🙏🙏🙏🌹छठ पूजा 🌹🙏🙏🙏
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अस्त उदित सूर्य पुजन को ,
न्ये वस्त्र में सब चल पड़े ,
कोई हर्षित कोई दुखयारी ,
श्रद्धा भक्ति नियमों में खड़े ।
उमंगों में निर्जला और संयम ,
शुद्धता में कोई दोष नहीं ,
कहीं कुछ भी त्रुटि मिला ना ,
किसी के मुख पर रोष नहीं ।
दुःख दर्द कोई भी समस्या ,
तनिक किसी को ख्याल नहीं ,
अपने मन को मनाया कुछ ऐसे ,
फिर कोई कुछ सवाल नहीं ।
चित्त एकाग्र ध्यान दिवाकर ,
दृष्टि अपलक तक रहीं ,
पिले लाल नारंगी रंगों में ,
लोभ लालच सब छक रहीं ।
निर्मल पावन कलकल बहती ,
धाराओं में व्रती प्रवेश हैं ,
आत्मा ही है निर्मल पावन ,
चित्त व्रती हीं उनमें प्रवेश हैं ।
चित्त सत् से जुड़ जाता है ,
परमानन्द को पा जाता है ,
उन्हीं दिवाकर प्रभाकर संग ,
उनकी सफल व्रत हों पाता है ।
गगन के दिवाकर मिंट सकते हैं ,
अन्तर्मन के सूर्य अजन्मा है ,
श्रद्धा भक्ति भी अन्तर्मन में ,
अन्तर्मन में स्नेह समर्पण जन्मा है ।
प्रथम दिवस स्नेह जन्मा ,
द्वितीय दिवस तैयारी शुरु ,
तृतीय दिवस श्रद्धा की बारी ,
चतुर्थ दिवस भक्ति गुरु ।
चारों जगे है चार दिवस में ,
पंचम दिवस हैं काया निर्मल ,
छठा दिवस विकार अस्त हुआ ,
अद्भुत सुख ज्ञान गंगा निर्मल ।
सप्तम दिवस भये शुद्ध मानव ,
अद्भुत सुख वो निराली है ,
प्रगट भए दिनानाथ अन्तर्मन ,
उजड़ विरान मन हरियाली है ।
निस्वार्थ भाव हृदय विराजे ,
सौभाग्य वर्ष में एक बार ,
छठ महापर्व स्नेह भरा ,
सत्संग का सुअवसर वार ।
अंधी दुनिया अंधियारों में ,
मनमानी विचरन कर रही ,
ठोकरें खाती गुमराह भी होती ,
ग्लानि मन में धर रहीं ।
आर्य मनोज, पश्चिम बंगाल ३१.१०.२०२२.