🙏🙏 🌹राष्ट्रीय एकता दिवस 🌹🙏🙏
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जिस थाली में भोजन करते ,
देख - रेख उपयुक्त करते हैं ,
जल ही जीवन है ज्ञात हैं सबको ,
जल संचय सब करते हैं ।
अपने कुटुम्ब परिवार जनों को ,
हर घड़ी खबर हम रखतें हैं ,
ख्रोच भी किसी को लग सकें ना ,
संगठन पर दृष्टि रखते हैं ।
संगठित परिवार बनाते हैं हम ,
भली भांति एकता को जानते हैं ,
सामुहिक भोज हर रोज करते ,
भेद भाव नहीं हम मानते हैं ।
इसी विचार को राष्ट्र समर्पण ,
दें ध्यान प्रत्येक भाषा भाषी ,
एकता व्याप्त हो हर प्रांत में ,
हर्षित उमंगित नगर वासी ।
पर कष्ट निज को समझना ,
रहित हुईं आर्यावर्त फूलवारी ,
लोभ लालच स्वार्थ जन्माया ,
अभाव दुर्गन्ध प्रत्येक दुवारी ।
परिस्थिति यूं ही बनीं नहीं ,
असिमित आकांक्षा भारी ,
बनाया गया माहौल सोचकर ,
अब स्वार्थ सिद्धि की बारी ।
स्वार्थ सिद्ध चरम सीमा पर ,
पिसे सब मध्यम वर्गीय प्राणी ,
भिक्षुक बने हैं ढोंगी पाखंडी ,
ढोंग रचाते है सभी मनमानी ।
कोस दुकोस पर विरले मिलते ,
भये दुर्लभ मानवता पुजारी ,
जहां भी है वृक्ष नारियल का ,
सहज सुलभ पावन है भारी ।
कहते हैं वो कभी कभी -
हुआ है तुझसे कोई उपकारी ?
गयी कहा मानवता तेरी ?
बिलखति घर में गृहणी तुम्हारी ।
घर परिवार समाज अंचलों में ,
विद्रोह सुलगते भारी भारी ,
विश्वास को गोली मारा बहुतों ने ,
घुमते संघारक आरी पारी ।
जैसे जल थाली और परिजन ,
सम्हाला तुने सोच विचार ,
ना समझा कछु राष्ट्र को वैसे ,
भेद भाव भरा सम्पूर्ण भंडार ।
प्रत्येक बालक शिवा महाराणा ,
आजाद भगत विस्मिल बोस ,
बिटिया लक्ष्मी बाई आवश्यक ,
राष्ट्र चिंतन का है उद्दघोष ।
जिस धरती से आहार आकंक्षित ,
समीर महोदय रक्त संचालक ,
विश्राम करते छांव गगन के ,
मेघपुष्प पावक सभी के पालक ।
जिन्हें ये व्यवस्था अनुभूत ना हो ,
हम उन्हें क्या क्या कहेंगे ?
लानत है उन मानवता ओ की ,
उन्हें कौन सी उदाहरण देंगें ?
इसी व्यवस्थाओं से सभी हैं सृजन ,
फिर क्यूं अलग हम समझते हैं ?
लड़ते झगड़ते काटपिट करते ,
दृष्य देख बहुत ही खलते है ।
हे मां तुम्हारी हम है सन्ताने ,
तेरी आंचल धुमील होने ना देंगे ,
प्राणों को अपनी आहुति देकर ,
मुस्कराहट मुख पर ला देंगे ।
आर्य मनोज , पश्चिम बंगाल ०१.११.२०२२.