shabd-logo

पाँचवा दस्ता भाग 3

25 जुलाई 2022

16 बार देखा गया 16

तारा के कमरे से आने पर दीदी अपने पलंग पर ढह पड़ी और तरह-तरह से तारा की सिकंदर ऐसी तकदीर पर जलन उतारने लगी। यह जलन भी अब उन्हें  थका डालती है। अब कोई चीज उन्हेंद जोश नहीं देती - न प्रेम, न नफरत।

जिंदगी थक गई है। तन या भार पत्थ र बन गया है, जिसे न उतार पाती है, न छोड़ पाती है। उनके होश में कभी भी उनका मनचाहा न हुआ।

एक बैंक के दफ्तरी के घर पैदा हुई। पढ़ने में सदा अव्वथल आने पर भी दफ्तरी की बेटी होने से अपनी बराबरवालियों में बराबरी का दर्जा न पा सकी। उनके पास अच्छे  कपड़े नहीं, शान-शौकत नहीं। छठे में थी, तब बाप ने स्कूाल से उठाकर इनका ब्या ह कर दिया। पति-देव जुआरी, छैला और तुनुकमिजाज। दीदी हठीली, तुनुकमिजाज और रूप-रंग की मामूली। शादी के दो बरस बात ही पति ने धक्केम मारकर घर से निकला दिया। दीदी मैके नहीं गई। उसी मुहल्लेम में रही, अलग कुठरिया लेकर। छोटी बच्चियों की ट्यूशनें करने लगी। सिलाई-बुनाई, कढ़ाई-कसीदे के काम में होशियार थी। हरेक के सुख-दुख में दस कदम आगे बढ़कर शरीक होने वाली, नीयत-बात की साफ और मुँह पर खरी कह डालने वाली नौजवान लड़की - अपने जुआरी पति के अन्यााय से सताई गई अबला नारी -जब सबला बनकर अपनी मुसीबतों से मोर्चा लेने लगी तो सब के मन चढ़ गई। दीदी ने अपने बल पर पढ़कर इंटर किया। जान-पहचान और मुहल्लेन पड़ोस में भला नाम कमाया। म्यूबनिसिपल स्कूलल में मास्टसरनी हो गई। अपनी शक्ति पर दीदी जितना आगे बढ़ सकती थी, बढ़ गई। फिर भी दीदी अपने को सुख न दे सकी, शांति न पा सकी।

दीदी को इसकी झुँझलाहट है। सैकड़ों बुखार इसी न खत्म  होने वाली झुँझलाहट का सहारा लेकर अमरबेल-से बढ़ते हैं। मन की उमंग, जीवन का रस सूखता गया, सूखता गया। वही सूनापन दीदी को खाए डालता है। उसी की खीज है, उसी की आग है, जो दीदी को किसी करवट में भी चैन नहीं लेने देती।

दीदी अपने-आप के लिए एक सजा बन गई हैं। दीदी अपने से नफरत करती हैं। वह अपने-आप से बचती है। वह सारी दुनिया से बचकर चलती है। उन्हेंी सारी दुनिया से नफरत है। नफरत को पनाह मिलती है खुदपस्तीद में और उसकी भी एक हद है। लेकिन इसके लिए दीदी क्याह करें कि वह बेसाख्ता उस हद तक बाहर गुजर जाती हैं। मन के सपने सन्निपात की तरह बातों में उबल पड़ते। क्याख उन्हेंर सुख पाने का अधिकार नहीं? क्याे उन्हेंा किसी की छाया पाने का अधिकार नहीं? क्या  उन्हेंय पुरुष पाने का अधिकार नहीं? उनमें कौन-सी कमी है? रूप? मगर गुण तो है। चरित्र है। वैसे दीदी अपने को देखने-सुनने में भी किसी से कम कर नहीं मानती। हर एक के नाक-नक़्श, बोल-चाल में खोट निकालती हैं - किसी को भी नहीं छोड़ती। तब फिर क्यों  उन्हेंप किसी का प्यातर नहीं मिलता? किसी पर अधिकार क्यों  नहीं मिलता?

