🌹🌹🌹🌹🌷 ईक बुंद 🌷🌹🌹🌹🌹
ईक बुंद संसार का सार है ,
वहीं बुंद उसकी कहानी है ,
उसी बुंद को वो तरस रहा ,
बुंद ही उसकी निशानी है ।
उसी में सृजन उसी में पालन,
लिप्त माया ने विस्मर्ण किया,
ठोकर लगी और प्यास जगी,
वहीं बुंद फिर स्मर्ण किया ।
भटक रहा खोज में उसकी ,
दर दर कि ठोकरें खाता रहा,
उम्र बिता हुई जवान तृष्णा ,
मंदमती उसे बनाता रहा ।
संयोग वस एक छलांग लगाई,
जा पहुंचा अपनी गंतव्य ,
सोच पुरानी हर एक बातों में ,
सलिके से बनाया व्यंग्य ।
परवाह ना कर उन व्यंगों की,
सराहनीय युक्तियां लगाई ,
कर प्रमाणित बुद्धि कर्म से ,
उसी बुंद में गोते लगाईं ।
था भटका फिर वापस आया,
विचित्र अभिनय करवाईं ,
जब तक ना होंगी योग्यता कि परिक्षा,
नहीं चैन कि होंगी सुनवाई ।
आर्य मनोज , पश्चिम बंगाल १०.१०.२०२२.