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खुदा और खुदी की दुनिया

6 मार्च 2018

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दुनिया दो प्रकार की है- एक खुदा की और दूसरी खुदी की। कहने का तात्पर्य यही है कि इस संसार में दो तरह की शक्तियाँ काम करती हैं- एक भक्ति वाली और दूसरी माया वाली। अर्थात यह संसार ईश्वर की सुन्दर रचना है। उसका गुणगान करते हम नहीं थकते। यह भक्ति वाली शक्ति कहलाती है। दूसरी ओर मानव अपने इर्द-गिर्द मोह-माया की दीवारें खड़ी कर लेता है। उसके अनुसार उसकी यह सृष्टि बहुत ही मनमोहक है। इसका नुक्सान उसे स्वयं ही उठाना पड़ता है। यह माया वाली शक्ति कही जाती है। वैसे तो मनुष्य मोहमाया के जाल में फंसा रहता है। मैं, मेरा घर, मेरा परिवार, मेरे बच्चे, मेरा व्यापार या नौकरी- बस यही उसकी दुनिया है जिसके लिए वह जीता है और खटता है। उसके आगे न तो वह कुछ सोचना चाहता है और न ही कुछ समझना चाहता है। इस संसार के इतने आकर्षण हैं कि मनुष्य उन्हीं में खोया रहता है। उनसे फुर्सत पाए तो उसे अपने बारे में सोचने का मौका मिले। जितने समय के लिए उसे इस संसार में जीवन मिलता है, वह बस इसी धुन में रहता है कि अधिक से अधिक धन-सम्पत्ति का संग्रह कर लूँ, अपने व अपनों के लिए सुविधाएँ बटोर ले। इसी चक्कर में अपनी सुधबुध खोकर वह कोल्हू का बैल बन जाता है। जब उसे थोड़ा-सा साँस लेने का समय आता है, उसका इस दुनिया से विदा लेने का समय आ जाता है। तब तक वह चेतता नहीं है। माया के मजबूत किले में वह अनचाहे गिरफ्तार हो जाता है। इस किले से मनुष्य की रिहाई नामुमकिन तो नहीं पर कठिन अवश्य है। वह स्वयं जब तक संसार के कारोबार से स्वयं को जोड़े रखता है तब तक वह विषय-वासनाओं की उस दलदल में धंसता चला जाता है। वहाँ से बाहर निकल पाना उसके बूते की बात नहीं रह जाती। फिर तो कोई चमत्कार ही उसे बचा सकता है जैसे वाल्मीकि, अंगुलीमाल आदि डाकुओं की काया पलट हो गई थी। ईश्वर की बनाई सृष्टि हर जीव की अपनी सृष्टि है। उसमें सदा ईशवरीय सत्ता का ही राज्य चलता है। मनुष्य यदि यह सोचने लगे कि वह बहुत बड़ा तपस्वी बन गया है या बहुत शक्तिशाली है अथवा हर प्रकार से साधन सम्पन्न है, इसलिए वह ईश्वरीय सत्ता को चुनौती देने में समर्थ हो गया है। यह उसकी बालसुलभ चेष्टा है। जिसे हम उसकी मूर्खता या नादानी कह सकते हैं। रावण, हिरण्यकश्यप जैसे हजारों-लाखों का एक ही अन्त होता है जो किसी भी तरह अच्छा नहीं कहा जा सकता। मनुष्य चाहे कितनी नगरियाँ बसा ले, वह उस मालिक के समान यत्न करने पर भी नहीं बन सकता। अहंकारवश अपनी मूँछों को ताव देता हुआ, विष दन्त निकाले हुए साँप की तरह फुँफकार सकता है। हाँ, ऐसा करने का अथक प्रयास कर सकता है पर ईश्वर जिसका सहाय हो, ऐसे किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सिर्फ दाँत किटकिटाता और मन मसोसता हुआ रह जाता है। सत्ता उसी मालिक की ही चलती है, इन्सान चाहे भी तो उसकी बराबरी में खड़ा होने की उसकी औकात नहीं है। वह अपने बनाए बिछाए भ्रमजाल में प्रसन्न हो सकता है, आनन्द मना सकता है। आखिर में उसे अपने अच्छे या बुरे सभी कर्मों का हिसाब तो उसी परम सत्ता को ही देना पड़ता है। वहाँ यह कहने की उसकी सामर्थ्य है क्या कि मैं तुझे हिसाब नहीं दूँगा? मनुष्य कितना भी फनेखाँ बन जाए, स्वयं को स्वयंभू कह ले उसकी बनाई हुई माया नगरी यहीं धरी की धरी रह जाती है।ऐसे कितने आए और कितने गए, सब इतिहास के पन्नों में दफन होकर रह गए। इसलिए विद्वान ज्ञानी जन ईश्वर की दुनिया से टकराने के बजाए, उसे शीश नवाते हैं। अपने इहलोक व परलोक को सुधारने के लिए उसकी सच्चे मन से आराधना करते हैं। उस मालिक की सृष्टि और भक्ति ही सत्य है, शेष मनुष्य की माया और उसकी शक्ति सब बौने हैं, मिथ्या हैं, छलावा हैं। इनके गर्व से यथासम्भव बचना चाहिए। चन्द्र प्रभा सूद Email : cprabas59@gmail.com Blog : http//prabhavmanthan.blogpost.com/2015/5blogpost_29html Twitter : http//tco/86whejp

