" पुननिर्माण इतिहास "
कर अद्भुत यत्न उन्होंने ,
संयोया हों जो चमन ,
कितने सपने कितने आंकक्षाए ,
सम्हाल रखा था अन्तर्मन ।
बुद्धि इतनी प्रखर थी ,
कि... हरकतों से ज्ञात हो जाता ,
सूर्य चन्द्र तारों को देख ,
भूत भविष्य वर्तमान गोचर हों जाता ।
कुछ पंक्षी पशुओं को देख ,
अनहोनी अवगत हो जाती ,
संतोष क्या चिज़ होता है ,
भुजंग श्वान से समझ आ जाती ।
जहां के पशु पंक्षी हों दुर दर्शी ,
बाल वृद्ध रहते प्रयत्न रत ,
विश्वगुरु विश्व विजेता ,
है हमारा पुज्य आर्यावर्त ।
जिन्होंने हमारी संस्कृति रचाया ,
उन्हें हमारी आन्तरिक नमन ,
जीना सिखाया समृद्ध बनाया ,
है तुम्हें कोटि कोटि नमन ।
समय चक्र चलाया ऐसा ,
अंग्रेजीयत के भूत हुआं सवार ,
आहिस्ता आहिस्ता दीमक लगा ,
संस्कृति खोकली मैकाले की वार ।
मिटा ना सका नामों निशान ,
गौरवशाली संस्कृति हमारी ,
दिल दिमाग में संयोया हमने ,
औकात कहा मिटाने को तुम्हारी ।
रोक सको तो रोक लो ,
रुख़ मुड़ चुका इतिहास के ओर ,
हों रहा पुननिर्माण इतिहास ,
नवयुग का हुआ है भोर ।
आर्य मनोज , पश्चिम बंगाल २७.१२.२२.