❤️❤️❤️ क्षणिक प्रेम ❤️❤️❤️
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क्षणिक प्रेम पाकर उठ बैठी ,
बेलथ पड़ीं थीं बिस्तर पर ,
अस्ताचल से आत्मा लौट चुकी ,
उठने से पूर्व बिस्तर पर ।
प्रेम परिप्लावित माधुर्य वचन ,
श्रवण हुई धीमी गति ,
आश्चर्यजनक हृदय स्पंदन ,
टल गई अनहोनी क्षति ।
विह्वल मन बिटिया मिलन को ,
देखन को तरसे अंखियां ,
नीयति की अवधि पूर्ण कगार पर ,
बेलथ पड़ीं थीं वो दुखिया ।
अविराम काल का बढ़ता कदम ,
क्षणिक प्रेम सम्मुख थम गया ,
फफक पड़ी उसकी दोनों अंखियां ,
हृदय का अक्षुण्ण टुकड़ा मिल गया ।
देख विह्वल हंस उड़ गया ,
अंखियों में प्रेम बुंद दें गया ,
बुंद से सृजन राजहंस ,
वापस जा बुंद मिल गया ।
आर्य मनोज, पश्चिम बंगाल १६.११.२०२२.