*हमारे देश भारत में नारी को आरंभ से ही कोमलता , भावकुता , क्षमाशीलता , सहनशीलता की प्रतिमूर्ति माना जाता रहा है पर यही नारी आवश्यकता पड़ने पर रणचंडी बनने से भी परहेज नहीं करती क्योंकि वह जानती है कि यह कोमल भाव मात्र उन्हें सहानुभूति और सम्मान की नजरों से देख सकता है, पर समानांतर खड़ा होने के लिए अपने को एक मजबूत , स्वावलंबी , अटल स्तंभ बनाना ही होगा | नारी के सम्मान में हमारे धर्मग्रंथों में अनेकों प्रसंग भरे पड़े हैं उनके अनुसार "यद् गृहे रमते नारी लक्ष्मीस्तद गृहवासिनी ! देवता कोटिशो वत्स न त्यज्यंति ग्रहहितत् !!" अर्थात :- जिस घर में सद्गुण सम्पन्न नारी सुखपूर्वक निवास करती है उस घर में लक्ष्मी जी निवास करती हैं | करोड़ों देवता भी उस घर को नहीं छोड़ते | नारी में त्याग एवं उदारता है, इसलिए वह देवी है | परिवार के लिए तपस्या करती है इसलिए उसमें तापसी है | उसमें ममता है इसलिए माँ है | क्षमता है, इसलिए शक्ति है | किसी को किसी प्रकार की कमी नहीं होने देती इसलिए अन्नपूर्णा है | नारी महान् है | वह एक शक्ति है | भारतीय समाज में वह देवी है | मनुस्मृति में कहा गया है :-- "प्रजनार्थ महाभागाः पूजार्हा गृहदीप्तयः ! स्त्रियः श्रियश्य गेहेषु न विशेषोऽस्ति कश्चन !! अर्थात :-- परम सौभाग्यशालिनी स्त्रियाँ सन्तानोत्पादन के लिए हैं | वह सर्वथा सम्मान के योग्य और घर की शोभा हैं | घर की स्त्री और लक्ष्मी में कोई भेद नहीं है | इन सभी प्रसंगों को पढ़कर यह ज्ञात होता है कि हमारे सनातन धर्म में नारियों को पूज्य एवं सम्माननीय माना गया है |*
*आज के समाज में जहाँ कुछ समुदायों में नारी को मात्र भोग्या समझा जाता है वहीं नारी ने स्वयं को स्थापित करते हुए समाज के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता के शिखर को छूने का उद्योग किया है | देश की सरकारों ने भी नारी सम्मान के लिए अनेकों योजनायें प्रारम्भ की है जिसका लाभ लेकर आज नारी पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है | इतना सब कुछ होने के बाद भी मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में कुछ विकृत मानसिकता के लोगों को देखकर विचार करने पर विवश हो जाता हूँ कि पुरुष प्रधान समाज का हवाला देने वाले कुछ लोग नारी को अभी भी मात्र अपनी सेविका एवं भोग्या समझ रहे हैं | नारी यदि पुरुष का सम्मान करके उसके द्वारा प्रताड़ित हो रही है तो यह उसकी कायरता या भय नहीं अपितु उसका पुरुष के प्रति प्रेम है जो विरोध नहीं करने देता | नारी जब बिना विरोध किये लोकलज्जा के भय से पुरुष के सभी कृत्यों को सहन करती है तो पुरुष इसे अपना पुरुषत्व समझकर स्वयं का गौरव समझने लगता है | परंतु उसी नारी के हृदय से जब उस पुरुष के प्रति प्रेम समाप्त हो जाता है और वह उग्रस्वरूप धारण कर लेती तब पुरुष त्राहि त्राहि करने लगता है | इसीलिए पुरुषों को चाहिए कि नारियों के कोमल मन पर कभी आघात न करते हुए उनको यथोचित सम्मान एवं अधिकार देते रहें | ऐसा करते रहने से नारी जीवन के सभी क्षेत्रों में स्थापित होकर आपका ही सम्मान बढ़ायेगी |*
*सौम्यस्वरूपा दुर्गा जी का पूजन बड़े धूमधाम से किया जाता है परंतु जब वही उग्रस्वरूपा महाकाली के रूप में होती हैं तो भय लगता है | सदैव ऐसे कर्म करते रहना चाहिए कि नारी सौम्य बनी रहे उसका उग्र स्वरूप यदि हो गया तो यह समाज के लिए हितकर नहीं हो सकता |*