वह अपना अधिकार लेगी। उन्हें  पति चाहिए - कुछ अफसर, आई.सी.एस. जैसा, न हो तो डॉक्टीर ही चलेगा। मगर बँगला, कार, रेफ्रीजिरेटर, रेडियो और टेलीफोन होना निहायत जरूरी है। वह पति के साथ हवाई जहाज पर उड़ा करे, सभा-सोसायटियों में लेक्च र दिया करे - यही सब जो आज की दुनिया में एक शानदार, इज्जतदार, बड़े आदमी कहलाने की इच्छाो रखने वाले के मन में होता है, वही दीदी के मन में भी हैं। 'कुछ-कुछ' में उनके सपने 'बहुत-कुछ' हो जाते हैं, और बहुत-कुछ का अंत नहीं। अधिकारों और आजादी की अंत नहीं। जीवन मृगजल की तरह भागता चला-बेतहाशा, बेपनाह! कोई भी हो, उससे क्याी? कल्प ना का सतीत्व  तो कभी भंग होता नहीं - क्योंरकि दुनिया किसी के मन की क्याो जान सकती है? और तब-वह गंगा की तरह निर्मल है, यह दुनिया को दिखाई देती है, इसके लिए दीदी को सब से मान मिलता है।

दीदी अपने तन से, अपनी सूरत से नफरत करती थी। जितना नफरत करती, उतना ही उसे सजाने-सँवारने में, किसी तरह से प्या र के काबिल बनाने में उनका ध्याान जाता। सादगी इज्जत की निशानी है। इसीलिए दीदी बड़ी सादगी के साथ अपने को सजाती थी। कपड़ा साफ और उजला रहे, जरूरत के वक्त दिन में दो बार बदल लेती थी। मुँह और माँग चमकती रहे, चाहे दिन में बार-बार कंघे-शीशे के सामने जाना पड़ते।

दीदी पलंग से उठी। स्टूलल से लैंप उठाकर सिंगारदान की मेज पर लाई और अपने को निहारने लगी। जुड़ा खोल डाला। तारा के कमरे में जाने से पहले भी दीदी सिंगारदान की मेज पर ही थी। दीदी ने कंघा हाथ में उठाया और गुनगुनाने लगी, 'मोहब्बनत कर के भी देखा, मोहब्बत में भी धोखा है।

तारा के मास्टउननी बनने के बाद तारा की तरफ से ग्रामोफोन के रिकार्डों की फरमाइश दीदी ही किया करती, महीने में दो बार कैप्टेन वर्मा का चपरासी हाजिरी बजा आता था। तारा के साथ रहते हुए उन्हें  करीब-करीब वही मान-सम्माान, सुख भोग मिलता था, जो तारा को मिलता था। तारा रानी की मास्टकरनी की बड़ी आवभगत थी और उस आवभगत के साथ दीदी तारा के रोमांस में शरीक थी। दीदी तारा के लिए प्रेम के खत लिखती थी। तारा के पति से पाए गए प्रेम पत्र दीदी अपने हाथ में लेकर पढ़ती थी, तारा उनके कंधे से लगी हुई सुना करती थी। दीदी तारा के शरीक थी। इसके बाद खुद भी कर्नल तिवारी से खत-किताबत का सिलसिला जारी किया। तारा की तरक्की की रिपोर्ट अँग्रेजी में भेजने लगी। कर्नल ने अपने खतों में इनके काम को सराहा, पत्नीप की सहेली के नाते कुछ अपनापन भी दिया - दीदी हवा में गाँठें बाँधने लगी।

एक बार गाँव की छोटी लड़कियों को पढ़ाने का काम तारा के जिम्मेर सौंपने के लिए दीदी ने कर्नल से इजाजत माँगी। उन्हों़ने अपनापन जताने की नीयत से यह भी लिखा कि वह तारा से खूब काम लेना चाहती हैं, जिससे उसमें जिम्मे दारी की भावना बढ़े। तुरंत कर्नल का जवाब आया कि हर काम में मिसेज तिवारी की सेहत और खुशी का पहले ध्यािन रखा जाएँ।

