shabd-logo

पाँचवा दस्ता भाग 4

25 जुलाई 2022

20 बार देखा गया 20

तारा जब दीदी के कमरे में पहुँची तो वह अखबार से मुँह ढाँके सो रही थी। लैंप सिंगारदान की मेज पर रखा था और दीदी के पलंग पर काफी अँधेरा हो चुका था। दबे पाँव तारा बढ़ने लगी। लैंप उठाकर पलंग के पासवाले स्टूपल पर रखा, फिर धीरे से दीदी के पलंग पर बैठ गई।

तारा ने दीदी के चेहरे से अखबार हटाया। ऐसा मालूम होता था कि जैसे वह देर से सो रही हैं।

अखबार को देखकर तारा मन ही मन तड़प उठी। उसने दीदी की तरफ देखा। दीदी का सिंगार अपनी ताजगी की गवाही दे रहा है। तारा अपनी सारी चतुराई भूलकर सिर से पैर तक आग हो गई। अब तक वह इस मामले को हद से ज्यादा बहाली देती आई है, लेकिन उसके पति के आने के कुछ देर पहले तक उसके सुहाग की राह में कोई यों धरना देके बैठ जाएँ, इसे तारा किसी भी सूरत से बर्दाश्त  नहीं कर सकती। मगर उनके आने के दिन वह कोई अमंगल नहीं करना चाहती। अपने गुस्सेा पर काबू पाने के लिए उसने बड़ी गंभीरता से काम लिया। उसके जी में आया कि उठकर चली जाए। पर बिना दीदी को जताए हुए जाना भी उसे अच्छा  नहीं लगा। वह दीदी से सामना करके ही अपना अखबार ले जाना चाहती थी और उसने दीदी का हाथ झिंझोड़ा।

दीदी की नींद खुल गई। सामने थी तारा।

तारा ने छूटते ही कहा - जिसकी राह देखी जाती है, उसके सपने नहीं देखे जाते, दीदी। उठो, हाथ-मुँह धो, एक बार और सिंगार कर डालो। कहकर तारा मुस्क रा दी।

दीदी को चौंकाने के लिए यह सबसे बड़ा तमाचा था। भीतरी मार की तिलमिलाहट के साथ अब तानों के तीर सँभालती है और वह भी खास तौर से उन पर।

दीदी ने तारा के हाथ में अखबार देखा। मन हारने लगा, लेकिन अपनी बेशर्मी को जिद के साथ निभाते हुए वह उठ बैठी। दोनों हाथ सिर के बालों पर फेरते हुए जवाब दिया - मेरे पास सिंगार कहाँ? जिनके पास तरह-तरह की साड़ियाँ हो, सेट के सेट गहने हों, वे करें। मैं मास्टारनी हूँ, मेरा सिंगार विद्या है।

तारा दीदी के अचरज और गुस्सेर को और भी बढ़ाते हुए बोली - विद्या जिनके तन का सिंगार हो, उनका मन तो कोरा रहेगा ही। कहते हैं, रावण भी बड़ा पंडित था, दूसरे की पत्नीन को भगा ले गया था।

लैंप की मद्धिम रोशनी में तारा को दीदी का अकबकाया हुआ चेहरा अच्छास लगा। उसे अपने आप पर घमंड हुआ और उसी जीत के साथ उसने उठना चाहा।

दीदी ने भार से हल्केक होते हुए पूछा - जा रही हो?

तारा इस पर जम गई। विचार और मुँह की बात तुरंत बदलते हुए तारा ने हँसकर कहा - मैं कहाँ जाऊँगी भला? स्टूकल सरकाने जा रही हूँ। तेज रोशनी में अखबार पढ़ूँगी।

ऊपर से अपने को सँभालते हुए रहने पर भी तारा मन ही मन में बेकाबू हुई जा रही थी। दीदी पर अपनी जलन निकालते हुए वह अपने-आप से बेबस थी। दिमाग तीर की तरह छूट रहा था।

