🌷🌷लकड़ी तेरी विचित्र कहानी 🌷🌷
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जीवन पूर्व जीवन के संग संग ,
खूबसूरत तेरी कहानी है ,
डाल पत्ते फूल और फल ,
हरेक मुकामों में काम आनी है ।
कोई भी हिस्सा लकड़ी तेरी ,
अहम भूमिका निभाती है ,
नमन है तुझको प्राण संघनि ,
हवाएं गुण गुनगुनाती है ।
तुझमें प्राण वास करते ,
तु ही प्राण दायिनी है ,
तेरी कृपा से वंचित ना कोई ,
प्राणवायु रुप में तुझको पानी है ।
जल कर भी तु प्राण बचाती ,
रसोई तुम्हीं पकाती है ,
धुवां भी किटनाशक होता ,
तेरी कोयला भी काम आतीं हैं ।
अनुकूल गुण सम्पन्न प्राण प्यारी ,
हवन यज्ञ भी करतीं हों ,
प्रदुषण मुक्त करतीं हवा को ,
अन्नपूर्णा रुप तु धरती हों ।
देव दानव मानव समेत ,
सभी को भोग खिलाती हों ,
तेरी महिमा से वाष्प बनता ,
नियत समय से जल बरसाती हों ।
जल कर तुम्हीं ठंड भगाती ,
चिता सैय्या बन जाती हों ,
मुखाग्नि किरदार तुम्हारी ,
श्राद्ध सम्पन्न करातीं हों ।
जोड़ जोड़ कर पत्ते सारे ,
सुंदर पतल बन जाती हों ,
भोजपत्र कहीं आम के पल्लव ,
शुभ मंगल प्रतीक बन आती हों ।
अंधे को पथ दिखलाती ,
झाड़ू में दिख जाती हों ,
सर्वोच्च ईंधन जग में निराली ,
असहायों को भूख मिटाती हों ।
थक जायेंगी बखान करते ,
शेष ना होंगे महिमा भारी ,
लकड़ी तेरी विचित्र कहानी ,
लिखत लेखनी अबला प्यारी ।
आर्य मनोज, पश्चिम बंगाल २३.११.२०२२.