दीदी के कलेजे में आरी चल गई। तब से गुनगुनाने का जी चाहने पर गाया करती 'मोहब्ब्त कर के भी देखा...।' फिर इसके बाद जब तारा ने अपने पति के पत्रों पर से दीदी का अधिकार हटा लिया तो वह सहसा अपने को बेआसरा महसूस करने लगी। दोनों के बीच वक्त अकेला गुजरने लगा। इसी अकेलेपन में दीदी को दो-दो तीन-तीन बार बाल सँवारने की आदत पड़ गई। तारा का ग्रामोफोन अपने कमरे में लाकर कभी घंटों अकेली बैठी-बैठी रिकार्ड बजाया करती।

दीदी हारने लगी, खीझने लगी और तड़पकर अपनी स्थिति को सँभालने लगी। वह अपने शहर और पढ़े-लिखेपन के बल पर दंभ और चतुराई के साथ तारा पर हावी होने की कोशिश करने लगी।

तब से दोनों की नजरों में जो काट आई थी, उससे दुनियादारी की नजर में तो कोई खास भेद न पड़ा, मगर उनके दिलों पर एक गहरा पर्दा जरूर पड़ गया।

छह रोज पहले कर्नल तिवारी के आने की खबर से दीदी तिलमिला गईं। उन्हें। इस बात का डर और विश्वा स हो गया कि पति के आते ही तारा उन्हें नौकरी से बर्खास्तस कर देगी।

यह शक रह-रहकर तूफान उठाने लगा। उनकी हिफाजत, चैन-आराम और पेट की समस्‍या को सुलझाने या उलझा देने की शक्ति भी किसी दूसरी स्त्री  के हाथ में है, यह खयाल दीदी की जलन को चैन न लेने देता था। अपनी इस बेबसी से वह नफरत करती थी, और इसीलिए वह तारा से नफरत करती थी। उन्हेंथ अपने ऊपर भी झुँझलाहट थी कि क्यों  उन्होंलने एक झूठे मनबहलाव को अपना सहारा बनाया।

मगर क्याे उन्हेंऊ प्रेम करने का हक नहीं? तकदीर की सिफारिश के जोर पर बेवकूफियों और निकम्मेापन के इस बंडल, तारा को तो मान-सम्माकन, रुपया-रुतबा, सामाजिक हिफाजत-सब कुछ मिल जाए और उन्हेंे जीवन भर के लिए खाली अशांति? यह कहाँ का न्याफय है? अपनी शक्ति और का‍बलियत पर जिंदगी से इतनी बहादुरी के साथ मोर्चा लेने के बावजूद उनकी रोटी और दैनिक जीवन की जरूरतें तक दूसरों की मर्जी की मुहर लगे बिना उन्हेंल मयस्सउर न हो? इसे वह कैसे बर्दाश्ति कर ले?

गिरे हुए दूध पर चौका लगाने की जिद ठानकर दीदी ने तारा से छेड़ लेनी शुरू की। उसके हर काम में, हर बात पर दीदी एक न चिप्पीद जरूर लगाने लगी, 'साजन आएँगे, देखेंगे कि उनकी देहातिन जूलियट शहर के साबुन से रगड़-रगड़ नहाने के बाद भी गाँव की बोसदगी से बसी हुई हैं।' तारा के पति आ रहे हैं, इस खयाल को उन्होंनने तारा का सबसे बड़ा डर बना दिया। हर सेकंड जाता और तारा की चिंता दूनी कर जाता। हँसी और कहकहों की दीवार उठाकर दीदी दिन-रात को छिपी मार मारने लगी। तारा कभी सँभल जाती, कभी लड़खड़ाती और कभी मुकाबला करते-करते थक जाती। दीदी हर वक्त तारा के चेहरे पर अपनी दवा का असर देखा करती। उसे देखकर खुशी दीदी के कलेजे में जहर बुझी छुरी-सी उतरती चली जाती। इस तरह वह कर्नल तिवारी के खत से बदला ले रही थी।

