समय का पहिया घुमता रहा ।रमनी और जोगिंदर अपनी गृहस्थी मे रम गये । जोगिंदर शहर चला गया पढ़ने । वहां से अपनी पढ़ाई पूरी करके सरकारी नौकरी पर लग गया था ।रमनी जोगिंदर की पढ़ाई के दौरान गांव मे ही रही। दो बच्चों की मां बन गयी थी। दोनों ही बेटे थे ।पर बेटी की इच्छा मन मे ही रह गयी थी ।उसकी मां हमेशा कहती थी जिस घर बेटियां नही होती वह देहरी कुंवारी रह जाती है । इसलिए उसने एक बार और कोशिश की कि इस बार बेटी ही हो जाएं।
पर कहते है ना बच्चा अपना भाग साथ लेकर आता है ।जैसे ही रमनी गर्भवती हुई। जोगिंदर की नौकरी लग गयी ।इधर सास ससुर बीमार रहने लगे थे ।रमनी ने उनकी खूब सेवा की ।पर कहते है काल के ग्रास से कौन बच सका है ।वो दोनों भी काल कवलित हो गये।अब रमनी अकेली रह गयी थी गांव मे ।दोनो बच्चे छोटे थे और वह स्वयं गर्भ से थी । इसलिए जोगिंदर को अब उसकी चिंता होने लगी थी ।
वह तो अब शहर ही रहने वाला था ।उसने शहर मे ही बड़ा सा सुंदर सा घर खरीद लिया था ।वो घर किसी समय किसी की पुश्तैनी हवेली हुआ करती थी । जोगिंदर ने उसे लेकर नये सिरे से सब काम करवाया था। वह रमनी को शहर ही लाना चाहता था । गांव मे अब कुनबा उसे टिकने नही देता था। इसलिए जोगिंदर ने अपना सारा लेनदेन जमीदारी अपने विश्वास पात्र आदमियों को समभलवा दी थी ।जो उसके पिताजी के समय से ही उनके वफादार थे ।
कहते है जब धागा टूटता है फिर नही जुड़ता।अगर जुड़ता है तो उसमे गांठ पड़ जाती है ।वही हाल रमनी का था । ब्याह के समय जो किस्सा चंचला का उस से छुपाया गया था ।वह धीरे धीरे उस पर उजागर हो चुका था।उसे ये पता चल गया था कि जोगिंदर के पीछे उसकी पूर्व जन्म की प्रेमिका थी जो ब्याह के समय उसे(रमनी) को अपने वश मे करके साथ ले जाने वाली थी ।सोतिया ढाह होती ही ऐसी है । चंचला जा चुकी थी लेकिन वो कही ना कही अभी भी उन दोनों के बीच खड़ी थी ।अगर जोगिंदर कभी रमनी को डांट भी देता तो रमनी छूटते ही बोलती ," हां हां तुम मुझे थोड़ी ना प्यार करते हो ।तुम तो उसी से प्यार करते थे जो तुम्हारे पीछे पीछे गांव तक पहुंच गयी थी।"
अब जोगिंदर उसे क्या समझता कि वह उसे कितना चाहता है।ये सब सुनकर एकबार तो जोगिंदर की आंखें भी नम हो जाती थी वह उस पगली को कैसे समझाए कि वह उसके लिए कितना मायने रखती थी ।उसके लिए वह अपने माता पिता के विरुद्ध खड़ा हो गया था ।शादी के बाद जोगिंदर की मां को रमनी एक आंख ना भाती थी पर बेटे की पसंद थी वो ,तो इसलिए उसकी मां ने समझोता कर लिया था ।वरना वह अल्हड़ रमनी जागीरदार के यहां बहू बनने लायक किसी भी तरीके से नही थी। जोगिंदर की मां ने उसे एक एक काम करना अपने हाथों से सीखाया ।सास बहू के बीच का धुंधलका तो हट गया था ।मतलब उनका रिश्ता तो सहज हो गया था ।पर जोगिंदर के पिता के मन मे मरते दम तक यही बात रडकती रही कि बेटे ने ये क्या कर दिया ।पर जब पोते हो गये तो दादा अपने पोतों मे ही रम गये।
रमनी के भी धैर्य का जवाब नही था ।सब कुछ चुपचाप सहन करती रही अपने जोगिंदर के लिए ।पर कभी कभी पति पत्नी मे नोक झोंक हो जाती तो रमनी कहती "मुझे पता है तुम्हारे और मेरे बीच मे अभी भी चंचला खड़ी है ।"
अकसर दोनों के बीच बहस बाजी हो जाती थी ।
अब तो माता पिता दोनों ही भगवान को प्यारे हो गये थे तो जोगिंदर ने शहर जाने का प्रोग्राम बना दिया।वह रमनी से बोला,"रमनी तुम सामान बांधों। मैंने यहां की सारी व्यवस्था कर दी है ।अब मै तुम को यहां नही छोड़ सकता चलों मेरे साथ शहर चलों।"
रमनी अचरज मे उसकी ओर देखते हुए बोली,"ये क्या कह रहे हो सारी जमीदारी यू ही छोड़ कर चले जाएंगे।"
जोगिंदर बोला," तुम यहां की चिंता मत करों मैने यह पिताजी के विश्वासपात्र आदमियों को सौंप दिया है ।चाहे छोटा बच्चा भी आकर हिसाब मांगेगा तो ये तुरंत दे देंगे। मैंने शहर मे बड़ा सा मकान ले लिया है ।अब ना नुकर मत करो । जल्दी सामान बांधों।"
रमनी का मन तो नही था क्योंकि अभी वह गर्भ से थी ।दो जचचगी तो सास के हाथ ही हुई थी ।अब की बार मां के यहां जाना चाहती थी लेकिन सारा प्लान चोपट हो गया।
रमनी सामान बांधने लगी। पता नही क्यों रमनी का मन धीरे धीरे कठोर होता जा रहा था।उसका प्यार से विश्वास उठ गया था।उसके मन मे वह डर बैठा हुआ था जब चंचला ने उस पर कब्जा किया था ।शादी के बाद जब वे गड़ गंगा जा रहे थे तो उसे बताया गया था कि ये अस्थियां बड़ी दीदी की है।वह जब तो साथ चल दी थी पर बाद मे वह सोचती कि यह बड़ी दीदी कौन है ।फिर गांव की और गली पडोस की औरतें जिन्होंने ये वृतांत अपनी आंखों से देखा था वो उसके कान भरने लगी थी कि जोगिंदर ने तुम से ब्याह भी इसलिए किया था ताकि चंचला की आत्मा से छुटकारा मिल सकें।वह तुझे मार देती और ओझा जी जोगिंदर को उससे मुक्त करा देते।
ये सब सुनकर रमनी का मन खट्टा हो चुका था प्यार से ।
रमनी ने दो चार दिन मे जो सामान ज़रूरी था वो बांध लिया और शहर की ओर कूच करने की तैयारी कर ली थी ।
कल उन्हें शहर जाना था इसलिए रमनी एक दिन के लिए अपनी मां से मिलने चली गयी ताकि जचगगी के समय मां का आना पक्का हो जाए।
जोगिंदर ने भी सोचा क्या पता कब रमनी का गांव आना होगा एक रात वह अपनी मां से भी मिल आयेगी।
रात को जोगिंदर सो रहा था ।पता नही अचानक से वो हड़बड़ा कर उठ बैठा ।उसकी सांसें धौकनी की तरह चल रही थी।उसने बहुत बुरा सपना जो देख लिया था।
(क्रमशः)