बार-बार हॉर्न बजने की आवाज और लोगों के घबराहट में चिल्लाँने का शोर बस्तीस में परेशानी का बायस हुआ। सुखराम के बैठक में गाँव के सभी लोग बैठे हुए थे। दामाद का इंतजाम हो रहा था।
बाहर पेड़ के चबूतरे के आसपास कुछ लोग खड़े थे, कुछ ऐन चढ़ाई के नुक्कमड़ पर खड़े थे। हॉर्न और हंगामा सुनकर सुखराम मिसिर और गाँव के बड़े लोग घबराकर बैठक से बाहर निकले। सामने से कार की रोशनी उन पर पड़ने लगी।
कार रुकी। अर्दली ने फौरन उतरकर साहब के लिए कार का दरवाजा खोला। बड़कऊ उतरकर सकपकाते हुए खड़े हो गए। कर्नल तिवारी ने कार बंद कर चाभियों का गुच्छा जेब में रखा, फिर बाहर आए। सब को हाथ जोड़कर नमस्कानर किया। सुखराम मिसिर दीन भाव से हँसते हुए आगे आए। छुटकऊ ने पैर छुए।
सभी लोग दामाद के लिए फूलहार लाए थेा सुखराम ने गोटे का हार मँगवाकर रखा था। हंगामे के कारण सब लोग यों ही बाहर निकल आए थे। जीजा के पैर छूते ही छुटकऊ को गोटे के हार की याद आई। 'अरे, हार।' कहकर वह दौड़ते हुए अंदर भागे। लोगों का ध्याणन हार पर गया। हार लाने की घबराहट मची।
सुखराम दामाद के आगे सफाई देने लगे - चढ़ाई पर सोर भया। आपका हारन सुना, तो हम लोग परान छाती में समेटकर भागे कि ई सुरनाथ...।
ससुर की बात काटकर दामाद ने कहा - कोई खास बात नहीं हुई। कुछ लोग मोटर से घबरा गए थे।
बात बड़कऊ की जबानी मिर्च-बघार के साथ अंदर पहुँची। जीजा कैसे जोर से लोगों पर गरमाए। कैसे झपाटे के साथ उन्होंमने बिरेक पर हाथ मारा। गुस्से। के मारे जीजा का चेहरा लाल-लाल हो गया। फिर कैसे खुद बड़कऊ ने लोगों को डाँटा। यह सब सुनकर मलकिन घबरा गई - कही कोई चूक न रह जाएँ। यह तारा के पास दौड़ी गई।
तारा सादा ब्लाकउज-साड़ी पहने हुए थी। गहने भी वही रोज के हीरे की तरकियाँ और नाक की कील, गले में सोने की जंजीर। माँ को देखकर तारा लजा गई। माँ की बातों पर तारा ने कहा - अम्माय, तुम फिकिर न करो। सब ठीक हो जाएगा।
अर्दली साहब का सूटकेस और होल्डारल लेकर आया। बड़कऊ अटैची और जीजा की तमगे लगी फौजी टोपी लिए हुए आए। सामान रखकर सलाम किया।
तारा ने अर्दली को सामान रखने के लिए जगह बताई और बड़कऊ के हाथ से टोपी और अटैची ले ली। बड़कऊ जैसी हड़बड़ में ऊपर आए थे, वैसे ही नीचे भागे। तारा ने अटैची टेबल पर रखी और कबर्ड खोलकर टोपी अंदर रखते हुए अर्दली से पूछा - तुम्हाैरा नाम क्याल है?"
अर्दली ने अदब से कहा - "शंकर, मेमसाब।"
'मेमसाब बनकर तारा को झेंप महसूस हुई, अजीब-सा लगा। लेकिन ऊपरी तौर पर अपने को सँभालते हुए उसने पूछा - "तुम्हाकरे साहब क्या इस बखत चाय पीते हैं।"
शंकर अर्दली ने अदब से कहा - "चाय तो वो साम को ही ले चुके हैं मेमसाब-कप्तान साहब की कोठी पर। इस बखत साब डिनर खाते हैं।"
"अच्छात!" तारा ने कहा, फिर पूछा - "घर में पहनने के कपड़े उनके इस संदूक में हैं?"
"जी हाँ।"
तारा सूटकेस की तरफ बढ़ी, कहा - "इसमें ताला बंद है।"
"चाबियाँ साहब के पास हैं।"
उनसे माँग लाओ। कहने को तो तारा कह गई, साथ ही उसके सारे बदन में एक सनसनी-सी दौड़ गई-वो अपने मन में क्यास सोचेंगे तारा के मन में एक ऐसी हलचल मच गई, जिसमें संकोच और अपनापन दोनों ही उसके जोश को बरबस अपनी तरफ खींच रहे थे। तभी दीदी ने कमरे में कदम रखा और शंकर 'अबी लाया मेमसाब' कहकर नीचे चला गया।
दीदी 'मेमसाब' पर मुस्क'राई। तारा ने मुस्कनराते हुए लाजभरी आँखों को दूसरी ओर फेर लिया। दोनों ही बिगड़ी को बनाने की चेतना लिए हुए थी। घाव अभी हरे थे और दोनों अपनी-अपनी सम्हारल रखते हुए एक-दूसरे से बरताव कर रही थी। दीदी ने पूछा - क्याअ मँगाया है मेमसाब?
जी की ललक को बनावटी गुस्सेर की आड़ में करके तारा ने कहा - देखो दीदी! अच्छीर बात नहीं।
क्या अच्छी बात नहीं साहब?
नई आवाज पर दोनों चौंक गई।
दीदी ने तुरंत हाथ जोड़कर कहा, स्वाहगतम!