दीदी अपनी हेकड़ी से तारा को यह जताती कि उनकी गुण-विद्या का तेज तारा के रूप और तकदीर, दोनों से बड़ा है और उनका जन्मसिद्ध अधिकार है कि सुहाग के चुनाव में वह भी उम्मीददवारी करें। इशारे-इशारे में एक दिन उन्होंअने तारा को एक नए तर्क से चौंका दिया कि वे तारा-कर्नल के विवाह को विवाह ही नहीं मानती। शादी उम्र भर की साझेदारी है। इतनी बड़ी उम्र में छोटी उम्र की युवती से शादी करना और फिर बिना लियाकत देखे ही टीका चढ़ा देना बुद्धि के कानून से गलत है और गलती का फल एक न एक दिन जरूर ही मिलता है।

दीदी खिलखिलाकर हँसती हैं, मजाक करती हैं, ताने कसती हैं और सिंगार करती हैं। दीदी गाती हैं, 'मुहब्बलत कर के भी देखा...।' और दीदी तारा को बार-बार डसकर उलट-उलट जाती हैं। उन्हें  कल नहीं पड़ती।

सिंगारदान के आईने से ढोलक बजाकर अपनी खूबसूरती का सर्टिफिकेट ले लेने के बाद दीदी उठीं। कमरे में इधर-उधर टहलती रहीं।

अपनी किताबों और नोट बुकों में उन्हें  'नवजीवन' का वह पुराना अंक मिल गया, जिसमें पंडित जवाहरलाल नेहरू से हाथ मिलाते हुए कर्नल तिवारी की तसवीर छपी थी। दीदी ने उसे उठा लिया। देखती रही। पलंग पर आकर लेट गई और टकटकी बाँधकर देखती रही। फिर नींद आ गई।

दीदी को अपने कमरे से चलने के लिए कहने के बाद तारा पछताई। लाख बुराई होने पर भी उसे दीदी से बिगाड़ नहीं करना चाहिए था। मगर उसके पति पर कोई दूसरी स्त्री  अपना झूठा अधिकार जमाना चाहे और वह चुपचाप रहे, यह बात भी अब तारा की सहन-शक्ति से बाहर होती चली जा रही थी। अपने अमंगल से वह इस हद तक डर गई कि नफरत फूट पड़ी। वह दीदी को कुचल डालना चाहती थी।

वह चाहती थी कि दीदी को उसी दम बरखास्ति कर दिया जाएँ। यह उसके बस में न था। इसलिए वह सोचती थी कि पति के आने के बाद वह पहले दीदी को ही निकलावाकर बाहर करेंगी।

यही दूसरी उलझन उसका रास्ताक रोकती थी। उसे नहीं मालूम कि उसके पति उसके हो भी सकेंगे या नहीं। उसे नहीं मालूम कि वह अपने पति को क्यों  कर अपना बनाए। अम्मा  उसे पाउडर और कलाई की घड़ी लगा लेने के लिए जोर दे गई। दद्दू ने भी अम्माक से कहलाया है कि तारो उनके आगे नीकी-नीकी रहे। सातों विलायत घूमे, सातों इलम छाने हैं। कोई बात उनकी मर्जी से हेठी न हो। तारा सोचती कि कलाई की घड़ी, साड़ी-पाउडर से क्यां वे राजी हो जाएँगे? और जो उनकी यही चाहना रही तो फिर उसके भाग क्योंत खुले? शहरों में एक से एक पढ़ी-लिखी और फैशनवालियाँ पड़ी हैं। विलायत में तो परियों-जैसी मेमें उन्हें् मिल जाती। तब तारा से उन्हेंह क्याफ चाहिए?

तारा मन ही मन घुट रही थी। उसकी रक्षा के लिए कोई उपाय नहीं। घड़ी में वक्त आगे खिसकता जा रहा हैं। हद, घंटे-डेढ़-घंटे में उसके पति आ जाएँगे। और वह अभी तैयार भी तैयार भी नहीं हुई। उसे समझ ही नहीं पड़ता कि वह कैसे तैयार हो? उसकी सलाहकार, मददगार, दीदी भी उसकी दुश्मुन हो बैठी है। धमकियाँ देती हैं कि यह अनमेल विवाह दुखों का घर बनेगा। उसका सुहाग मुलम्मेा की तरह नकली साबित होगा और दीदी के कहे मुताबिक यह बातें सच होंगी ही, क्योंुकि वह निकम्मीी है, गँवार-देहातिन है, वह अपने पति को रिझाना नहीं जानती।

तब क्याी उसका सारा किया-धरा, सारी मेहनत और लगन, उसके अरमान, सपने - सब घंटे भर बाद धूल में मिल जाएँगे?

