🌹🌹 नारी का सम्मान 🌹🌹
ईक सौख है सुंदर दिखने का ,
वहीं सौख है सुंदरता प्रदर्शन का,
सुझ बुझ यू बिसर गई ,
दोषी बनीं अंग प्रदर्शन का ।
घर में किसी को फिक्र न थी ,
ढोल बज गए सारी गलियों में ,
मेरी आकांक्षा समस्या बनी ,
आबरु की दिवालियो में ।
मेरी हठ नादानी बचपना कि ,
छोटे वस्त्र मन को भा गई ,
लड़खड़ाई मेरी ऊंची चट्टिया,
अक्ल ठिकाने आ गई ।
तमाशे बनी ठहाके लगी ,
हुई बहुत ठिठोलीया ,
आत्मसम्मान का ज्ञात हुआ ,
प्रहार की सारी बोलियां ।
कास.. कोई हाथ बढाकर ,
क्षणिक सहारा दें पाता ,
उन समुह में कोई तो होता ,
अबला को सुरक्षा दें पाता ।
शायद सुरक्षा के पात्र नहीं थी,
तो फिर मानवता कहा खो गई,
निर्लज्जता मुझमें उन सभी में,
दोनों में अंतर कहा रह गई ।
वो हंसे मुझे निर्लज्ज समझकर,
मैं हंसी मानवता वीहिन समझकर,
अपने घर को ज्यों ही मुड़ीं ,
पुकारा किसी ने बहन समझकर ।
अपनी हवाई चप्पल दें दीं ,
विछिन्न मन को दिलासा दिलाई ,
उन सबको बहुत धिक्कारा ,
तुम सबको बस पराई समझ आई,
सुंदर फूलों के हार मे ,
लाॅकेट गुलाब एक होता है ,
भैया ने सम्हाला मुझको ,
उन पर बहुत गर्व होता है ।
नारी का सम्मान उन्होंने जाना ,
अपना पराया बिसराकर ,
भेद भाव की सोच नहीं ,
ज्यों गगन में है दिवाकर ।
आर्य मनोज, पश्चिम बंगाल १९.१०.२०२२.