*मानव जीवन में षट्कर्मों का विशेष स्थान है | जिस प्रकार प्रकृति की षडरितुयें , मनुष्यों के षडरिपुओं का वर्णन प्राप्त होता है उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में षट्कर्म भी बताये गये हैं | सर्वप्रथम तो मानवमात्र के जीवन में छह व्यवस्थाओं का वर्णन बाबा जी ने किया है जिससे कोई भी नहीं बच सकता | यथा :- जन्म , मृत्यु , हानि , लाभ , यश एवं अपयश | इसके अतिरिक्त सनातन धर्म के प्रत्येक अंगों के लिए भिन्न - भिन्न षट्कर्मों का उल्लेख प्राप्त होता है | ब्राह्मणों के षट्कर्म :- अध्यापनं अध्ययन चैव , यजनं याजनं तथा ! दानं प्रतिग्रहं चैव , ब्राह्मणानां अकल्पयत् !! अर्थात :- ब्राह्मणों के मुख्य छ: कर्म पढ़ना , पढ़ाना , यज्ञ करना , यज्ञ कराना , दान लेना एवं दान देना बताया है | तांत्रिकों के षट्कर्म :- मारण , मोहन , उच्चाटन , स्तंभन , विद्वेषण एवं शांति ! योगियों के लिए जिन षट्कर्मों की व्याख्या योगशास्त्र में मिलती है उसके अनुसार :- धौति , वस्ति , नेति , नौलिक , त्राटक एवं कपाल भारती आदि हैं | इन सभी क्रियाओं से अलग प्रत्येक साधारण से साधारण मनुष्यों के लिए भी षट्कर्मों की नितान्त आवश्यकता बताई गयी है जिसे प्रत्येक सनातन धर्मी को अवश्य करनी चाहिए | ये साधारण षट्कर्म हैं :- स्नान , संध्या , तर्पण , पूजन , जप एवं होम | सनातन धर्म की यही दिव्यता है कि यहाँ यदि कठिन साधनायें बतायी गयी हैं तो मानव जीवन को धन्य बनाने के लिए सरल से सरल विधियाँ भी उपलब्ध हैं | इन्हीं विधियों के निर्देशानुसार ही हमारे देश में ब्राह्मणों , तांत्रिकों , योगियों एवं साधारण से दिखने वाले मनुष्यों ने भी समय समय पर उदाहरण प्रस्तुत करते हुए सनातन की धर्मध्वजा फहराई है | मानव जीवन में प्रत्येक वर्ग के लिए षट्कर्मों का विधान है आवश्यकता है उसे जानने की | इन्हीं विभिन्न षट्कर्मों में समस्त मानव जीवन समाहित है |*
*आज प्राय: चारों ओर यह सुनने को मिल ही जाता है कि "ब्राह्मण अपने कर्मों का त्याग कर चुका है" | आज जब पृथ्वी पर रहने वाले सभी मनुष्यों ने अपने कर्मों का त्याग कर दिया है तो मात्र ब्राह्मण को लक्ष्य करके यह टिप्पणी करना विचारणीय है | कुछ लोग तो यहाँ तक कह देते हैं कि ब्राह्मण को सिर्फ उपरवर्णित कर्म ही करना चाहिए | ब्राह्मण अध्ययन - अध्यापन करे , यज्ञ करे एवं कराये , दान ले तथा दान दे | इसके अतिरिक्त ब्राह्मण को कोई कर्म नहीं करना चाहिए | ऐसा कहने वालों को आगे जो निर्देश दिया गया है उस पर भी ध्यान देना चाहिए कि स्मृतियों में लिखा है कि आपातकाल में अपना निर्वाह करने के लिए भिक्षा व दान तो लेना ही चाहिए साथ ही कृषि , व्यापार , महाजनी (लेन देन) भी करना चाहिए | कुछ लोग ब्राह्मणों को कर्मच्युत भी कह देते हैं | यह सत्य भी कहा जा सकता है | परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसा कहने वाले धर्म व समाज के ठेकेदारों से पूछना चाहिए कि क्या क्षत्रिय एवं वैश्य आज अपने लिए बताये गये षट्कर्मों का पालन कर रहा है | क्षत्रियों के लिए बताये गये षटकर्मों :- शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनं ! दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावज: !! अर्थात :- शौर्य , तेज , धैर्य , सजगता , शत्रु को पीठ न दिखाना , दान और स्वामी भाव में से कितने का पालन क्षत्रिय समाज कर रहा है | अन्य वर्णों के लिए भी कहा गया है कि :- कृषि गौरक्ष्य वाणिज्यं वैश्य कर्म स्वभावज: ! परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजं !! अर्थात :- खेती , पशुपालन , व्यापार , बैंकिंग , कर व्यवसाय तथा शालीनता वैश्य के षट्कर्म हैं | कौन आज कितना अपने लिए निर्धारित कर्मों का पालन कर पा रहा है ?? लक्ष्य मात्र ब्राह्मणों को किया जाता है | आज समस्त मानव जाति अपने कर्मों से विमुख हो गयी है | ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य एवं शूद्र चारों ही वर्णों को अपने स्वाभाविक कर्म का ज्ञान ही नहीं रह गया है | ऐसा नहीं है कि पृथ्वी वीरों से खाली है , अभी भी चारों ही वर्णों में ऐसे व्यक्तित्व हैं जो अपने कर्मों का ज्ञान रखते हुए उसके पालन में तत्पर हैं |*
*हम क्या हैं हमारे षट्कर्म क्या होने चाहिए इसका निर्धारण स्वयं करना है | यदि किसी भी विधा का पालन न कर पाने की स्थिति हो तो साधारण मनुष्यों के लिए बताये गये षट्कर्मों का पालन अवश्य करना चाहिए |*