अनुच्छेद 45 मेरी यादों के झरोखों से -------------------------------------------------------------------------------मधु से मिलकर किशोर पार्क से बाहर जाने को मुड़ा, और सामान्य गति से चलता हुआ किशोर इंद्रा के पैर छूने के लिये उसके पास पहुँचा।
उस समय इंद्रा पार्क के मेन गेट पर खड़ी हुई अपनी आंखों में आये आंसुओं को छुपाने का भरपूर प्रयास कर रही थी किन्तु ,आंसू तो मानों ना रुकने की कसम ही खा चुके थे।
जो ,बरवस पावस ऋतु की बून्दों के समान नीचे टपक जाने की होड़ एक दूसरे से लगाये बैठे हों।
भाबी माँ... अब आप तो कम से कम अब मुझें विदा करो मुश्करा कर।
कहते हुये किशोर नीचे इंद्रा के पैर छूने को झुका, किन्तु इंद्रा ने उसे पैरों का स्पर्श करने से पहिले ही बाजुओं से पकड़ कर ऊपर उठा लिया।
नहीं किशोर ,क्या यह समभव है।
जी नहीँ भावी माँ,.....पर हम क्या कर सकते हैं।
कुछ भी करो, किशोर बस एक तुम्हीं तो मेरी आशा की एक आखिरी किरन हो.......।
भावी मां,मैं मधु के मजबूत इरादों को अच्छी तरह से जानता हूँं ,वह एक बार जो मन में ठान ले उसे छोड़ती नही।
इस तरह तो वह स्वयं अपने हाथों अपना जीवन जला रही है करमजली ।
हम क्या करें ?अब आप ही हमे रास्ता बताएं।
किशोर, मैं उसे तिल तिल भर घुट घुट कर मरती नहीं देख सकती हूँ ।
इंद्रा तड़फ कर बोली।
आप समझ नहीं रही हैं भावी माँ ,वह अपनी जिद पर मर जाएगी और टूट जाएगी ,पर कभी झुकेगी नहीं।
किशोर ने भाबी माँ को बताया।
तुम उसको ....अपने साथ .क्यों ना..लिबाकर ले जाओ....इंद्रा अपनी बात को बड़ी कठिनाई से अटक अटक कर पूरी करती हुई बोली।
भावी माँ आपका फैसला ....विचारणिय है।
किशोर सोच पूर्ण मुद्रा में बोला।
मेरे घर से भाग जाने के बाद , आप पर क्या बीतेगी,आपने कभी सोचा,..भाभी माँ...?.।
सहसा मधु ने दोनों को पीछे से बोलकर चौका दिया।
तुम मेरी चिंता मत करो,? मेरी बेटी का जीवन सुख शांति से गुजरे बस यही कामना है मेरी।
इंद्रा अपने आँसुओं को पौंछती हुई बोली।
नहीं भाबी माँ ,मैं अपने प्रेम को पाने के लिये आपका बलिदान नही दे सकती।
तो दीदी और कोई रास्ता भी नहीँ हैं ।
प्रेम जो अब तक चुप था मधु की ओर देखता हुआ एकाएक बोला।
प्लीज मधु सभी पहलुओं पर अच्छी तरह विचार कर कोई कदम उठाना, अन्यथा बाद में पश्चाताप का भी समय नही होगा तुम्हारे पास।
जानती हूँ, किशोर अब मैं वयस्क हुँ, अपना अच्छा बुरा सब सोचना भी मुझे अब समय ने सिखा दिया है।
तो फिर बेटी तुम और किशोर क्यों न कोर्ट में जाकर अपनी शादी के लिये अप्लाई करो , तुम और किशोर दोनों वालिग़ हो।
इंद्रा अपने मन के भावों को प्रकट करती हुई बोली।
भाबी माँ, मैं यह भी करती किन्तु आप ने मुझे जो शिक्षा दी है, अब वही शिक्षा मुझे एसा करने से रोकती है , सिर्फ़ अपनी भलाई के लिय इस स्वार्थी रास्ते पर चलने से मुझें क्या मिलेगा।
तो,अब क्या फैसला है तुम्हारा ।
किशोर की आवाज गम्भीर थी उसने मधु की ओर प्रश्न किया।
मेरे प्रिय किशोर,..... मधु तुम्हारी है ,जव भी देखोगे तो तुम ही इन श्वांशों में मिलोगे......,तन पर मेरा कोई जोर नही ....,पर पिता की बिना अनुमती के यह नश्वर शरीर मैं आपकी सेवा में अर्पण नही करूँगी।
क्या तुम मुझे ऐसा खुदगर्ज समझती हो।
किशोर बोला।
नही,मैं,ऐसा आपके बारे में कभी कल्पना भी नही कर सकती हूँ।
वह उसके नजदीक आई।
तो फिर अलविदा कहने में क्या परेशानी है अब तुम्हें मधु।
किशोर ने मधु से शिकायती लहज़े में कहा।
नही, मै अब भी मेरा फिर वही जबाब है।
अच्छा तो फ़िर मेरी ओर एक बार देखो ,और बोलो,।