दीदी तारा के इस नए रुख को देखकर डर गई थी। वह आखिर इस वक्त क्यों  आई है? उसकी नजरें साफ नहीं। उनकी मुस्कुराहट जहर की बुझी हुई है। उसकी हर बात एक ठने हुए कदम की तरह उठती है। दीदी यों अचानक अपने घिर जाने की उम्मीहद नहीं करती थी, वह भी खासतौर से तारा की तरफ से। गाय कसाई की छुरी पर हमला कर बैंठे, यह एक अनहोनी-सी बात थी। दीदी किसी तरह इस मुसीबत से छुटकारा पाना चाहती थी। तारा का सामना करते हुए दीदी को एक अजीब किस्मी की कमजोरी का अनुभव हो रहा था। यह उनकी आदत और मर्जी के खिलाफ था। जिस समस्याज का दीदी कभी अपने सपनों तक में इतनी गंभीरता से सामना करने को तैयार नहीं हुई थी, उसके लिए वह जवाब क्यों  दें? और बात का सामना भी क्यों  कर करें?

दीदी ने फौरन हँसकर परिस्थिति को हल्कात बनाया। वह बोली - अरे, अब जिन्हें  हरदम अपनी नजरों के इशारे पर सलाम करते देखोगी, उन्हें  अखबारों में क्या  देखना!

दीदी की खुशामद को तारा पहचान गई, मगर जी का तनाव अभी भी कम नहीं हुआ था। जीत पर जीत का जोम बढ़ा। यह उस डर का जवाब था, जो दीदी की छाया बनकर आठ पहर उसे घेरे रहता था। तारा ने लैंप की बत्ती  जरा और ऊँची की और अखबार सामने फैलाकर उसमें नजर गड़ाते हुए हुए कहा - सलाम गैर से लिए जाते हैं, अपनों से कोई इसकी इच्छाए नहीं रखता।

कहकर तारा अखबार पढ़ने लगी। दीदी उसकी ओर देखने लगी। बात दोनों तरफ से खत्मअ हो गई।

दीदी बैठी रही, फिर धीरे-धीरे करीब खिसक आई और तारा के साथ अखबार देखने लगी।

एक शीर्षक था, 'कामंस सभा में श्रीमती लीमैनिंग रो पड़ी।'

दीदी पढ़ने लगी - आज रात पार्लमेंट की एक सदस्याड श्रीमती लीमैनिंग कामंस सभा में पुरुषों द्वारा लड़ाई के मसले पर बहस किए जाने पर रो पड़ीं।

उन्होंकने विश्वए शांति की हिफाजत के लिए स्त्रियों के कार्यक्रम का ब्यौनरा देते हुए कहा कि शांति का काम पुरुष नहीं कर सकते। यह अब स्त्रियों की जिम्मेलदारी है। अतएव मैं एक अंतर्राष्ट्री य-महिला-शांति-आंदोलन का संगठन करने जा रही हूँ।

दीदी को इस खबर से बात का सहारा मिला। तारा के एकाएक अधिकार-तेज में आ जाने से दीदी चार नजरों में गुनहगार साबित हो गई थी। वह अपने-आप में बड़ा बेपनाह महसूस कर रही थी। अपने बीच की लड़ाई पर शांति की खबर का गिलाफ चढ़ाते हुए उन्होंाने कहा - सच है, लड़ाई पुरुष ही करते हैं। शांति का काम औरतें ही कर सकती हैं।

तारा बोली - किसी का ठेका नहीं है। लड़ाई वही करता है, जो झूठा घमंड करता है - चाहे औरत हो या मरद।

दीदी खिसियाते हुए बोलीं - मैं दुनिया की बात करती हूँ। अखबार उठाओ, जहाँ देखो वही लड़ाई तबाही... यह भी भला कोई जीवन है!

तारा ने सिर उठाकर दीदी की ओर देखते हुए तमक के साथ जवाब दिया - यही बात जब मैं कहती थी, तब तुम राष्ट्रे और सिद्धांत और न जाने क्या -क्याै बालिस्टलरी करके लड़ाई का पक्ष लेती थी।

दीदी ने फिर मात खाई। दीदी तारा से सहमी जा रही थी। एक हद से ज्यादा उनके मिजाज के लिए यह कतई नागवार था। उनमें तड़प आई, बोली - हाँ, मैं राष्ट्रक और सिद्धांत के नाम पर अब भी लड़ाई का पक्ष लेती हूँ। दुनिया के समाज में अभी भी जंगली आदतों का जोम बढ़ा-चढ़ा है। पशुबल बुद्धि और सच्चाई, नीति वगैरह को नहीं मानता। इसलिए फौज की शक्ति से उसे खत्म- करना ही होगा।

"तो यह पशुबल क्योंी बढ़ा है?" तारा ने पूछा - "अब तो दुनिया में इतने पढ़े-लिखे विद्वान लोग हैं, उनके हाथ सारी दुनिया की बागडोर है। फिर भी पशुबल कैसे बच जाता है?"

