🌱🌱 सम्बन्धी हमारे ना छूटे 🌱🌱
क्या खूब निभाई अपनापन तूने ,
अकड़ का सरताज बनाकर ,
चतुराई तेरे छुप ना सके ,
बहुरंगी दांव पेंच अपनाकर ।
रंग बिरंगे सपनों के गुब्बारे ,
अरमां उन्हीं में बंद है ,
दौड़ पड़े हैं छूने को आसमां ,
मुहब्बत का रंग चंद है ।
सिमट सिमटकर जमीं पे बिखरे ,
रुग्ण निस्तेज बदन सारा ,
अरमानों के पोटली वर्षों के ,
धूलों में सना है यारा ।
छल कपट यदि पनपता है ,
तों जिगर वंचित कैसे रहें ,
चरित्र आचरण धूमिल हुए ,
पुरूषार्थ प्रदुषण में बहे ।
छोड़ दें गुमानो का संग ,
सम्हाल खुद को जरुरत है ,
रास्ते बहुत है सही मंजिल की ,
तलाश यदि तुझे फुर्सत है ।
कभी संयोगवश तो कभी स्वयं ही ,
समय निकालते हैं हर कोई ,
सम्बन्ध सम्हलते नहीं है स्वयं ही ,
सम्हालते है समय निकालते सोई ।
सम्बन्धि तो स्वार्थी खुब होते है ,
फिर भी सम्बन्ध स्थापित होते है ,
निभाते आए है हम सदियों से ,
जब कि घर घर कैंकयी मंथरा होती है ।
मुझसे कोई ना रूठे ,
सम्बन्धि हमारे ना छूटे,
चाहे लाख अफवाहें हों झूठे ,
हम सब का मत कभी ना फूटे ।
आर्य मनोज , पश्चिम बंगाल