काश कि उसे अब भी मालूम पड़ जाएँ कि उसमें क्या  कमी है? क्यों् वह अपने पति को अपना नहीं बना सकती?

24
रचनाएँ
अमृत लाल नागर की कहानी संग्रह
0.0
अमृतलाल नागर हिन्दी के उन गिने-चुने मूर्धन्य लेखकों में हैं जिन्होंने जो कुछ लिखा है वह साहित्य की निधि बन गया है उपन्यासों की तरह उन्होंने कहानियाँ भी कम ही लिखी हैं परन्तु सभी कहानियाँ उनकी अपनी विशिष्ठ जीवन-दृष्टि और सहज मानवीयता से ओतप्रोत होने के कारण साहित्य की मूल्यवान सम्पत्ति हैं। फिर स्वतंत्र लेखन, फिल्म लेखन का खासा काम किया। 'चकल्लस' का संपादन भी किया। आकाशवाणी, लखनऊ में ड्रामा प्रोड्यूसर भी रहे। कहानी संग्रह : वाटिका, अवशेष, तुलाराम शास्त्री, आदमी, नही! नही!, पाँचवा दस्ता, एक दिल हजार दास्ताँ, एटम बम, पीपल की परी , कालदंड की चोरी, मेरी प्रिय कहानियाँ, पाँचवा दस्ता और सात कहानियाँ, भारत पुत्र नौरंगीलाल, सिकंदर हार गया, एक दिल हजार अफसाने है।
1

एटम बम

25 जुलाई 2022
2
0
0

चेतना लौटने लगी। साँस में गंधक की तरह तेज़ बदबूदार और दम घुटाने वाली हवा भरी हुई थी। कोबायाशी ने महसूस किया कि बम के उस प्राण-घातक धड़ाके की गूँज अभी-भी उसके दिल में धँस रही है। भय अभी-भी उस पर छाया ह

2

एक दिल हजार अफ़साने

25 जुलाई 2022
0
0
0

जीवन वाटिका का वसंत, विचारों का अंधड़, भूलों का पर्वत, और ठोकरों का समूह है यौवन। इसी अवस्था में मनुष्य त्यागी, सदाचारी, देश भक्त एवं समाज-भक्त भी बनते हैं, तथा अपने ख़ून के जोश में वह काम कर दिखाते

3

शकीला माँ

25 जुलाई 2022
0
0
0

केले और अमरूद के तीन-चार पेड़ों से घिरा कच्चा आँगन। नवाबी युग की याद में मर्सिया पढ़ती हुई तीन-चार कोठरियाँ। एक में जमीलन, दूसरी में जमलिया, तीसरी में शकीला, शहजादी, मुहम्मदी। वह ‘उजड़े पर वालों’ के ठ

4

दो आस्थाएँ भाग 1

25 जुलाई 2022
0
0
0

अरी कहाँ हो? इंदर की बहुरिया! - कहते हुए आँगन पार कर पंडित देवधर की घरवाली सँकरे, अँधेरे, टूटे हुए जीने की ओर बढ़ीं। इंदर की बहू ऊपर कमरे में बैठी बच्चेर का झबला सी रही थी। मशीन रोककर बोली - आओ, बुआज

5

दो आस्थाएँ भाग 2

25 जुलाई 2022
0
0
0

 अरे तेरे फूफाजी रिसी-मुनी हैंगे बेटा! बस इन्हेंआ क्रोध न होता, तो इनके ऐसा महात्मां नहीं था पिरथी पे। क्याअ करूँ, अपना जो धरम था निभा दिया। जैसा समय हो वैसा नेम साधना चाहिए। पेट के अंश से भला कोई कैस