दीदी बोली - "दुनिया में अनपढ़-गँवारों की गिनती के सामने पढ़े-लिखे, सभ्य- बहुत कम लोग हैं।"

तारा तड़पकर बोली - "और जो पढ़े-लिखें सभ्य  लोग हैं, वे ही क्यात सभ्ययता दिखला रहे हैं? पराया हक डकार जाना, जब रामगुहार मचाओ तो लाल-पीली आँखें दिखाकर कहना कि हम पढ़े-लिखे सभ्य  हैं। वारी जाऊँ तुम्हा री इस पढ़ी-लिखी सभ्यीता पर। झूठा घमंड करना, फिर अपने मगज में से लड़ाई के तार निकालना। ऊपर से शांति की बात चलाना। उँह!"

तारा अखबार उठाते हुए उठ खड़ी हुई।

24
रचनाएँ
अमृत लाल नागर की कहानी संग्रह
0.0
अमृतलाल नागर हिन्दी के उन गिने-चुने मूर्धन्य लेखकों में हैं जिन्होंने जो कुछ लिखा है वह साहित्य की निधि बन गया है उपन्यासों की तरह उन्होंने कहानियाँ भी कम ही लिखी हैं परन्तु सभी कहानियाँ उनकी अपनी विशिष्ठ जीवन-दृष्टि और सहज मानवीयता से ओतप्रोत होने के कारण साहित्य की मूल्यवान सम्पत्ति हैं। फिर स्वतंत्र लेखन, फिल्म लेखन का खासा काम किया। 'चकल्लस' का संपादन भी किया। आकाशवाणी, लखनऊ में ड्रामा प्रोड्यूसर भी रहे। कहानी संग्रह : वाटिका, अवशेष, तुलाराम शास्त्री, आदमी, नही! नही!, पाँचवा दस्ता, एक दिल हजार दास्ताँ, एटम बम, पीपल की परी , कालदंड की चोरी, मेरी प्रिय कहानियाँ, पाँचवा दस्ता और सात कहानियाँ, भारत पुत्र नौरंगीलाल, सिकंदर हार गया, एक दिल हजार अफसाने है।
1

एटम बम

25 जुलाई 2022
2
0
0

चेतना लौटने लगी। साँस में गंधक की तरह तेज़ बदबूदार और दम घुटाने वाली हवा भरी हुई थी। कोबायाशी ने महसूस किया कि बम के उस प्राण-घातक धड़ाके की गूँज अभी-भी उसके दिल में धँस रही है। भय अभी-भी उस पर छाया ह

2

एक दिल हजार अफ़साने

25 जुलाई 2022
0
0
0

जीवन वाटिका का वसंत, विचारों का अंधड़, भूलों का पर्वत, और ठोकरों का समूह है यौवन। इसी अवस्था में मनुष्य त्यागी, सदाचारी, देश भक्त एवं समाज-भक्त भी बनते हैं, तथा अपने ख़ून के जोश में वह काम कर दिखाते

3

शकीला माँ

25 जुलाई 2022
0
0
0

केले और अमरूद के तीन-चार पेड़ों से घिरा कच्चा आँगन। नवाबी युग की याद में मर्सिया पढ़ती हुई तीन-चार कोठरियाँ। एक में जमीलन, दूसरी में जमलिया, तीसरी में शकीला, शहजादी, मुहम्मदी। वह ‘उजड़े पर वालों’ के ठ

4

दो आस्थाएँ भाग 1

25 जुलाई 2022
0
0
0

अरी कहाँ हो? इंदर की बहुरिया! - कहते हुए आँगन पार कर पंडित देवधर की घरवाली सँकरे, अँधेरे, टूटे हुए जीने की ओर बढ़ीं। इंदर की बहू ऊपर कमरे में बैठी बच्चेर का झबला सी रही थी। मशीन रोककर बोली - आओ, बुआज

