*मानव जीवन यदि देखा जाय तो बहुत ही सरल एवं कठिन दोनों है | इस जीवन के रहस्य को वही जान पाता है जो जीवन को एक कुशल प्रबंधक की तरह प्रबंधित करता है | मानव जीवन में भूतकाल , वर्तमानकाल एवं भविष्यकाल का बहुत ही महत्व है इन्हीं तीनों कालों पर संपूर्ण मानव जीवन टिका हुआ होता है , जो इनके रहस्यों को जान जाता है वही अपने जीवन में सफल होता है | वैसे तो तीनों कालों की अवस्था विपरीत है और यह सभी कभी एक साथ नहीं उपस्थित हो सकते हैं परंतु जब ध्यान दिया जाए तो किसी भी परिवार में यह तीनों काल एक साथ उपस्थित रहते हैं और जो भी परिवार में इन तीनों कालों के बीच सामान्जस्य बना के रखता है उसका परिवार समाज में प्रतिष्ठित हो जाता है | जो अपने भूतकाल को भूल जाता है वह वर्तमान में अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकता | परिवार में यदि एक साथ तीनों कालों को देखा जाए को मनुष्य को स्वयं के ऊपर इसको देखना चाहिए | हमारे परिवार के बुजुर्ग यदि भूतकाल हैं तो नौजवान वर्तमान काल हैं तथा बच्चों को भविष्य काल की संज्ञा दी जाती है | वर्तमान काल को आने वाले भविष्य का निर्माण सुव्यवस्थित एवं सुदृढ़ करना है तो भूतकाल अर्थात अपने बुजुर्गों का संरक्षण प्राप्त करना होगा | पूर्वकाल में हमारे यहां परिवार के संयोजन की व्यवस्था इतनी अच्छी होती थी कि पूरा परिवार एक साथ बैठकर संस्कार एवं संस्कृति की कथाएं सुन - सुनाकर भविष्य की योजनाएं बनाया करते थे | जहां बुजुर्ग अपने अनुभव का लाभ युवाओं को प्रदान करते थे और उस परिवार के भविष्य अर्थात छोटे बच्चे उनसे सीख लेते थे | कोई भी महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए भूतकाल से वर्तमान को सीख लेना ही पड़ेगा अन्यथा सुंदर भविष्य का निर्माण नहीं हो सकता | बचपन में किया गया उद्योग एवं सकारात्मकता पचपन में काम आती है , यदि नींव मजबूत होती है तो भविष्य में उस पर एक सुदृढ़ महल का निर्माण किया जा सकता है इसलिए भूतकाल , वर्तमान काल एवं भविष्य काल अर्थात बुजुर्ग , युवा एवं बच्चों का आपस में सामंजस्य होना बहुत ही आवश्यक है | बुजुर्गों के द्वारा कोई भी चर्चा करते समय युवाओं का होना तो आवश्यक है ही साथ ही हमारे भविष्य अर्थात बचपन का होना भी बहुत आवश्यक है क्योंकि भूतकाल के अनुभव को यदि वर्तमान अपने जीवन में उतारता है तो वहीं भविष्य जीवन में एक सुंदर शिक्षा लेकर समाज में प्रतिस्थापित हो सकता है | जिस परिवार में भूत , भविष्य एवं वर्तमान एकत्र नहीं हो पाते हैं वह परिवार कभी भी विकास नहीं कर सकता है |*
*आज के बर्तमान आधुनिक युग में मनुष्य यही सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा है यही कारण है कि अनेक प्रकार के दुखों से ग्रसित होकर समाज में क्रियाकलाप कर रहा है | आज के लोग भूतकाल की घटनाओं को जानने के लिए इतिहास का सहारा तो ले रहे हैं परंतु अपने भूतकाल अर्थात अपने बुजुर्गों को पढ़ने का प्रयास नहीं करते हैं | आज का वर्तमान अर्थात युवा अपने भूतकाल अर्थात अपने बुजुर्गों से ना तो कोई सीख लेना चाहता है और ना ही उनके अनुभवों का लाभ उठाना चाहता है यही कारण है कि उसका भविष्य अंधकारमय होता चला जा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज एक बात और देख रहा हूं कि युवा यदि बुजुर्ग से किसी बात पर चर्चा भी कर रहा है तो वहां पर अपने भविष्य अर्थात बच्चों को नहीं बैठने देना चाहता है | जब जहां भूत एवं वर्तमान इकट्ठे हैं वहां भविष्य का होना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि वर्तमान जब भूतकाल से अनुभव प्राप्त कर रहा हो तो वहाँ भविष्य का होना बहुत ही आवश्यक है | आज हमारे अनुभव अर्थात हमारे बुजुर्गों का समाज में क्या हाल है यह किसी से छुपा नहीं है आज का युवा बुजुर्गों को बेकार का सामान समझकर वृद्धाश्रम में पटक रहा है | विचार कीजिए कि जब युवा ही अपने बुजुर्गों से उनके जीवन का अनुभव नहीं ले पायेगी तो वह अपने भविष्य अर्थात बच्चों को क्या शिक्षा दे पायेगी | आज समाज में जो अनेक प्रकार के व्यभिचार देखने को मिल रहे हैं उसका एक ही कारण है कि आज का मनुष्य सुदृढ़ भविष्य का निर्माण नहीं कर पा रहा है | संस्कृति एवं संस्कार की शिक्षा जो बचपन को मिलनी चाहिए वह आज उनको नहीं मिल पा रही है , इसका कारण यही है कि आज परिवार में बुजुर्गों के लिए कोई स्थान ही नहीं बच पा रहा है जो अपने अनुभव , संस्कृति एवं संस्कार से बच्चों के सुदृढ़ भविष्य का निर्माण करते थे | यदि समाज को आगे ले जाना है तो भूत (बुजुर्ग) वर्तमान (युवा) एवं भविष्य (बच्चों) का कुछ देर के लिए एक साथ बैठकर सतसंग चर्चा करना ही होगा अन्यथा समाज में स्थापित हो पाना सम्भव नहीं हो सकता |*
*कोई भी परिवार , समाज व राष्ट्र तभी विकासशील हो सकता है जब भूत , भविष्य , वर्तमान तीनों का सामंजस्य बनाकर रखे अन्यथा कभी भी यह सम्भव नहीं है |*