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मेरीं यादों के झरोंखों से भाग 56

18 अप्रैल 2022

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अनुच्छेद 56                     मेरी यादों के झरोखों से*
__________________________________________________________________________________मधु को तहखाने में एक लोहे की मजबूत चैन की मदद से बांध दिया गया था, उसके दोनों हाथ में हथकड़ी की बनाबट के कड़े जिनको ताले की शक्ल दे दी गई थी,पड़े हुए थे दोनों कड़ों को चैन के माध्यम से जोड़ कर बनाया  गया था।
 उसी चैन का एक हिस्सा उसके खूवसूरत पैरों को जकड़े था,वह केबल धीरे धीरे चल फिर सकती थी और अपने हाथों से खाना स्वयं खा  सकती थी।
 उस तहखाने में लैट्रीन के अलाबा और कुछ भी न बना था,पास में एक पत्थर की तीन बाई छह फीट की चौड़ी पटिया नुमा बैन्च पत्थर की बनी थी जिसके पास एक लोहे का बना एक अर्ध चन्द्राकार फ्रेम था जिसमे कभी शायद शीशा या कोई अन्य मिलती जुलती बस्तु जड़ी होगी किन्तु आज वह फ्रेम खाली था जिसमे मधु को जकड़ रखा था  तहखाना सूखा था, किंतु उस लोहे के फ्रेम से कुछ कदम दूर पानी का कोई प्राकृतिक श्रोता ही था जो प्राकृतिक झरना जैसा मालूम पड़ता था उसका ठंडा पानी स्वच्छ और साफ पीने लायक था उस तहखाने में एक पिछली दीबार में एक छोटा सा बेंटिलेटर लगा हुआ था जो हबा और धूप का आने में एक मात्र सहयोगी था ।
बस यही तक रह गई थी उसकी सिमट कर वह हशींन दुनिया।
 जिसमे उसके  अकेलेपन के सहयोगी वहाँ पड़े लाल लाल गोल पत्थर थे जो उसे मूंक सहानभूति से देखते और वह उन्हें लाचारी से  दिन भर निहारती रहती थी 
सायं काल को उस तहखाने का गेट एक अनन्त पैलेस का वफ़ादार नौकर आकर खोलता था औऱ खाना देने के बाद झूठे बर्तन ले जाता और उसी तरह गेट बंद कर वापिस चला जाता, यह क्रम चलते चलते एक हफ्ता बीत गया था।
इस हफ्ते भर में किसी ने उसके बारे में पूछा तक नहीं था और उसको पूंछने बालों में देहली जैसे महा नगर में कोई भी उसका अपना नहीं था,उसके पीहर में भी उसने अपनी दुख कि दांस्तान किसी को भी नही अब तक  कोई खबर थी जिस से उसकी कोई खैर खबर आकर लेता। 
केबल एक भाबीमाँ थी जो हमेशा उसके बारे में जानती थी कि वह खुश नही है,।
वही इंद्रा जब तब घरेलू लैंडलाइन फोन से  बात करती रहती थी ,ना कभी कोई आता था और ना ही शादी के बाद मधु अपने गांव अनन्तपुर कभी गई।
वह पत्थर की बैंच पर लेटी हुई थी खाना केबल जीने के लिये खाती थी पेट भरने को नही ,जो अभाबो में कभी नही पली थी आज उसकी इस दुर्दशा का जिम्मेदार वह अपने पिता को मानती थी या फिर वह अपने पिता का वह कर्ज चुका रही थी जो उसका शरीर को उसके माता पिता ने इस संसार मे जन्म देकर उस पर  उपकार कर किया था। 
मधु की माँ जन्म के बाद दुनियाँ से बिदा जब हुई थी तो वह मात्र दो ढाई साल की हो चुकीं थी, उसका पालन उसकी भाबी ने किया इसलिए वह इंद्रा को ही भाबीमाँ कहती थी, और इंद्रा के भी दुर्भाग्य से कोई अभी तक बच्चा नही हुआ था ।
 इसलिए वह उसे अपनी बेटी के समान प्यार दुलार करती थी,मधु को अगर कोई तखलीफ़ हो जाती तो इंद्रा को पत्ता नही कैसे उसकी परेशानी का पता मालूम होजाता था।
