गतांक से आगे
आज जोगिंदर को चौदह साल हो गये रमनी को छोड़कर गये हुए ।रमनी ने एक मर्द की तरह अपनी सारी जिम्मेदारी निभाई
दोनों जुड़वां बेटियों सिया और जिया और दोनों बेटे विक्की और गौतम के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया।
वह जिंदा थी पर अपने जोगिंदर के बगैर एक लाश की तरह जीवन जी रही थी ।ना कोई उमंग ना कोई चाव रह गया था ज़िंदगी में ।अब वो गांव में और शहर में बड़ी मां के नाम से जानी जाती थी । जोगिंदर के जाने के बाद रमनी ने सारा काम काज ,खेती बाड़ी की देखभाल और जागीरदारी का काम सभी तो सम्भाल लिया था ।
पहले तो मां बापू का सहारा था रमनी को जोगिंदर के जाने के बाद जोगिंदर की आत्मा ने ही सलाह दी थी कि अकेली कैसे करोगी सब कुछ मां बापू को अपने पास शहर में ही रख लो। पहले पहल बहुत घबराती थी रमनी सब काम करते हुए पर अब मां बापू के जाने के बाद तो आदि हो गयी थी हर एक काम की।
विक्की सरकारी महकमे में अफसर हो गया था बिल्कुल जोगिंदर की कार्बन कॉपी लगता था ।छोटा गौतम भी हास्टल में पढ़ाई करने गया हुआ था ।
रही बात सिया और जिया की। दोनों अब चौदह वर्ष की हो चुकी थी रमनी ने कभी भी उनका जन्मदिन नहीं मनाया।किस बात की खुशी मनाएं उसी दिन बाप की पुण्यतिथि थी ।हर बार सोचती थी कि इन का भी क्या भाग्य है जो अपने जन्मदिन पर भी खुश नहीं हो सकती।उस दिन मातम पसरा रहता था घर में।रमनी ना किसी से बोलती ना चालती बस एक कमरे में पड़ी रहती थी ।नौकर चाकर कमरे के बाहर खड़े हो कर बार बार बुलाते थे "बड़ी मां ! आ जाओ नाश्ता ठंडा हो रहा है कुछ खा लो पर रमनी कमरे से ना निकलती।
कितने ही नौकर चाकर बदले गये इन चौदह सालों में ।पर कमला ज्यों की त्यों बनी रही इस घर मे। जोगिंदर के जाने के बाद रमनी तो ऐसा ही सम्हाली थी दोनों बेटियों को ।बस एक कमला ही थी जिसने धाय मां बनकर पाला था सिया और जिया को।वो भी कहां अपनी मां को पूछती थी सारा दिन कमला के पीछे" दाई मां " कहती फिरती थी ।रमनी से तो डरती थी सिया और जिया। अपने मन की बात कहनी होती तो वो दौड़ कर कमला के पास जाती ।एक आवरण सा खड़ा हो गया था दोनों बेटियों और मां के बीच। क्यों कि रमनी ने कभी मन से उन्हें प्यार ही नहीं किया ।बस अपना फर्ज ही अदा किया था ।
भगवान ने भी क्या फुर्सत से गढ़ा था सिया और जिया को । बहुत ही सुन्दर ,तीखे नयन नक्श,बोलने का सलीका सभी तो था उन्हें । हां वो दोनों डरती बहुत थी।अपने बड़े भाई नवीन और बड़ी मां रमनी से।
