*हमारा देश भारत विभिन्न मान्यताओं और मान्यताओं में श्रद्धा व विश्वास रखने वाला देश है | इन्हीं मान्यताओं में एक है पितृयाग | पितृपक्ष में पितरों को दिया जाने वाला तर्पण पिण्डदान व श्राद्ध इसी श्रद्धा व विश्वास की एक मजबूत कड़ी है | पितृ को तर्पण / पिण्डदान करने वाला हर व्यक्ति दीर्घायु , पुत्र-पौत्रादि , यश , स्वर्ग , लक्ष्मी , पशु , सुख - साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है | यही नहीं पितृदेव की कृपा से ही उसे सब प्रकार की समृद्धि , सौभाग्य , राज्य तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है | आश्विन मास के पितृ पक्ष में समस्त पितरों को आस लगी रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्डदान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे | हमारे शास्त्रों में कहा गया है :--- "आयु: पुत्रान्यश: स्वर्ग कीर्ति पुष्टि बलं श्रियम् ! पशून्सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात्पितृ पूजनात् !!" तर्पण व पिंडदान की आशा लेकर पितर पितृलोक से पृथ्वी लोक पर आते हैं | अतएव प्रत्येक हिंदू गृहस्थ का धर्म है कि वह पितृपक्ष में अपने पितरों के लिए श्राद्ध एवं तर्पण करते हुए अपनी श्रद्धानुसार पितरों के निमित्त दान करना चाहिए | वैसे तो हर माह आने वाली अमावस्या पितरों की पुण्यतिथि है , लेकिन आश्विन की अमावस्या पितरों के लिए परम फलदायी है | इस अमावस्या को ही "सर्वपितृ अमावस्या" अथवा महालया कहते हैं | जो व्यक्ति पितृपक्ष के पंद्रह दिनों तक श्राद्ध तर्पण आदि नहीं करते हैं, वह लोग अमावस्या को ही अपने पितृ के निमित्त श्राद्धादि सम्पन्न करके पितरों की कृपा प्राप्त कर सकते हैं |*
*आज विगत पन्द्रह दिन से चल रहा पितरों का पर्व "पितृपक्ष" के समापन का दिन है | यदि किसी को भी अपने पितरों की तिथि विशेष का ज्ञान नहीं है ऐसे सभी लोगों के द्वारा पितरों के निमित्त श्राद्ध , तर्पण , दान आदि आज के ही दिन अर्थात "सर्वपितृ अमावस्या" को किया जाना चाहिए | अमावस्या के दिन सभी पितरों का विसर्जन होता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि जिन पितरों को पूरे पितृपक्ष में तर्पण / पिण्डदानादि नहीं प्राप्त होता है अमावस्या के दिन वे सभी पितर अपने पुत्रादि के द्वार पर पिण्डदान एवं श्राद्धादि की आशा में जाते हैं | यदि वहां उन्हें पिण्डदान या तिलाञ्जलि आदि नहीं मिलती है तो वे शाप देकर चले जाते हैं | अत: श्राद्ध का परित्याग नहीं करना चाहिए | पितृपक्ष पितृ के लिए पर्व का समय है , इसीलिए इस पक्ष में श्राद्ध किया जाता है जिसकी पूर्ति अमावस्या को विसर्जन तर्पण से होती है | पितृ पक्ष के दिनों में लोग अपने पितरों की संतुष्टि के लिए संयमपूर्वक विधि-विधान से पितृ यज्ञ करते हैं , लेकिन कार्य की अतिव्यस्तता के कारण यदि कोई श्राद्ध करने से वंचित रह जाता है तो उसे पितृ विसर्जनी अमावस्या को प्रात: स्नान करने के बाद गायत्री मंत्र जपते हुए सूर्य को जल चढाने के बाद घर में बने भोजन में से पंचबलि जिसमें सर्वप्रथम गाय के लिए , फिर कुत्ते के लिए, फिर कौए के लिए, फिर देवादि बलि एवं उसके बाद चीटियों के लिए भोजन का अंश देकर श्रद्धापूर्वक पितरों से सभी प्रकार का मंगल होने की प्रार्थना करके ब्राह्मण को भोजन करा देने से श्राद्ध कर्मों की पूर्ति का फल अवश्य ही मिलता है तथा वह व्यक्ति धन, समस्त सुख आदि की प्राप्ति कर मोक्ष को प्राप्त होता है |*
*पितरों की विदाई (सर्व पितृ अमावस्या) के दिन किया जाने वाला तर्पण , श्राद्ध व पिंडदान कर्ता को सुख समृद्धि व आरोग्य प्रदान करता है | अपना भाग लेकर पितर निज लोक में जाकर सानंद समय व्यतीत करते हैं | अत: आज के दिन श्रद्धा पूर्वक पितरों की विदाई अवश्य करनी चाहिए |*