सेहरे शादी सपने और मंजर भी देखा मौत का सबसे अलग न्यारा रिशता मिला तो वह दोस्त था ना कुछ देना मिलना और न कुछ चाह थी चोट जो लगती जरा सी भी निकलती पहले उसकी आह थी बेशक जीता होगा मुझे इस दुनिया क
चिता से उड़ती चिंगारियों को मिला न आसरा हवाओं का जिंदगी गुजारी जिनके खातिर क्या किस्सा सुनाएं उनकी वफाओं का दर्द बयां करें यदि मौत का तो जमीं क्या फट जाएगा आसमां जिन की खातिर जीवन त्याग आखिर इत
जन्म से रिश्ते मिलेतो कुछ खुद के ही बनाये फिर भी क्यों मन में रही आज बसी कोई तो मुझे अपनाए जीवन पंथ की ये बेला है इस सृष्टि का खेल ही ऐसा माया ने ही रिश्ते बुने जिन रिश्तो का मोल ही प
बाँधो अगर किसी से रिश्तों की डोर,तो सम्हालो बड़े अरमान से,रिश्तों का आदर करना सीखो,रिश्ते होते हैं बड़े काम के।रिश्तों को देना पड़ता है समय,और सींचना पड़ता है प्यार से,तब जड़ें जमती हैं गहराई में,और पेड़ बन
👉यह कहानी काल्पनिक है,, , इससे किसी का कोई लेना देना नहीं है।👈 अंकल..........पापा की सर्विस सीट में किस किस का नाम होगा, यह सुन कर मैं हैरान सा रह गया..... क्योंकि ये सवाल बड़ा अजीब सा था, उस जगह....
कोई भी सेब पेड़ से बहुत दूर नहीं गिरता है। बछड़ा अपनी माँ से बहुत दूर नहीं रहता है।। दूर का पानी पास की आग नहीं बुझा सकता है। मुँह मोड़ लेने पर पर्वत भी दिखाई नहीं देता है।। दूर उड़ते हुए पंछी क
मन्नू की विदाई हो रही थी सुबह के चार बजे थे । मन्नू की मां यही सोच रही थी कि जल्दी से मन्नू की विदाई हो जाए अगर नन्हा आशू उठ गया तो कोहराम कर देगा।आशू मन्नू का भतीजा था जब से पैदा हुआ था अपनी बुआ के स
नदी किनारा, प्यार हमारा, चलते रहते,, साथ, सागर तक,, पर मिलते नही ,, कभी भी किसी पथ पर ,, यह है मेरा जीवन सारा,, हमसफर संग,, नदी किनारा। बेखबर नदी,की, बहती धारा, हमारा जीवन , नदी किनारा,, उसकी
आती बहुत है घर की याद,, पर जाऊ कैसे ,बनती न बात,, करता हू जब इक हल ,,ऐसे ,, आ जाती बात ,,और ,, जाने किधर से ? इक घर सूना हुआ तब था,, जब मै निकला, लिए रोटी का डर था,। रोटी के लालच को
अनवर की नयी नयी नौकरी लगी थी । तनख्वाह भी अच्छी खासी थी। नाक नक्श तो भगवान ने अच्छे दे रखे थे।बस अब तो दुल्हन आने की देर थी।आफिस मे सभी उसे चिढ़ाते थे क्योंकि उसके अम्मी अबू हर रोज ही उसे फोन पर किसी
दादा,दादी,नाना नानी,मामा,मामी,काका,काकी,जाने कितने,रिश्ते जीवित होते थे,,जब छुट्टियो के दिन होते थे,।एक मेला सा सजता था,घर घर लगता था,,जब पीढियो के अंतर का नेह प्यार, व संस्कारो का स्
वटवृक्ष की विशाल छांव-सी, पिता के स्नेहाशीष तले पल्लवित एक कोमल टहनी थी मैं, मुझे एक सशक्त शाख है बनाया पिता के प्रेम और विश्वास ने, एक दृढ़ स्तंभ बनकर सदा अपने विशाल हाथों का देकर संबल, मेरे नन्हें
वटवृक्ष की विशाल छांव-सी, पिता के स्नेहाशीष तले पल्लवित एक कोमल टहनी थी मैं, मुझे एक सशक्त शाख है बनाया पिता के प्रेम और विश्वास ने, एक दृढ़ स्तंभ बनकर सदा अपने विशाल हाथों का देकर संबल, मेरे नन्हें
जब मन उदासं हो सब भले ही पास हो , अच्छा नही लगता,,मुझे अच्छा नही लगता। देखता हू मै ,मन के जिस कोने मे, दिया है जो घाव,दिल को बींध कौने मे, छेडे उसे कोई, भले ही सहलाने को, सच बताऊ मै ,मुझे
यह हर बार नया मौका, कहा देती है जिंदगी, जो एक बार जो टूट जाए भरोसा, तो पिछाड देती है जिन्दगी। #### नए मौके की तलाश वो करे, जिन्हे पहले पे यकीन न रहे। ### हर बार नया मौका लेक
अनिल अनूप [ हरिमोहन झा आधुनिक मैथिली साहित्य के शिखर-पुरुष हैं, उन्हें हास्य-व्यंग्य सम्राट कहा जाता है़ मैथिली के आरंभिक कहानीकारों में वे शीर्षस्थ रहे हैं. वैसे तो उनकी ज़्यादातर कहानियों में व