गतांक से आगे:-
सारा रास्ता सिया का सोच में ही कट गया कि ये नसीब है वो इस कोचिंग संस्थान में आखिर पढ़ कैसे पा रहा है । यहां की फीस जुटाना कोई आसान काम नहीं है।
घर आ गया तो रमनी दरवाजे पर ही खड़ी थी दोनों को देखकर बोली,"लड़कियों सही से पढ़ी भी हो या बस यूं ही ….."
सिया और जिया ने धीमी सी आवाज में कहा,"जी बड़ी मां आज पहला दिन था तो थोड़ा बहुत……" जैसे ज़बान तालू से चिपक गई थी उन दोनों की।
यह कहकर दोनों अंदर की ओर दौड़ पड़ी।अपने कमरे में जाकर फटाफट कपड़े बदले इतने में कमला ने खाना लगा दिया। दोनों खाना खाकर आराम करने के लिए अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी ही थी कि तभी सिया ने जिया से पूछा ,"जिया तुझे नहीं लगता कि ये जो नसीब है वो गरीब घर से होकर भी इतने महंगे कोचिंग संस्थान में कैसे पढ़ता है?"
"हां दीदी। मैंने भी उसे अपनी पंचर साईकिल को ठीक करते देखा था ।तभी कमल उसे अपनी गाड़ी में बैठा कर ले गया। कितनी पक्की दोस्ती है दोनों की । मैंने देखा दोनों क्लास में भी साथ ही बैठें थे।लो… इतनी बातें हो गई हम सब के बीच और हमने उन्हें अपना नाम बताया ही नहीं। चलों कोई नहीं कल बता देंगे।"
सिया को नसीब का स्पर्श अंदर तक गुदगुदा रहा था।शायद ये एक नया अहसास था उसके लिए।
कहते हैं अगर एक बच्चे को बार बार ये कहां जाएं कि बेटा तुम उस कमरे में मत जाना ,तुम मत जाना ।पर उसे जब भी मौका मिलता है वो उस कमरे में जाकर ही दम लेता है ।शायद यही बात सिया के साथ भी हो रही थी।रमनी बार बार उन दोनों को टोकती थी कि प्यार व्यार के चक्कर में मत पड़ना तो लग रहा था जैसे भगवान भी यही चाहते थे कि जिया और सिया प्यार में पड़े और रमनी जो कभी प्यार की पुजारिन थी वो एक बार फिर से वैसी ही हो जाए और प्यार को किसी की बदनसीबी ना समझकर भगवान की तरफ से एक तोहफ़ा माने।
पर जो भगवान ने किस्मत की लकीरों में लिख दिया था उसे कोई नहीं बदल सका और ना ही सकता है।
अगले दिन जब दोनों बहनें कोचिंग संस्थान पहुंची तो कमल और नसीब को गेट पर उन दोनों की प्रतीक्षा करते पाया।जैसे ही वो गाड़ी से बाहर निकली दौड़ कर दोनों दोस्त उनके पास आये और बोले,"आज बड़ी देर कर दी । लेक्चर शुरू होने वाला है।हम तुम दोनों की ही राह देख रहे थे ।बाई द वे….तुम दोनों ने अपना नाम बताया ही नहीं ।" कमल कल की आप ,आप से आज तुम पर आ गया था।
"ओह…हमें भी कल घर जाकर याद आया कि हम आप दोनों को अपना परिचय करवाना तो भूल ही गये ।वैसे इन्हें सिया और मुझे जिया कहते हैं । मशहूर जोगिंदर टैक्सटाइल कम्पनी की मालकिन रमनी देवी की बेटियां हैं हम ।" जिया ने चहकते हुए कहा।
जिया जैसे आजादी की हवा में सांस लेकर ओर मुखर हो गई थी ।वैसे भी वो सिया से ज्यादा चुस्त थी ।सिया हमेशा सहमी सी शर्मीली सी और घबराई सी रहती थी।