रमनी ने नवीन को इस तरीके से पाला था कि जैसे वो प्यार शब्द से नफ़रत करती थी उसी तरह नवीन को भी "प्यार " शब्द से नफ़रत थी।छोटी उम्र में पिता का साया सिर से उठ जाने के बाद मां ने ही सारे दुःख झेले थे जिसे नवीन बचपन से ही देखता आया था । कभी कभार रमनी के मुंह से भी चंचला का जिक्र हो जाता कि वह कैसे प्यार का दंभ भर कर तुम्हारे पिता को तुम से छीन कर ले गयी। जिससे नवीन के मन में प्यार शब्द से घृणा बैठ गयी थी।एकदम क्रूर प्रवृत्ति का हो गया था वो। उसके साथी संगी कभी उसके आगे अपनी अपनी गर्लफ्रेंड के विषय में बात करते तोवो झल्ला जाता और वहां से उठते हुए बस यही कहता"हो गयी तुम्हारी बकवास चालू ,और कोई काम नहीं है तुम सब को ।"
उसके दोस्त भी अचरज करते कि कैसा इंसान हैं जिसे अभी तक प्यार के कीड़े ने नहीं काटा।
वो भी कुछ कुछ रमनी की तरह ही पत्थर दिल होता जा रहा था।
जब भी नवीन छुट्टी पर घर आता सिया और जिया सहमी सहमी सी रहती थी ।
रमनी को "प्यार " शब्द से नफ़रत इतनी ज्यादा हो गयी थी
और हालात इतने ख़राब थे कि सिया और जिया की दिन पर दिन निखरती खूबसूरती को देखते हुए रमनी को ये डर था कहीं बेटियां प्यार व्यार के चक्कर में ना पड़ जाए इसलिए बेटियों को घर से बाहर नहीं निकलने दिया । पढ़ाई भी वो आनलाइन ही करती थी। दसवीं की परीक्षा की तैयारी चल रही थी बोर्ड की परीक्षा थी सोई सिया और जिया को ट्यूशन की जरूरत हुई। कोई भी टीचर घर आकर पढ़ाने को तैयार नहीं हुआ इसलिए मजबूरन रमनी को दोनों बेटियों को घर से बाहर कोचिंग के लिए भेजना पड़ा।
कल कोचिंग का पहला दिन था ।आज उन दोनों का जन्मदिन और जोगिंदर की पुण्यतिथि थी सोई रमनी सुबह जोगिंदर के नाम से कुछ दान पुण्य करके अपने कमरे में बंद हो गयी थी।
वह कमरे में बैठी बैठी रही सोच रही थी कि सिया जिया को बाहर भेजूं या नहीं पढ़ने ,कहीं लड़कों के चक्कर में पड़ गयी तो क्या होगा।यही सोचते सोचते उसे हल्की सी झपकी आ गई।
तभी उसे लगा जोगिंदर उसके पास बैठा है और थोड़ा नाराज़ सा लग रहा है ।वह उस से पूछने लगी
"क्या बात आप ऐसे गुस्से में क्यों है ?"
जोगिंदर की आत्मा जो काफी समय से खिड़की के बाहर देख रही थी वो एकदम गुस्से से बोली ," रमनी तुम्हें क्या होता जा रहा है ।पहले तो तुम ऐसी ना थी।अब तो जैसे पत्थर दिल हो गयी हो।अपनी बेटियों को बाहर तक भी नहीं जाने देती मैंने ऐसे तो परवरिश करने को नहीं बोला था बच्चों की तुम्हें।"
अब रमनी को सपने में जोगिंदर की आत्मा को देखकर भी रोना नहीं आता था वह बस एकटक शून्य में निहारते हुए बोली," मुझे पता है उन्हें कैसे पालना है अगर जरा सी चूक हो गई तो मुंह काला करवा देंगी।अब तुम तो हो नहीं जो सब सम्भाल लोगे ।"
जोगिंदर की आत्मा अशांत सी होकर बोली,"रमनी बच्चों को अच्छे से रखो मैं तो बस यही चाहता हूं।"
रमनी ने जोगिंदर की तरफ हाथ जोड़ दिए और बोली,"अब बस मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो । तुम्हें चंचला तुम्हारा पहला प्यार मिल गया है । मैं मेरे बच्चों को किसी भी प्रकार पालूंगी तुम्हें इससे कोई सरोकार नहीं होना चाहिए।"
तभी बाहर से नौकर ने दरवाजा खटखटा दिया"बड़ी मां गांव से कोई आया है।"
(क्रमशः)