*सनातन धर्म में मनुष्य को जीवन जीने की कला सीखने के लिए अनेक धर्मग्रंथ हैं जिनका अध्ययन करके मनुष्य जीवन जीने की कला तो सीख ही जाता है साथ ही वह नियम पालन करके जीवन को आनंदमय बनाते हुए मोक्ष का भी अधिकारी हो जाता है | सनातन धर्म के सभी सद्ग्रन्थों में सर्वश्रेष्ठ है "श्रीमद्भागवत महापुराण" | क्योंकि यह वैष्णवों का परम धन तो है ही साथ सभी पुराणों एवं उपनिषदों का तिलक भी है | यह पुराण ज्ञानियों का चिंतन , सन्तों का मनन , भक्तों का वन्दन एवं हमारे पुण्यभूमि भारत की धड़कन है | जब मनुष्य का सौभाग्य सर्वोच्च शिखर पर पहुँचता है तब उसको श्रीमद्भागवत महापुराण कहने , सुनने तथा पढ़ने का अवसर प्राप्त होता है | यह एकमात्र ऐसा दिव्य ग्रन्थ है जिसमें बीते समय की स्मृति , वर्तमान का बोध एवं भविष्य की योजनायें बनाने के अनेक दृष्टांत समाहित हैं इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि मनुष्य को स्वयं से परिचित कराने वाला ग्रन्थ है "श्रीमद्भागवत महापुराण" | इस रहस्मयी सृष्टि में यदि सबसे अधिक रहस्यमय कुछ है तो वह है मनुष्य का जीवन , मानव जीवन के इन्हीं रहस्यों को उजागर करने वाली आध्यात्म दीप है भागवत | जिस प्रकार भूख लगने पर मनुष्य भोजन करके संतुष्ट हो जाता है उसी प्रकार मनुष्य का मन भी संतुष्ट होना चाहता है इस मन को यदि भागवतरूपी भोजन कपा दिया जाय तो यह सदैव के लिए तृप्त हो जाता है | विचार कीजिए कि मन का भोजन क्या है ? मन का भोजन है विचार , जब भागवत के माध्यम से शुद्ध एवं सात्त्विक विचार रूपी भोजन मन को प्राप्त होगा तो यह मन संतुष्ट होगा , तृप्त एवं पुष्ट होगा | इस मानव जीवन में जिसको संतुष्टि मिल जाय , जिसका मन तृप्त हो जाय उसी को शांति की प्राप्ति हो सकती है | भागवत भगवान का स्वरूप तो है ही साथ ही इसमें सभी ग्रंथों का सार एवं जीवन का व्यवहार भी है | कहने का तात्पर्य यह है कि एक अकेले श्रीमद्भागवत महापुराण से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है |*
*आज पहले की अपेक्षा अधिक विद्वान तो हुए ही हैं साथ ही भागवत के आयोजन भी समाज में अधिक हो रहे हैं परंतु मनुष्य का न तो दु:ख समाप्त हो पा रहा है और न ही उसको कहीं शान्ति ही प्राप्त हो पा रही है | विचारणीय है कि जब भागवत के कथन , श्रवण एवं पाठन से मनुष्य को सब कुछ प्राप्त होना बताया गया है तो फिर मनुष्य भागवत का अनुष्ठान कराके , पारायण करके या कथा का वाचन करके भी यदि दु:खी एवं अशान्त है तो इसका मुख्य कारण है कि मनुष्य सब कुछ तो कर रहा है परन्तु किसी भी विषय वस्तु का मनन करके उसका पालन नहीं करना चाहता | सनातन धर्म में बताये गये चार आश्रमों में सर्वश्रेष्ठ है गृहस्थाश्रम , और हम सब गृहस्थ लोग हैं, दाम्पत्य में रहते हैं | भागवत की घोषणा है कि मैं दाम्पत्य में आसानी से प्रवेश कर जाती हूं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि दाम्पत्य जीवन के सात सूत्र हैं- संयम , संतुष्टि , संतान , संवेदनशीलता , संकल्प , सक्षमता और समर्पण | इन सातों सूत्रों को एक साथ भागवत में स्पष्ट देखा जा सकता है | प्रत्येक मनुष्य आनन्द की प्राप्ति करना चाहता है और आनन्द की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करते हुए भागवत बताती है कि सत + चित + आनन्द स्वरूप परमात्मा की प्राप्ति ही मानव जीवन का उद्देश्य होता है | सत एवं चित तो सर्वत्र है परंतु आनन्द नहीं है , आनन्द यद्यपि मनुष्य की भीतर ही अप्रकट रूप में रहता है परंतु यह प्रकट नहीं हो पाता , आनन्द को प्रकट करने का मार्ग भागवत में मिलता है | यदि आनन्द रूप होना है तो सच्चिदानन्द का आश्रय लेना ही होगा यही सार तत्व बताते हुए भागवत मनुष्यों को आनन्दित करती है | वैसे तो हमारे उपनिषदों में आनन्द के कई प्रकार बताये गये हैं परंतु उनमें दो मुख्य हैं एक तो साधनजन्य आनन्द और दूसरा स्वयंसिद्ध आनन्द | साधनजन्य आनन्द तो मनुष्य प्राप्त कर लेता है परन्तु यह क्षणिक होता वहीं स्वयंसिद्ध आनन्द हृदय में तब प्रकट होता है जब मनुष्य भगवान के प्रति प्रेम प्रदर्शित करता है और यह कैसे किया जाय इसका मार्गदर्शन हमें भागवत में प्राप्त होता है |*
*हमारे वेद त्याग का उपदेश करते हैं , शास्त्र कहते हैं काम छोड़ो , क्रोध छोड़ो परंतु मनुष्य कुछ नहीं छोड़ सकता | वहीं भागवत कहती है कि कुछ छोड़ों नहीं बल्कि हमें पकड़ लो कल्याण हो जायेगा | संसार में फंसे जीव उपनिषदों के ज्ञान को पचा नहीं सकते | इन सब बातों का विचार करके भगवान वेदव्यासजी ने श्रीमद्भागवत शास्त्र की रचना की है जो स्वयं में अनुपम व अद्वितीय है |*