कमल भी आश्चर्य चकित रह गया और बोला "अच्छा अब लोग झूठ भी बोलने लगे हैं हमने तो सुना है उनके दो बेटे ही है एक को तो बिजनेस में इंटरेस्ट ही नहीं है तो वो सरकारी नौकरी में चला गया और दूसरा अभी पढ़ रहा है।"
"तुम मत मानों हम उन्हीं की ही बेटियां हैं।" यह कहकर जिया की आंखों के कोर गीले हो गए।वह सोचने लगी बड़ी मां ने तो हमारे वजूद को ही खत्म कर रखा है ।हर जगह बस रवि और बड़े भाई का नाम ही लेती है ।ऐसी क्या दुश्मनी है मां को हम दोनों से।
तभी लेक्चर के लिए घंटी बजी और वो चारों अपनी क्लास में चले गए।
कमल के पिता का भी टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज में बोलबाला था ।रमनी की कम्पनी अभी उभरती हुई थी तो एक बिजनेस राइवलरी थी दोनों के बीच कोई भी कोंट्रेक्ट होता तो दोनों कम्पनियों में छीनाझपटी हो जाती थी।इसी लिए कमल को सारी बातों का पता था।
क्लास के बीच में आधा घंटे की रिसेस होती थी । इंस्टीट्यूट में ही छोटी सी केंटीन बनी थी ।जो घर से नाश्ता करके नहीं आता था वो हल्का फुल्का नाश्ता यही कर लेता था।
सिया और जिया को तो रमनी हमेशा नाश्ता करवा कर ही भेजती थी पर वो दोनों अकसर देखती थी कमल केंटीन में ही नाश्ता करता था।कभी कभी नसीब को भी घसीट कर ले जाता था।नसीब हमेशा कैंटीन जाता हुआ हिचकता था । क्यों कि वहां की चाय ही पचास रुपए में आती थी जो नसीब के बस की बात नहीं थी ।
एक दिन जिया ने नसीब को कमल से कहते हुए सुन लिया," यार तू मुझे कैंटीन वैंटीन मत ले जाया कर ,इतना कम है कि तू मेरी फीस भर रहा है और कितने अहसानों के बोझ से लादे गा मुझे ?इतने अहसान मत कर जो मैं तुझे नजर उठाकर भी ना देख सकूं।"
कमल झूठी नाराजगी जताते हुए कहता,"अबे चुप कर जा ,तू भाई है मेरा ।साले आगे से ऐसे बोलेगा तो ऐसा मारुंगा कि नानी याद आ जाएंगे।"
जिया ने जब ये बात सुनी तो उसका मन मचलने लगा कि आखिर ऐसा क्या रिश्ता है दोनों में जो दोनों एक दूसरे के लिए जान देने को भी तैयार हैं।
धीरे धीरे पूरे इंस्टीट्यूट में इन चारों की दोस्ती के चर्चे होने लगे।रुबी(वही लड़की जिसने सिया को धक्का मारा था)तो उन्हें देखकर हर बार यही चिल्लाकर बोलती ,"देखना ये दोनों एक दिन मुंह की खायेगी।ये अमीर लौड़े किसी के संगे नहीं होते।"
सिया और जिया को एक महीना हो गया था इंस्टीट्यूट जाते ।सिया को ना जाने क्यों ऐसे लगता था जैसे नसीब की आंखें उसको अपनी ओर खींच रही है पर दूसरे ही पल बड़ी मां की आवाज उसके कानों में गूंज जाती
"अगर प्यार व्यार के चक्कर में पड़ी तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।"
लेकिन हाय रे दिल ।वो उसका क्या करें जो नसीब को देखते ही सुपर फास्ट ट्रेन की तरह धड़कने लगता था।
एक रात जिया और सिया दोनों अपने बेड पर सो रही थी तभी सिया की आंख खुली उसने देखा एक परछाईं उनके बेड के चारों ओर घुम रही है।
(क्रमशः)