5

दो आस्थाएँ भाग 2

25 जुलाई 2022
0
0
0

 अरे तेरे फूफाजी रिसी-मुनी हैंगे बेटा! बस इन्हेंआ क्रोध न होता, तो इनके ऐसा महात्मां नहीं था पिरथी पे। क्याअ करूँ, अपना जो धरम था निभा दिया। जैसा समय हो वैसा नेम साधना चाहिए। पेट के अंश से भला कोई कैस

6

दो आस्थाएँ भाग 3

25 जुलाई 2022
0
0
0

प्रेम नेम बड़ा है। - पति के क्षोभ और चिंता को चतुराई के साथ पत्नीक ने मीठे आश्वाजसन से हर लिया; परंतु वह उन्हेंक फिर चाय-नाश्ताक न करा सकी। डॉक्ट।र इंद्रदत्त शर्मा फिर घर में बैठ न सके। आज उनका धैर्य

7

दो आस्थाएँ भाग 4

25 जुलाई 2022
0
0
0

खाती हूँ। रोज ही खाती हूँ - पल्लेँ से आँखें ढके हुए बोलीं। इंद्रदत्ती को लगा कि वे झूठ बोल रही हैं। तुम इसी वक्त मेरे घर चलो, बुआजी। फूफा भी वैसे तो आएँगे ही, पर आज मैं... उन्हेंि लेकर ही जाऊँगा। नही

8

दो आस्थाएँ भाग 5

25 जुलाई 2022
0
0
0

हो रहा है, ठीक है। तो फिर दादा हमारा विरोध क्यों  करते हैं? भोला, हम फूफाजी का न्याकय नहीं कर सकते। इसलिए नहीं कि हम अयोग्यय हैं, वरन इसलिए कि हमारे न्यालय के अनुसार चलने के लिए उनके पास अब दिन नहीं

9

दो आस्थाएँ भाग 6

25 जुलाई 2022
0
0
0

तुम अपने प्रति मेरे स्नेफह पर बोझ लाद रहे हो। मैं आत्म शुद्धि के लिए व्रत कर रहा हूँ... पुरखों के साधना-गृह की जो यह दुर्गति हुई है, यह मेरे ही किसी पाप के कारण... अपने अंतःकरण की गंगा से मुझे सरस्वमत

10

धर्म संकट

25 जुलाई 2022
0
0
0

>शाम का समय था, हम लोग प्रदेश, देश और विश्‍व की राजनीति पर लंबी चर्चा करने के बाद उस विषय से ऊब चुके थे। चाय बड़े मौके से आई, लेकिन उस ताजगी का सुख हम ठीक तरह से उठा भी न पाए थे कि नौकर ने आकर एक सादा

11

प्रायस्चित

25 जुलाई 2022
0
0
0

जीवन वाटिका का वसंत, विचारों का अंधड़, भूलों का पर्वत, और ठोकरों का समूह है यौवन। इसी अवस्था में मनुष्य त्यागी, सदाचारी, देश भक्त एवं समाज-भक्त भी बनते हैं, तथा अपने ख़ून के जोश में वह काम कर दिखाते

12

पाँचवा दस्ता भाग 1

25 जुलाई 2022
0
0
0

सिमरौली गाँव के लिए उस दिन दुनिया की सबसे बड़ी खबर यह थी कि संझा बेला जंडैल साब आएँगे। सिमरौली में जंडैल साहब की ससुराल है। वहाँ के हर जोड़ीदार ब्राह्मण किसान को सुखराम मिसिर के सिर चढ़ती चौगुनी माया

13

पाँचवा दस्ता भाग 2

25 जुलाई 2022
0
0
0

कर्नल तिवारी घर बसाना चाहते थे। घर के बिना उनका हर तरह से भरा-पूरा जीवन घुने हुए बाँस की तरह खोखला हो रहा था। दस की उम्र में सौतेली माँ के अत्यासचारों से तंग आकर वह अपने घर से भागे थे। तंगदस्तीथ में ब

14

पाँचवा दस्ता भाग 3

25 जुलाई 2022
0
0
0

तारा के कमरे से आने पर दीदी अपने पलंग पर ढह पड़ी और तरह-तरह से तारा की सिकंदर ऐसी तकदीर पर जलन उतारने लगी। यह जलन भी अब उन्हें  थका डालती है। अब कोई चीज उन्हेंद जोश नहीं देती - न प्रेम, न नफरत। जिंदग