वहुत..... निर्दयी ...हो...., क्या... यह सव तुंम्हे अच्छा लगेगा कि तुम्हारी मधु अपने इरादों से विचलित हो जाये।
वह अपने आसुंओ को बरबस रोकती रही थी।
.....नही...सब...कुछ.... ठीक हो जाएगा,बक्त पर बड़े से बड़े जख्म भर जाते है।
काश ...आपकी.....बात...सच हो जाये आप भगबान से मेरे लिए इतनी...प्रार्थना जरूर करना की मैं अपने फ़ैसले पर अडिग रह सकूँ।
कहती कहती मधु किशोर की ओर अपनी पीठ फेर कर अपने बहते हुए आंसुओं को पौछने लगी।
क्यों इतना बोझ रख रही है , मेरी बेटी...कहाँ तू फूल सी और यह लम्बे जीबन की तन्हाईयाँ।
भाबी मां ,मेरा संकल्प मत तोड़िये,.....प्लीज मैं...खुश रह लूँगी ।
जानती हूं, कितना खुश रही थी ?... . तू , अभी , तू शायद समझ रही थी कि मुझे तेरा दुख ज्ञात नहीं है।
इंद्रा लगभग रोने लगी थी,कहते कहते।
प्लीज ,मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ, इस समय कुछ मत बोलो।
नही,मेरी बच्ची जो जहर तू जीवन भर पीना चाहती है,मैं उसे हरगिज तूझे पीने नही दूंगी।
जब मेरे नसीब मैं जहर ही पीना है तो, मैं पीछे नही हटूंगी,और चाहे वह किसी के हाथों पीना हो।
मधु ,एक आखिरी बात,।
किशोर की आवाज खोई हुई सी निकली।
जी......।
उसने बिना मुड़े जबाब दिया।
हम,मित्र थे मित्र रहेंगे,कभी भी मेरी आबश्यक्ता किसी समय हो जरूर मन से याद करना।
किशोर नें मधु को बोला।
जानती हूं, किन्तु,क्या समाज मुझे आपकी मदद लेने की अनुमति देगा ? और जब उस इंसान जो कि मेरा पति होने का अधिकार समाज उसे देगा,उसे जब पता चलेगा कि मैं उस इंसान से मदद मांग रही हूँ जो कि पहले से मुझे प्यार करता है, ? तो क्या सोचेगा यह समाज ,और मेरा वह सामाजिक पति,....कभी सोचा आपने...?.
क्या हालत होंगे मेरे?
कितना नर्वस हो जाउंगी मैं ?।
मधु ने ढेंरों प्रश्न किशोर से पूँछ लिय।
ठीक है मेरे दोस्त ,तुम को जो कहना है कहो .....तुंम्हे सब अधिकार है,क्या तुम उन सभी क्षणों को अपनी आज भूल मानती हो क्या ?।
वह क्षण.... कम से कम आप.. ..मुझसे कुछ..मत कहो,.... कि वह मेरे जीबन की... भूल..है,.यह सही नहीं, और नही...ये कभी भूलने के पल...।
.बोलते बोलते अचानक वह पुनः मूर्छित होकर गिरने लगी ,तो प्रेम ने उसे धरती पर गिरने से रोक लिया,और उसे आराम से नीचे लिटाया।
भाबी माँ , मैं चलता हूँ।
किशोर बोला ।
और अगले पल अपनी बाइक को अति शीघ्र स्टार्ट करने लगा।
ठहरो,किशोर बेटा।
किशोर वही रुक गया ,साथ ही सभी चौक कर पीछे मुड़े,पीछे सेठ रविशंकर जी ,जो मधु के पिता थे हाथ जोड़े खड़े हुए थे वह।
बेटे मेरी लाज,मेरी कुल की मान,मर्यादा अब तुम्हारे हाथ में है,मै किसी अन्य को मधु की शादी की जुबान दे चुका हूँ।
आप,हाथ न जोड़े आप मेरे लिए सम्मानित है,मुझे बताए मैं आपकी किस तरह सहायता करूँ।
किशोर ने सेठजी को आश्वासन दिया।
बेटा मैंने तुम सभी की बातें ध्यान से सुनी है ,अब तुम से उम्मीद करता हूं कि मेरी लाज बची रहे और मेरी मधु हमेशा खुश रहे।
अंकल आप मुझे आदेश करे स्पस्ट शब्दों में।
मैं चाहता हूँ कि तुम कुछ ऐसा करो कि मधु का झुकाब तुम्हारे तरफ न होकर वह अपने होने बाली नव गृहस्थी पर ध्यान दे।
ठीक है मैं भीआपको वचन देता हूँ,आज के बाद मैं कभी आपकी बेटी के रास्ते में जान बूझ कर नहीँ आउंगा।
किशोर की आवाज में समुद्र की तरह गम्भीरता थी।उसने एक लंबी स्वाँस ली और बड़ी दुखी नजरो से मधु को देखा और अपनी बाइक स्टार्ट कर तेजी से उस पार्क से निकल पड़ा। शेष अंश अगले अंक में पढे ..।
Written by H.K.Joshi. P.T.O.