6

दो आस्थाएँ भाग 3

25 जुलाई 2022
0
0
0

प्रेम नेम बड़ा है। - पति के क्षोभ और चिंता को चतुराई के साथ पत्नीक ने मीठे आश्वाजसन से हर लिया; परंतु वह उन्हेंक फिर चाय-नाश्ताक न करा सकी। डॉक्ट।र इंद्रदत्त शर्मा फिर घर में बैठ न सके। आज उनका धैर्य

7

दो आस्थाएँ भाग 4

25 जुलाई 2022
0
0
0

खाती हूँ। रोज ही खाती हूँ - पल्लेँ से आँखें ढके हुए बोलीं। इंद्रदत्ती को लगा कि वे झूठ बोल रही हैं। तुम इसी वक्त मेरे घर चलो, बुआजी। फूफा भी वैसे तो आएँगे ही, पर आज मैं... उन्हेंि लेकर ही जाऊँगा। नही

8

दो आस्थाएँ भाग 5

25 जुलाई 2022
0
0
0

हो रहा है, ठीक है। तो फिर दादा हमारा विरोध क्यों  करते हैं? भोला, हम फूफाजी का न्याकय नहीं कर सकते। इसलिए नहीं कि हम अयोग्यय हैं, वरन इसलिए कि हमारे न्यालय के अनुसार चलने के लिए उनके पास अब दिन नहीं

9

दो आस्थाएँ भाग 6

25 जुलाई 2022
0
0
0

तुम अपने प्रति मेरे स्नेफह पर बोझ लाद रहे हो। मैं आत्म शुद्धि के लिए व्रत कर रहा हूँ... पुरखों के साधना-गृह की जो यह दुर्गति हुई है, यह मेरे ही किसी पाप के कारण... अपने अंतःकरण की गंगा से मुझे सरस्वमत

10

धर्म संकट

25 जुलाई 2022
0
0
0

>शाम का समय था, हम लोग प्रदेश, देश और विश्‍व की राजनीति पर लंबी चर्चा करने के बाद उस विषय से ऊब चुके थे। चाय बड़े मौके से आई, लेकिन उस ताजगी का सुख हम ठीक तरह से उठा भी न पाए थे कि नौकर ने आकर एक सादा

11

प्रायस्चित

25 जुलाई 2022
0
0
0

जीवन वाटिका का वसंत, विचारों का अंधड़, भूलों का पर्वत, और ठोकरों का समूह है यौवन। इसी अवस्था में मनुष्य त्यागी, सदाचारी, देश भक्त एवं समाज-भक्त भी बनते हैं, तथा अपने ख़ून के जोश में वह काम कर दिखाते

12

पाँचवा दस्ता भाग 1

25 जुलाई 2022
0
0
0

सिमरौली गाँव के लिए उस दिन दुनिया की सबसे बड़ी खबर यह थी कि संझा बेला जंडैल साब आएँगे। सिमरौली में जंडैल साहब की ससुराल है। वहाँ के हर जोड़ीदार ब्राह्मण किसान को सुखराम मिसिर के सिर चढ़ती चौगुनी माया

13

पाँचवा दस्ता भाग 2

25 जुलाई 2022
0
0
0

कर्नल तिवारी घर बसाना चाहते थे। घर के बिना उनका हर तरह से भरा-पूरा जीवन घुने हुए बाँस की तरह खोखला हो रहा था। दस की उम्र में सौतेली माँ के अत्यासचारों से तंग आकर वह अपने घर से भागे थे। तंगदस्तीथ में ब

14

पाँचवा दस्ता भाग 3

25 जुलाई 2022
0
0
0

तारा के कमरे से आने पर दीदी अपने पलंग पर ढह पड़ी और तरह-तरह से तारा की सिकंदर ऐसी तकदीर पर जलन उतारने लगी। यह जलन भी अब उन्हें  थका डालती है। अब कोई चीज उन्हेंद जोश नहीं देती - न प्रेम, न नफरत। जिंदग

15

पाँचवा दस्ता भाग 4

25 जुलाई 2022
0
0
0

तारा जब दीदी के कमरे में पहुँची तो वह अखबार से मुँह ढाँके सो रही थी। लैंप सिंगारदान की मेज पर रखा था और दीदी के पलंग पर काफी अँधेरा हो चुका था। दबे पाँव तारा बढ़ने लगी। लैंप उठाकर पलंग के पासवाले स्टू

