमारा हक रखता है और तुम जैसे नौजवान चुप लगा जाते हो।इनको यही भाषा समझ आती है।ओर ज्यादा जानना हो तो कल्याण झुग्गी में हमारा डेरा है वहां आ जाना । तुम्हें कौम के लिए लड़ना सीखा देंगे।"
यह कह कर वो व्यक्ति बस से नीचे उतर गया।
नसीब जब घर पहुंचा तो उसकी अम्मी और कमल दोनों दरवाजे पर खड़े थे।
"क्या हुआ बेटा ? आज लेट कैसे हो गया । तुम्हारा फोन लगा रही हूं कब से लग ही नहीं रहा था ।बेचारा कमल तो बहुत परेशान हो गया था ।मुझे बता रहा था कि अम्मी मैंने नसीब को बहुत बार कहां कि अगर तेरी साइकिल पंचर हो गई है तो मेरे साथ गाड़ी में चल पर ये माना ही नहीं बोला तुम चलो मुझे काम है मैं बस से आ जाऊंगा।" नसीब की अम्मी ने चिंतित होते हुए कहा।
"वो अम्मी फोन की बैटरी खत्म हो गई थी। इसलिए फोन नहीं लग रहा था रही बात लेट होने की तो मैंने तुम से कहा था ना कि मुझे जमात में नाम लिखाना है इसलिए वहीं मस्जिद में देर हो गई।" नसीब ने झुंझलाकर कहा।
नसीब की ऐसी हालत देखकर दोनों चुप हो गये ।नसीब अपने कमरे में आ गया।
दरअसल नसीब कमल की ही कोठी में सर्वेंट क्वार्टर में रहता था।कमल की मां कमल को जन्म देते ही भगवान को प्यारी हो गई थी ।और भगवान की लीला देखो कमल के पिता की फैक्ट्री में काम करने वाला वर्कर शमसुद्दीन भी उसी दिन मशीन के सिर पर गिरने से वही फैक्ट्री में ही ढ़ेर हो गया था ।मामले को दबाने के लिए मिस्टर अशोक बजाज ने शमसुद्दीन की घरवाली को अपने बच्चे की देखभाल के लिए रख लिया।नसीब उस समय छह महीने का था ।इस तरह कमल को मां का दूध भी मिल गया ।एक किस्म से नसीब की अम्मी कमल की धाय मां थी।वह कमल की हर जरूरत का ध्यान रखती थी।बस नसीब को ये बात कहीं ना कहीं अखरती थी कि मेरी अम्मी होकर कमल का क्यों इतना ख्याल रखती है बचपन की जलन बड़े होकर ज़रूरत बन गई थी ।वह कमल के आगे चुप तो रहता था पर मन ही मन वो उसे पसंद नहीं करता था।हर बार अपनी अम्मी से यही कहता ,"अम्मी एक बार मैं कमाने लग जाऊंगा तो हम कोठी में रहना छोड़ देंगे।"
उसे मिस्टर अशोक बजाज का भी अपनी अम्मी से बात करना अखरता था।
नसीब कमरे में आकर आज दोपहर हुई घटना के विषय में सोचने लगा तभी कमल कमरे में आ गया और बोला,"क्या बात आज तेरा मूड़ उखड़ा हुआ क्यों है ?"
"कुछ नहीं यार आज मैंने बड़ा अजीब सा कुछ होते देखा।"
और कमल को दोपहर की सारी बात बता दी बस ये नहीं बताया कि वो आदमी उसे अपने ठिकाने का पता दे गया है और वह कल उससे मिलने जा रहा है।
"यार ऐसे लोगों से बच कर रहना ।ये किसी के सगे नहीं होते अपना उल्लू सीधा किया और खिसक लेंगे।"
प्रत्यक्ष में तो नसीब ने हामी भर ली लेकिन मन ही मन उसके मन में द्वंद्व चल रहा था ।वह मन ही मन सोच रहा था" हां ताकि तुम जैसे लोग हमारी कौम का दमन करते रहो मैं तो जरूर जाऊंगा मिलने।"
अगले दिन नसीब कमल से बहाना बनाकर कल्याण झुग्गी पहुंच गया और वहां अब्दुल मियां का नाम लिया तो एक पतला सा लड़का जो सिर पर गोल टोपी लगाए था वह दौड़ कर आया और बोला ,"आपको अब्दुल चचा से काम है चलो मैं ले चलता हूं।"
वह लड़का आगे आगे और नसीब पीछे पीछे ।वह लड़का उसे तंग गलियों में से निकालते हुए एक बड़े से मकान में ले गया। वहां का माहौल बहुत अजीब था ।कहीं पर बम बनाएं जा रहे थे तो कहीं पर लोगों को ट्रेंड किया जा रहा था कैसे बम इंप्लांट करें।
एक जगह लोगों को समझाया जा रहा था कैसे अपनी कौम के लिए लड़ना है।
अब्दुल मियां वहीं पर बैठे थे। नसीब को देखते ही वे उसकी ओर लपके और उसे सीने से लगाकर बोले," लो एक और सिपाही शामिल हो गया हमारी जंग में।"
और वह नसीब को लेकर एक अलग कमरें में चला गया।
उस दिन के बाद नसीब प्रत्यक्ष में तो कमल और हिंदू कौम के लड़कों से अदब और प्यार से पेश आता था लेकिन अंदर ही अंदर कैसे उनकी जड़ें काटी जाएं यही सोचता था। देखने भालने में नसीब किसी हीरों से कम नहीं था तो अब्दुल मियां ने उसे लव जिहाद वाले खेमे में रखा ।ताकि हिंदू लड़कियों को अपने प्यार में फंसाये और उसे मुस्लिम बनाकर अपनी कौम को बढ़ाएं।
***
उसी सिलसिले में नसीब अब्दुल मियां से बात करने आया था ।
रज्जाक बोला,"भाईजान अभी तो यहीं थे कहां चले गये ,दिखता है कोई नया सिपाही आया है उसको किस महकमें में रखना है शायद यही तय करने गये है।"
तभी सामने के कमरे से जो अभी तक बंद था उसमें से अब्दुल बाहर निकल कर आया और नसीब को देखकर बोला,"और मेरे जिगर के छल्ले बात कहां तक पहुंची?"
" वहीं तो मैं आपको बताने आया था ।"
अब्दुल ने उसे इशारें से एक कमरे में चलने को कहा।
कमरे में जाते ही नसीब बोला" मियां जी बात तो ये है कि लड़की अपने जाल में पूरी तरह से फंस गयी है पर एक गड़बड़ है उसकी मां और भाई बहुत तेज तर्रार है और वो लड़की अपने धर्म की पक्की भी बहुत है ।कभी कभी मुझे लगता है क्या वो अपना धर्म छोड़कर मेरा धर्म कबूल करेंगी?"
अब्दुल मियां थोड़ा रिलेक्स होकर बैठ गये और बोले," बेटा इस जहान में एक ही चीज ऐसी है जो सब कुछ करने पर मजबूर कर देती है वो है "प्यार " अगर वो तुम्हारे प्यार में हैं तो वो सब करेंगी जो तुम चाहते हो।"
यह कहकर अब्दुल एक चंडाली हंसी हंसा और पान का बीड़ा मुंह में ठूंस लिया। नसीब भी मंद मंद मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर चला गया।
(क्रमशः)