⚖️⚖️👉समान नागरिक संहिता👈⚖️⚖️
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एक एक सभी बेचैन रहें ,
गांव घर और पड़ोस ,
मुख् में बचन मधुर नहीं ,
बोलत सभी कड़ोस ।
किसी से किसी को मेल नहीं ,
तनिक नहीं विश्वास ,
सिधी बात चुंभ जाती ,
मिथ्या है भयी सब आस ।
ढ़ूढ़ते सुयोग सभी ,
अपनी लिटि पकाने की ,
थे चौकन्ने आंखें सभी ,
मान सम्मान बचाने की ।
हर रोज हों रहा ताना तानी ,
बन गई घर घर एक कहानी ,
दुसरा विवाह जमीन जायदाद ,
किसी को वृद्धाश्रम पहुंचानी ।
हर दिन किसी किसी के यहां ,
हों रहीं पंचायती ,
उठा पटक में अन्त होता ,
बिगड़ चलीं सोसायटी ।
हर तरफ हों रहें चर्चें ,
विषय मस्तिष्क घुल गया ,
स्त्री पुरुष युवक वृद्ध ,
भय के शिकंजे फंस गया ।
सुलग उठी छोटी चिंगारी ,
जीवन विराम भी हो रहा ,
कूहराम हों रहा आंगन में ,
मातम घनेरा छा रहा ।
ख़बर सुन जेल अधिकारी ,
आश्चर्यचकित विछिन्न भये ,
उच्च अधिकारी को खबर कर ,
पुनः उक्त ग्राम गये ।
कोई हुआ ना उनसे प्रभावित ,
स्थिति हुआ कुछ ऐसी ,
उच्च अधिकारी उपस्थित हुए ,
मुद्दा न्यायालय में पेशी ,
उक्त समय पर उपस्थित भये ,
नगरवासी समेत अधिकारी ,
फैसला सुनाया अदालत ने ,
गहन सोच विचारी ।
समान अधिकार है सबकी ,
कोई भी धर्म सम्प्रदाय के प्राणी ,
परिणय जायदाद गोद लेना ,
हरगिज नहीं चलेगी मनमानी ।
तलाक़ में भी एकरुपता रहेगी ,
बना अनोखी विधान ,
"समान नागरिक संहिता" तहत् ,
हों गई सबकी मिलान ।
नाम नहीं स्थान नहीं ,
नहीं कोई पहचान ,
आर्य मनोज कि मनोभावना ,
केवल्य काल्पनिक जान ।
आर्य मनोज, पश्चिम बंगाल ०७.११.२०२२.