*सनातन धर्म इतना बृहद एवं विस्तृत है कि इसके विषय में जितना जानने का प्रयास करो उतनी ही नवीनता प्राप्त होती है | सनातन धर्म के संपूर्ण विधान को जान पाना असंभव सा प्रतीत होता है | जिस प्रकार गहरे समुद्र की थाह पाना एवं उसे तैरकर पार करना असंभव है उसी प्रकार सनातन धर्म की व्यापकता का अनुमान लगा पाना भी असंभव ही है | हमारे सनातन धर्म के अनुसार वर्ष भर में शायद ही कोई ऐसा दिन हो जो कि मनुष्यों के लिए एक पर्व या त्यौहार के रूप में ना मनाया जाता हो | अनेक व्रत एवं त्यौहार तो ऐसे हैं जिनको आम जनमानस जान ही नहीं पाता है | इसी क्रम में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी से प्रारंभ हुआ १६ दिवसीय महालक्ष्मी का व्रत भी है , जिसका समापन अाश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी अर्थात पितृपक्ष की अष्टमी को होता है | इन १६ दिनों में साधक अन्न का त्याग करके फलाहार रहते हुए महालक्ष्मी को प्रसन्न करने का प्रयास करता है | इस व्रत में विशेष रुप से लाल धागे में १६ गांठ लगाकर पहनने का विधान है | १६ दिन का व्रत रह पाना यदि संभव ना हो सके तो मनुष्य प्रथम दिन आठवें दिन एवं अंतिम १६वें दिन का व्रत अवश्य करें , जिससे उसे संपूर्ण व्रत का फल प्राप्त हो जाता है | सनातन धर्म की यही महानता है कि प्रत्येक व्रत एवं पर्व को सरल से सरलतम विधि से समझाया एवं उसका विधान बनाया गया है | इसी बीच सप्तमी से लेकर नवमी तक (तीन दिवसीय) चलने वाला जीवित्पुत्रिका व्रत भी महालक्ष्मी व्रत के समापन के अवसर पर किया जाता है | अश्विन कृष्ण पक्ष की सप्तमी से जीवित्पुत्रिका (जिउतिया) व्रत प्रारम्भ तो हो जाता है परंतु इसका मुख्य व्रत अष्टमी को ही माना जाता है और इसी दिन विधिपूर्वक महालक्ष्मी का पूजन करने का भी विधान है | यह व्रत करने से भगवान श्री हरि विष्णु तो प्रसन्न होते ही हैं साथ ही धन - धान्य एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है |*
*आज का समाज एवं परिवेश इतना आधुनिक होता जा रहा है की इस आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपने सनातन धर्म की व्यापकता , विधान , व्रत एवं पर्वों को भूलते चले जा रहे हैं | संसार में समस्याएं बहुत हैं मनुष्य इन समस्याओं के निराकरण के लिए अनेक उपाय किया करता है | कभी-कभी तो मनुष्य एक ही समस्या के लिए कई बार उपाय बदलता रहता है परंतु उसकी समस्या जस की तस बनी रहती है | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि कोई भी ऐसी समस्या नहीं है जिसका समाधान हमारे सनातन धर्म में ना बताया गया हो | आज यदि मनुष्य इधर से उधर भटक रहा है उसका एक ही कारण है कि वह आधुनिकता की चकाचौंध में सनातन धर्म के साहित्यों का अध्ययन नहीं कर पा रहा है | यह अकाट्य सत्य है कि संसार की सभी समस्याओं का निदान हमारे महापुरुषों ने अनेकों व्रत एवं अनुष्ठानों के माध्यम से करने का विधान बताया है | परंतु यह अनुष्ठान या इन व्रतों का पालन हम तभी कर सकते हैं जब हमें इनके विषय में ज्ञान होगा | ज्ञान तभी हो सकता है जब हम या तो अपने बुजुर्गों से नित्य चर्चा करते हुए उनका ज्ञान प्राप्त करें या फिर अपने सनातन साहित्य का अध्ययन करें | यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इन दोनों मार्गों में से आज के आधुनिक मनुष्य के पास एक भी मार्ग का अनुसरण करने का समय नहीं बचा है | यही कारण है कि आज हम सर्वगुण संपन्न होने के बाद भी स्वयं को समस्याओं से घिरा मान करके अन्य साधनों की ओर उन्मुख हो रहे हैं |*
*सनातन धर्म में बताए गए अनेक व्रत और पर्व आज की युवा पीढ़ी को पता ही नहीं है | इन्हीं विधानों में एक विधान है महालक्ष्मी का व्रत जो कि १६ दिन तक अनवरत व्रत करके मनाया जाता है | अपने सनातन के व्रत एवं पर्वों को जानने की परम आवश्यकता है |*