🌷🌷🌷🌹 अलबेली सुबहा 🌹🌷🌷🌷
दो वक्त भोजन के दौरान ,
तिखी तानों का वार झेलना,
मुख खुलने से अंगारे बरसे ,
अंसुवन के संग था खेलना ।
निवाले अन्दर जाते नहीं ,
लें जाने थे जरूरी ,
अन्दर ही अन्दर घुट रहा था,
थी बहुत मजबूरी ।
विफल का कारण धन रहा ,
फिर भी प्रयास हो रहा ,
हर ठोकरें घाव कर रहे ,
तिल - तिल इच्छा मिट रहा ।
अनगिनत प्रयास और घाव ,
विदृण हृदय को कर दिए ,
निकम्मा बेचारा मुझे बनाकर,
कुछ सिख देकर चल दिए ।
मजबुरियों कि वार ने मुझको,
अब कर्मठ बना दिए ,
दुर दिख रही थी मंजिल ,
मन को मेरे मना दिए ।
लक्ष्य बना है मेरी ,
अलबेली सुबहा की शुरुआत हो,
भटक ना जाए पथिक कोई ,
ऐसी ही कुछ बात हो ।
अपने प्यारे सभी तो ,
होते हैं धन की भागीदारी ,
कुछ प्रयास उल्टे दिखते ,
समझ में पड़ते भारी ।
ठिक वहीं सम्बन्ध टुटते ,
बिखर जाते फूलवारी ,
मनो कुंज विरान हो जाते ,
संग कोई ना आरी पारी ।
स्वयं का प्रयास सबका विकास,
संकल्प है जरूरी ,
शुद्ध विचार लगन से प्रयास ,
यह मंत्र है जरूरी ।
आर्य मनोज, पश्चिम बंगाल २८.०९.२०२२