केले और अमरूद के तीन-चार पेड़ों से घिरा कच्चा आँगन। नवाबी युग की याद में मर्सिया पढ़ती हुई तीन-चार कोठरियाँ। एक में जमीलन, दूसरी में जमलिया, तीसरी में शकीला, शहजादी, मुहम्मदी। वह ‘उजड़े पर वालों’ के ठहरने की सराय थी।
एक दिन जमीलन की लड़की शकीला, दो घण्टे में अपनी मौसी के यहाँ से लौट आने की बात कह, किसी के साथ कहीं चल दी। इस पर घर में चख-चख और तोबा-तोबा मचा, उसे देखने में लोगों को बड़ा मजा आया। दिन-भर बाजार के मनचले दुकानदारों की जबान पर शकीला की ही चर्चा रही और, तीसरे दिन सबेरे, आश्चर्य-सी वह लौट भी आई।
लोगों ने देखा-कानों में लाल-हरे रंग नग-जड़े सोने के झुमके, ‘धनुशबानी’ रंग की चुनरी, गोटा टंका रेशमी कुरता और लहंगा।
घर की चौखट पर पैर रखते ही पहले-पहल, मुहम्मदी ने थोड़ा मुस्कराकर, उसकी ठोड़ी को अपनी उँगलियों की चुटकी से दबाते हुए पूछा, ‘‘ओ-हो-री झंको बीबी, दो दिन कहाँ रही ?’’
शकीला केवल मुस्कराकर आगे बढ़ गई।
झब्बन मियां की दाढ़ी में कितने बाल हैं, अथवा उनकी नुमायशी तोंद का वज़न कितना है, यह तो आपको शहज़ादी ही बता सकेगी। हां, उनका सिन इस समय पचास-पचपन के करीब होगा, यह आसानी से जाना जा सकता है। एक दिन जब आप खुदा के नूर में खिजाब लगाकर शकीला से हंस-हंसकर कुछ फरमा रहे थे, तब शहज़ादी ने उनके जवान दिल पर कितनी बार थूका था, मुहम्मदी उसकी गवाह है।
अमृत लाल नागर की अन्य किताबें
अमृतलाल नागर जी का जन्म 17 अगस्त 1916 ई को गोकुलपुरा, आगरा में एक गुजराती ब्राह्मण परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम राजाराम नागर था। आपके पितामह पं. शिवराम नागर 1895 से लखनऊ आकर बस गए थे। आपकी पढ़ाई हाईस्कूल तक ही हुई। फिर स्वाध्याय द्वारा साहित्य, इतिहास, पुराण, पुरातत्व व समाजशास्त्र का अध्ययन किया। बाद में हिंदी, गुजराती, मराठी, बंगला, अंग्रेजी पर अधिकार रखा। पहले नौकरी करते रहे, फिर स्वतंत्र लेखन, फिल्म लेखन काम शुरू किया। नागर जी आकाशवाणी, लखनऊ में ड्रामा प्रोड्यूसर भी रहें। 1932 में निरंतर लेखन किया। शुरूआत में मेघराज इंद्र के नाम से कविताएं लिखीं। 'तस्लीम लखनवी' नाम से व्यंग्यपूर्ण स्केच व निबंध लिखे तो कहानियों के लिए अमृतलाल नागर मूल नाम रखा। अमृत के भाषा सहज, सरल दृश्य के अनुकूल है। मुहावरों, लोकोक्तियों, विदेशी तथा देशज शब्दों का प्रयोग आवश्यकतानुसार किया गया है। भावात्मक, वर्णनात्मक, शब्द चित्रात्मक शैली का प्रयोग इनकी रचनाओं में हुआ है। अमृतलाल नागर हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। उन्हें भारत सरकार द्वारा १९८१ में साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। अमृतलाल नागर जी का जन्म 17 अगस्त 1916 ई को गोकुलपुरा, आगरा में एक गुजराती ब्राह्मण परिवार में हुआ। आपके पिता का नाम राजाराम नागर था। आपके पितामह पं. शिवराम नागर 1895 से लखनऊ आकर बस गए थे। आपकी पढ़ाई हाईस्कूल तक ही हुई। उन्होंने 31 जनवरी 1932 को प्रतिभा से शादी की। प्रतिभा का वास्तविक नाम सावित्री देवी उर्फ बिट्टो था। उनके चार बच्चे थे उनके नाम कुमुद नगर, शरद नगर, डॉ. अचला नागर और श्रीमती आरती पंड्या है।
अमृतलाल नागर ने हाईस्कूल तक शिक्षा प्राप्त की। लेकिन निरन्तर स्वाध्याय द्वारा उन्होंने साहित्य, इतिहास, पुराण, पुरातत्व, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान आदि विषयों पर तथा हिन्दी, गुजराती, मराठी, बांग्ला एवं अंग्रेज़ी आदि भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। हिंदी, गुजराती, मराठी, बंगला, अंग्रेजी पर अधिकार रखा।
अमृतलाल नागर हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकारों में से एक थे। उन्होंने एक लेखक और पत्रकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन वे 7 साल तक भारतीय फिल्म उद्योग में एक सक्रिय लेखक बने रहे। उन्होंने दिसंबर 1953 और मई 1956 के बीच ऑल इंडिया रेडियो में एक ड्रामा प्रोड्यूसर के रूप में काम किया। उन्होंने नाटक, रेडियोनाटक, रिपोर्ताज, निबन्ध, संस्मरण, अनुवाद, बाल साहित्य आदि के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्हें साहित्य जगत् में उपन्यासकार के रूप में सर्वाधिक ख्याति प्राप्त हुई तदापि उनका हास्य-व्यंग्य लेखन कम महत्वपूर्ण नहीं है।D