 और आज भी इन्द्रा ने मधु को अपने स्वप्न में देखा की मधु मलिन मुख दुखी हो कर जमीन पर  बैठी है।
इंद्रा स्वप्न में मधु को मलिन मुख धरती पर बैठे देखकर वहुत दुखी थी ... अतः वह पूरी रात वहुत ब्याकुल रही, उसने सुवह को अपने श्वसुर सेठ रविशंकर जी से भी अपने स्वप्न के वारे में कहा तो सेठ जी ने यह कहकर टाल दिया कि तुम्हारे चित्त पर मधु का ही ख्याल अधिक रहता है, इसलिए तुम दिन रात उस के सपने देखती रहती हो।
तव इंद्रा ने अपने पति सेठ जी के बड़े बेटे से यही स्वप्न बाली बात कही तो उसके पति ने निर्णय लिया कि फोन पर जान कारी लेते है ,जब कई बार फोन लगाने पर किसी ने भी रिसीब नहीं किया,तब उसके पति और वह स्वयं देहली  प्राता जाने  बाली ट्रेन से इन्द्रप्रकश, और इंद्रा उससे मिलने चल पड़े। 
इन्द्रा मधु के लिये वहुत बेचैन थी वह जल्दी से जल्द उसके पास पहुँचना चाहती थी, किन्तु ट्रेन जो जाती थी वह शाम के छह से पहले नहीं पहुँचती थी ।
अता अनन्त पैलेस में पहूँचने में आधा घण्टे का समय और लगता था इसलिये वह दोनो अनन्त पैलेस में साढ़े छह के पास पँहुचे ,गेट कीपर ने उन्हें अंदर नही घुसने दिया,अनन्त अपने शिड्यूल के मुताबिक मार्था के साथ बाहर था।
इंद्रा के बार बार कहने पर भी की हम मधु मैंम साहब के भैया भावी है, फिर भी उन दोनों को मधु से नही मिलने दिया गया।
इंद्रा के बार बार पूँछने पर की अनन्त कब तक आएंगे,तो उन्हें यही एक रटा रटाया जबाब मिलता,की साब है नही।
कब आएंगे।
पता नही।
इन जबाब को सुन सुनकर अब मधु के बड़े भाई को लगने लगा था कि उसकी  वहन किसी मुश्किल में जरूर है।
अतः अब दोनो का बिचार था कि जब भी अनन्त आएगा तब तक वह गेट पर वाहर यहीं बैठे ही रहेंगे।
अतः दोनो पास पड़ी बैंच पर बैठे रहे,काफी समय बीत ने के बाद अपनी आदत के अनुसार अनन्त की होंदा सिटी रात्री के पौंन बजे अनन्त पैलेस पर आकर रुकी गेट मेंन ने गेट खोला, अनन्त नशे में टुन्न मदमस्त हाथी के समान झूमता हुआ उतरा और नशे के आनन्दतिरेक में वहीँ गिर गया,मार्था जो पूरी तरह मॉर्डन बल्कि कम बस्त्रो में थी ,जो सभ्य समाज को शायद पसन्द हो,ऐसे बस्त्रो में अपने अंगों का प्रदर्शन करती उतरी और झुक कर अनन्त को उठाने का असफ़ल प्रयास करने लगी, परिणामतः उसके मिनी स्कर्ट से मांशल नितम्बों के साथ ही नीचे जंघाओं की चिकनी गोलाइयाँ  साफ दिखने लगी।
इंद्रा और उसका पति इन्द्र प्रकाश शर्म से दूसरी ओर मुहँ कर देखने का प्रयास करने लगे।
तो आपके साब इतने ही समय आते है।
 इन्द्रा ने गेट मेन से पूँछा।
हाँ  जी मैंम साब।
आपकी मैंम साहब, साहब के साथ क्यो नही जाती।
इंद्रा ने और जानने की कोशिश की।।                                                                               कहाँ जाएगी ? वह बेचारी।
वह चुप हो गया।
क्यो भला उन मेंम साब को क्या बात है।
जी कुछ नही, आप बड़ी मेंमसाब से ही पूछ लो।
अच्छा,बड़ी मेंम कोंन सी है।
वह भोले पन से बोली।
अरे अभी आपके सामने जो साब को  उठा रही है।
उस गेट मेन ने इशारे से इन्द्रा को बताया।
इंद्रा के दिमाग मे दूर कहीं कुछ खटका,वह मां थी मधु की अत: सारी कड़ियों को  अपने दिमांग में जोड़ने लगी।
तभी मार्था की आबाज गूँजी।
ये गेट मेंन,जरा सहारा देकर साहब को मेरे बेड रूम तक ले चलो।
वह भी नशे की  अधिकता में झूमती हुई बोली।
आया मेंम साब....।
कहता गेट कीपर अनन्त को उठा कर पीठ पर लाद कर आगे बड गया।
मार्था भी उसी के साथ डगमगाते कदमों से आगे बढ़ गई , उसने उन दोनो को देखा तक नही।
अब क्या करे बकील साहब।
इंद्रा चिंतित हो अपने पति से बोली।
तुम चिंता ना करो , जरूर कोई न कोई रास्ता निकल आयेगा।
उसने इंद्रा को ढांढस बंधाया ,साथ ही बोला।
क्यो न हम लोग भी उन के पीछे पीछे चले।
इंद्रा के पति ने उससे कहा।                                                                           यह युक्ति ठीक है यहाँ बैठने के बजाय साथ ही चलना बेहतर है।
इंद्रा ने अपने पति को अपनी राय दी।
दोनो साथ साथ चलते हुये अंदर पहुँचे।
आप की तारीफ.....।
मार्था नशे में झूमती हुई बोली।
हम दोनों मधु मेंम साहब से मिलने आये है।
इस समय वह किसी से नही मिल सकती हैं।
वह  नशे की झौंक में बोली।
आप हमारी खबर उन तक पहुँचा दो, कि उन से मिलने उनके भाई और भाबी आएं है।
अब मार्था का नशा पल भर में गायब हो चुका था वह सधे शब्दों में बोली।
भाई साहब,छोटी मेम साब की तबियत ठीक नही है अतः वह एक नर्सिग होम में भर्ती है।
ओह,...........।
इंद्रा वही अपना सिर थाम कर बैठ गई।
आप हमें नर्सिग होम का पता बताये हम स्वयं चले जायेंगे।
मधु के बड़े भाई इन्द्र प्रकाश बोले।
आप भाई साहब रात में बस यू ही परेशान होंगे देखिये इस समय ढाई बजे है,अब आप आराम से गेस्ट रूम में सो जाइये सुबह को हम सब उन से मिलने चलेंगे।
इंद्रा कुछ हिचकिचा रही थी,बकील साहब ने इंद्रा को समझाया, अतः इंद्रा अनमने भाव से अपने पति के साथ गेस्ट रूम में चली गई। 
इंद्रा के मन मे अनेक बिचार घूम रहे थे,शुरू से अब तक की कहानी किसी चलचित्र की भाँति उसके मष्तिस्क में फ़्लैश होने लगी उसे मधु का बचपना याद आ रहा था वह जब कभी बीमार होती थी तो इंद्रा को कभी अपने से दूर नही जाने देती थी उसे अपने पलँग पर अपने साथ सुलाती थी,इंद्रा उसकी पूरी रात जाग कर देख भाल करती थी.......वह सोचते सोचते इंद्रा रोने लगी, उसका पति इंद्रप्रकाश उसे सांत्वना देने लगा।
 Xxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxxx         इंद्रा और उसके पति के गेस्ट रूम में भेजने के बाद मार्था ने राहत की साँस ली,वह फुर्ती से अपने रूम के ओर बड़ी वहाँ पर नशे में पड़े अनन्त को उसने झिझोड़ कर जगाने का प्रायास किया ,जब वह नही उठा तो वह उठी और एक जग में पानी लेकर आई और अनन्त पर पूरा जग उड़ेल दिया।
यह क्या बद्तमीजी है।
अनन्त आंख खोल कर बोला।
सुनो,अब क्या होगा?...तुम्हारी बाईफ के भाई और भाबी आ चुके है,मैने बड़ी मुश्किल से उन्हें गेस्ट रूम में भेजा है।
वह थूक सटकती बोली।
अब क्या करे तुम बोलो।
अनन्त उससे बोला।
तुम मधु को तहखाने से निकाल कर किसी नर्सिग होम में भर्ती करबा दो ,बकाया आगे की बात तुम्हारा डॉक्टर देखे लेगा।
अनन्त ने सहमति दी,साथ ही अपने एंड्राइड फ़ोन से किसी से बात करने लगा।....शेष अगले अंक   में  Written by H.K.Joshi.                P. T. O.
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★ मेरीं यादों के झरोंखों से ★
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