💥💥💥 जनसंख्या वृद्धि 💥💥💥
⛪⛪⛪⛪ ✍️ ⛪⛪⛪⛪⛪
दादें परदादें के काल में ,
बच्चे बच्चियां छः सात ,
फिर भी खुशहाल परिवार रहा ,
पर्याप्त रहा दाल और भात ।
कार्य से जुड़ा समान्य रहा ,
प्रायः सभी थे खेतीहर ,
धेनू भैंस दो चार बैल ,
प्रायः सभी के घर घर ।
कुंए से सिंचाई रहा ,
जैविक उत्पाद प्रचुर ,
बीमारी बहुत कम रही ,
निरोग रहा हरेक पुर ।
उपयोग रहा स्वदेशी ,
स्वाभिलंब भारत हमारा ,
इसलिए सब सस्ता रहा ,
भोज्य वस्त्र श्रृंगार सारा ।
आज खेतीहर अल्प हुआं ,
धेनू दुर्लभ हों गई ,
ट्रेक्टर दौड़ रहा खेतों में ,
बैल धेनू सब लुप्त भई ।
नियंत्रण में है हम सभी ,
हम दो और हमारे दो ,
नियंत्रण रहित अल्प संख्यक ,
बच्चे अनगिनत रखतें है ओ ।
ऑनलाईन सब कार्य होता ,
धूल कंकड़ से भेंट नहीं ,
सर्वोच्च ओहदा फैशन पाया ,
स्वदेशी का अपडेट नहीं ।
स्वदेशी जब तक अपडेट ना होता ,
स्ट्रोंग नहीं हम तब तक ,
जनसंख्या वृद्धि किस प्रकार ,
कोई ना समझा अब तक ।
जिसे जो समझ में आता ,
कर रहा होता बकबक ,
कास कोई लेख उद्देश्य को ,
ध्यान देता अब तक ।
आर्य मनोज, पश्चिम बंगाल १५.११.२०२२.