15

पाँचवा दस्ता भाग 4

25 जुलाई 2022
0
0
0

तारा जब दीदी के कमरे में पहुँची तो वह अखबार से मुँह ढाँके सो रही थी। लैंप सिंगारदान की मेज पर रखा था और दीदी के पलंग पर काफी अँधेरा हो चुका था। दबे पाँव तारा बढ़ने लगी। लैंप उठाकर पलंग के पासवाले स्टू

16

पाँचवा दस्ता भाग 5

25 जुलाई 2022
0
0
0

जब तारा सुहागवती हुई और अपनी माँ के घर की महारानी बनी, तो मलकिन का मन औरत वाले कोठे पर चढ़ गया। मलकिन को यह अच्छाे नहीं लगता था कि उनके घर में कोई उनसे भी बड़ा हो। बेटी से एक जगह मन ही मन चिढ़कर वह रो

17

पाँचवा दस्ता भाग 6

25 जुलाई 2022
0
0
0

बार-बार हॉर्न बजने की आवाज और लोगों के घबराहट में चिल्लाँने का शोर बस्तीस में परेशानी का बायस हुआ। सुखराम के बैठक में गाँव के सभी लोग बैठे हुए थे। दामाद का इंतजाम हो रहा था। बाहर पेड़ के चबूतरे के आस

18

पाँचवा दस्ता भाग 7

25 जुलाई 2022
0
0
0

महँगी के मारे बिरहा बिसरगा - भूलि गई कजरी कबीर। देखि के गोरी क उभरा जोबनवाँ, अब ना उठै करेजवा मा पीर।। मोटर के हार्न ने गीत को रोक दिया। गाड़ीवान ने मोटर को जगह देने के लिए अपने छकड़े को सड़क के क

19

सिकंदर हार गया भाग 1

25 जुलाई 2022
0
0
0

अपने जमाने से जीवनलाल का अनोखा संबंध था। जमाना उनका दोस्‍त और दुश्‍मन एक साथ था। उनका बड़े से बड़ा निंदक एक जगह पर उनकी प्रशंसा करने के लिए बाध्‍य था और दूसरी ओर उन पर अपनी जान निसार करनेवाला उनका बड़

20

सिकंदर हार गया भाग 2

25 जुलाई 2022
0
0
0

जीवनलाल का खून बर्फ हो गया। लीला मिसेज कौल के साथ घर के अंदर ही बैठी रही थी, मिस्‍टर कौल उनसे बातें करते हुए बीच में पाँच-छह बार घर के अंदर गए थे। एक बार तो पंद्रह मिनट तक उन्‍हें अकेले ही बैठा रहना प

21

सिकंदर हार गया भाग 3

25 जुलाई 2022
0
0
0

जीवनलाल ने कड़ककर आवाज दी, लीला ! लीला चौंक गई। यह स्‍वर नया था। उसने घूमकर जीवनलाल को देखा और बैठी हो गई। जीवनलाल उसके सामने आकर उसकी नजरों में एक बार देखकर क्रमशः अपनी उत्‍तेजना खोने लगे। एक सेकें

22

हाजी कुल्फ़ीवाला

25 जुलाई 2022
0
0
0

जागता है खुदा और सोता है आलम। कि रिश्‍ते में किस्‍सा है निंदिया का बालम।। ये किस्सा है सादा नहीं है कमाल।। न लफ्जों में जादू बयाँ में जमाल।। सुनी कह रहा हूँ न देखा है हाल।। फिर भी न शक के उठाएँ स

23

कुशीनारा में भगवान बुद्ध भाग 1

25 जुलाई 2022
0
0
0

कुशीनारा में भगवान बुद्ध की विश्राम करती हुई मूर्ति के चरणों में बैठकर चैत्रपूर्णिमा की रात्रि में आनंद ने कहा-‘‘शास्ता, अब समय आ गया है।’’ भगवान बुद्ध की मूर्ति ने अपने चरणों के निकट बैठे इस जन्म के

24

कुशीनारा में भगवान बुद्ध भाग 2

25 जुलाई 2022
0
0
0

‘‘अठन्नी की क्या कीमत ही नहीं होती ? इस एक अठन्नी के कारण मेरे तैतालीस रुपए खर्च हो गए। शर्म नहीं आती बहस करते हुए भरे बाजार में।’’ मेमसाहब का स्वर इतना ऊँचा हो गया था कि सड़क पर आसपास चलते लोगो— अन्य

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए