प्रेरित किया है इस घाटी ने,
मुझे कविता लिखने को।
आज उठा ली है कलम और डायरी,
इसके ही सौन्दर्य को कलमबद्ध करने को।।
गुजरता हूँ रोज यहाँ से,
और निहारता हूँ सौन्दर्य घाटी का।
हरे भरे पेड़ देते हैं सुकून ऑंखों को,
शुक्रगुज़ार हूँ प्रेरणा देने वाली इस माटी का।।
गर्मियों में जो पेड़ लगते हैं जले-जले से,
बरसात की चार बूँदें गिरते ही हो जाते हैं हरे उजले से।
यहाँ बहता है बरसात का पानी बहुत जोर से,
एहसास होता है गुजर रहा हूँ किसी बड़े हिल स्टेशन से।।
कभी बहुत सँकरी हुआ करती थी ये घाटी,
होती थीं दुर्घटनायें यहाँ तथा लगता था जाम जोर से।
परन्तु आज चौड़ी हो गयी है इसकी छाती,
रँग बिरंगे फूल खिल रहे हैं डिवाइडर पर और सौन्दर्य बिखेर रही है घाटी।।
समरसता के दर्शन भी होते हैं घाटी में,
बन गया है छोटे छोटे मंदिरों का समूह यहाँ।
तो पीर बाबा तथा खच्चू साहब की मज़ार भी है घाटी में,
और ऊपर विराजित हैं जौरासी सरकार जौरासी के प्राचीन मंदिर में।।
घाटी से गुजरने वाले वाहन,
श्रद्धा से हॉर्न बजाते हैं।
पुरानी मान्यता है कि ,
जौरासी सरकार दुर्घटना से बचाते हैं।।
आने जाने वाले चढ़ाते हैं प्रसाद मन्दिर में,
तो टेकते हैं माथा मज़ार पर भी।
माँगते हैं दुआ आगे बढ़ते रहने की,
हनुमान जी देते हैं अभयदान मंगलमय यात्रा पर जाने की।।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर