🌷🌷🌷🌷 रेलयात्रा 🌷🌷🌷🌷
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घुमती धरती और घूमता आसमान ,
देखते खिड़की से बच्चे वृद्ध एक समान ,
ठाक ठुक करते परस्पर रेल पटरियां ,
हिचकोले खाते है सभी यात्री समान ।
धीरे धीरे प्रेम कि धारा ,
बह जाती डगर सुनसान ,
अपने रंग में रंग देती सबको,
स्मर्ण जब होता होते परेशान ।
परिचित हो जाता ठौर ठिकाना ,
नहीं रहता समय का ज्ञान ,
वार्तालाप वहां पर ऐसा होता ,
अपना पराया होता अनजान ।
समुच्चय मिट जाते शुभ यात्रा में ,
भेद भाव का अछूता अज्ञान ,
एक संगठित परिवार बन जाता ,
अवगत हो जाता भाईचारे का ज्ञान ।
राग द्वेष सब कुछ भूलाकर ,
यादगार सम्पर्क को बनाते हैं ,
राजसी ठाट बाट से सुशोभित ,
रेलगाड़ी में अधिक लोग आते हैं ।
सुंदर सुहाना यात्रा सुखदायक ,
मिलते है मित्र सभी के लायक ,
अपने अपने मित्रता के धुन में ,
मस्त मौला बनते है नायक ।
कुछ लोग अभिनय हद कर देते ,
प्रभाव काक स्वर अनुरूप ,
काक को लोग मार भगाते ,
नायक ही खलनायक मुवी स्वरूप ।
झगड़ा तो होता उठा पटक भी ,
रेल पुलिस भी पहुंच जाती है ,
गिरगिट के जैसे रंग बदलता ,
शिष्टाचार शिघ्र आ जाती है ।
कुछ ही देर में ढक्कन खुलता ,
कुछ मदिरे में लिप्त हो जातें ,
हटात रात्रि होहल्ला मचता ,
चोर चोरी कर जाते हैं ।
समुच्चय यादगार रेलयात्रा ,
कुछ बनते कुछ बनाते भी है ,
बार बार सफर तय करने कि ,
इच्छा पनप जाते भी है ।
आर्य मनोज, पश्चिम बंगाल २६.१०.२०२२.