16

पाँचवा दस्ता भाग 5

25 जुलाई 2022
0
0
0

जब तारा सुहागवती हुई और अपनी माँ के घर की महारानी बनी, तो मलकिन का मन औरत वाले कोठे पर चढ़ गया। मलकिन को यह अच्छाे नहीं लगता था कि उनके घर में कोई उनसे भी बड़ा हो। बेटी से एक जगह मन ही मन चिढ़कर वह रो

17

पाँचवा दस्ता भाग 6

25 जुलाई 2022
0
0
0

बार-बार हॉर्न बजने की आवाज और लोगों के घबराहट में चिल्लाँने का शोर बस्तीस में परेशानी का बायस हुआ। सुखराम के बैठक में गाँव के सभी लोग बैठे हुए थे। दामाद का इंतजाम हो रहा था। बाहर पेड़ के चबूतरे के आस

18

पाँचवा दस्ता भाग 7

25 जुलाई 2022
0
0
0

महँगी के मारे बिरहा बिसरगा - भूलि गई कजरी कबीर। देखि के गोरी क उभरा जोबनवाँ, अब ना उठै करेजवा मा पीर।। मोटर के हार्न ने गीत को रोक दिया। गाड़ीवान ने मोटर को जगह देने के लिए अपने छकड़े को सड़क के क

19

सिकंदर हार गया भाग 1

25 जुलाई 2022
0
0
0

अपने जमाने से जीवनलाल का अनोखा संबंध था। जमाना उनका दोस्‍त और दुश्‍मन एक साथ था। उनका बड़े से बड़ा निंदक एक जगह पर उनकी प्रशंसा करने के लिए बाध्‍य था और दूसरी ओर उन पर अपनी जान निसार करनेवाला उनका बड़

20

सिकंदर हार गया भाग 2

25 जुलाई 2022
0
0
0

जीवनलाल का खून बर्फ हो गया। लीला मिसेज कौल के साथ घर के अंदर ही बैठी रही थी, मिस्‍टर कौल उनसे बातें करते हुए बीच में पाँच-छह बार घर के अंदर गए थे। एक बार तो पंद्रह मिनट तक उन्‍हें अकेले ही बैठा रहना प

21

सिकंदर हार गया भाग 3

25 जुलाई 2022
0
0
0

जीवनलाल ने कड़ककर आवाज दी, लीला ! लीला चौंक गई। यह स्‍वर नया था। उसने घूमकर जीवनलाल को देखा और बैठी हो गई। जीवनलाल उसके सामने आकर उसकी नजरों में एक बार देखकर क्रमशः अपनी उत्‍तेजना खोने लगे। एक सेकें

22

हाजी कुल्फ़ीवाला

25 जुलाई 2022
0
0
0

जागता है खुदा और सोता है आलम। कि रिश्‍ते में किस्‍सा है निंदिया का बालम।। ये किस्सा है सादा नहीं है कमाल।। न लफ्जों में जादू बयाँ में जमाल।। सुनी कह रहा हूँ न देखा है हाल।। फिर भी न शक के उठाएँ स

23

कुशीनारा में भगवान बुद्ध भाग 1

25 जुलाई 2022
0
0
0

कुशीनारा में भगवान बुद्ध की विश्राम करती हुई मूर्ति के चरणों में बैठकर चैत्रपूर्णिमा की रात्रि में आनंद ने कहा-‘‘शास्ता, अब समय आ गया है।’’ भगवान बुद्ध की मूर्ति ने अपने चरणों के निकट बैठे इस जन्म के

24

कुशीनारा में भगवान बुद्ध भाग 2

25 जुलाई 2022
0
0
0

‘‘अठन्नी की क्या कीमत ही नहीं होती ? इस एक अठन्नी के कारण मेरे तैतालीस रुपए खर्च हो गए। शर्म नहीं आती बहस करते हुए भरे बाजार में।’’ मेमसाहब का स्वर इतना ऊँचा हो गया था कि सड़क पर आसपास चलते लोगो— अन्य

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए