🌷🌷🌷🌷🙏 नारी 🙏🌷🌷🌷🌷
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दब जाने से जूति बनतीं ,
उठने से सरताज ,
खुश आप किसमें रहेंगे ,
निदान चाहिए आज ।
जिसकी पहुंच शिखर पर ,
अबला की थी हाथ ,
टूटकर भी नहीं छोड़ती ,
उसके अपनों का साथ ।
सहनशीलता अपार धैर्यता ,
दुर दर्शिता की मूरत है ,
परहित में स्वयं का ,
भूल जाती कैसी सूरत है ।
हर चीज सलीके से ,
व्यवस्थित कर देती है ,
अपनी वेदना को छुपाकर ,
औरों को सुन लेती है ।
अलौकिक गुणों से सम्पन्न ,
ममतामई है अबला ,
श्रद्धा लाज आभूषण इसके ,
अप्रत्यक्ष रूप से है सबला ,
सृष्टि के तु मूलाधार ,
पालन रक्षा भी करतीं हैं ,
आठो प्रहर में चतुर्थ रूप ,
सुलभता से तु धरती है ।
व्यवस्था में मातृरुपा ,
स्वच्छता में बहना प्यारी ,
भोजन कराती सुपुत्री बन ,
बगल में होती है नारी ।
ग़लती किस्से ना होता ,
वंचित नहीं है कोई ,
रखतें हैं अकड़ इतना ,
तड़प तड़पकर वो रोई ।
उसकी आंसू छिन लेते ,
सुख चैन समस्त सारा ,
हंसी उसकी लक्ष्मी स्वरूपा ,
घर आंगन होता प्यारा ।
अपनी मनकों सभी ने बांचें ,
उसकी मन को नाही ,
बहुत अरमाने है संयोयी ,
मनोकुंज के माहीं ।
पुरुष के शक्ति सहायक ,
हृदय का झनकार है ,
उसके बिना घर आंगन सूना ,
पुरुष के श्रृंगार हैं ।
अंतिम प्रयन्त साथ निभातीं ,
व्यथाएं अपनी बिसरा देती ,
मन के भाव वो पढ़कर ,
अन्दर के वेदना हर लेती ।
आर्य मनोज , पश्चिम बंगाल २५.११.२०२२.