चन्द्र प्रभा सूद की अन्य किताबें

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अपनी जड़ों से जुड़ाव

20 फरवरी 2017
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मनुष्य की पहचान उसके अपने ही देश से होती है। उस देश की सांस्कृतिक विरासत उसका गौरव होती है। उसे अपने देश का नागरिक होने पर मान होना चाहिए। अपने देश में लाख कठिनाइयों का सामना क्यों न करना पड़े, उसे स्वप्न में भी छोड़ने का विचार नहीं करना चाहिए। जो सुख अपने बन्धु-बान्धवों के साथ मिलकर रहने में है, वह अ

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आए थे हरि भजन को

25 मार्च 2017
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निम्नलिखित पंक्ति को पढ़कर हम कवि के अंतस की पीड़ा का सहज ही अनुमान लगा सकते हैं-       'आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास'अर्थात मानव का यह चोला मनुष्य को ईश्वर की भक्ति करने के लिए मिला था पर इस संसार की हवा लगते ही मनुष्य अपने सब वायदे भूलकर यहाँ के कारोबार में व्यस्त हो जाता है और फिर उस मालिक की ओर स

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मुखोटे की आवश्यकता

16 दिसम्बर 2016
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हर इन्सान अपने चेहरे पर कई चेहरे यानी मुखौटे लगाकर रखता है ताकि कोई दूसरा व्यक्ति उसकी वास्तविकता को देख-परख न सके। ऐसे में कोई भी मनुष्य किसी दूसरे को पहचानने में गलती कर सकता है। सभी लोग शायद इस कला में दक्ष हैँ।        मुखौटा लगाने की आवश्यकता व्यक्ति को इसलिए पड़ती है कि वह अपनी असलियत दूसरों पर

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भाग्य से सब मिलता है

3 फरवरी 2017
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प्रत्येक मनुष्य को उसके प्रारब्ध या भाग्य के अनुसार ही इस जीवन में सुख-दुख या समृद्धि सब मिलते हैं, न उससे अधिक और न उससे कम। उसके पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ही उसका भाग्य बनता है। उसके घर में किसके भाग्य से धन-दौलत आती है, यह किसी को भी पता नहीं चलता। पर मनुष्य व्यर्थ ही अहंकार करता है।

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जन्मदात्री माँ

1 जनवरी 2017
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माँ मनुष्य की जीवनदात्री होती है। वह उसके लालन-पालन में अपनी ओर से कोई कमी नहीं रखती। वह चाहती है कि उसके बच्चे सदा सन्तुष्ट और प्रसन्न रहें। इसके लिए वह अपना सारा जीवन घर और बच्चों को दे देती है। प्रयास यही करती रहती है कि बच्चों को किसी तरह की कोघ कमी न रहे। उन्हें बहलाने के लिए नानाविध उपाय वह कर

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कृतज्ञता ज्ञापित करना

30 नवम्बर 2016
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कृतज्ञता ज्ञापन करना अर्थात अपने प्रति किए गए किसी के उपकार के लिए उसका धन्यवाद करना चाहिए। यह मनुष्य का एक बहुत बड़ा गुण होता है। दूसरे के किए उपकार के लिए उसका अहसान मानने वाला व्यक्ति कृतज्ञ कहलाता है। इसके विपरीत दूसरे का अहसान न मानने वाला संसार में कृतघ्न या अहसान फरामोश कहलाता है। प्रत्

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भाग्य से अधिक नहीं मिलता

8 मार्च 2017
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मनीषियों का कथन है कि मनुष्य को अपने भाग्य से अधिक और समय से पहले इस संसार में कुछ नहीं मिलता। पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ईश्वर उचित समय पर मनुष्य को बिनमाँगे स्वयं ही देता है। वह कितना ही परेशान क्यों न हो जाए अथवा रोता-झींकता रहे परन्तु इसका कोई समाधान निकाल पाना उसके बस की बात नहीं है।       

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नक़ल से विवेक कुण्ठित

27 अक्टूबर 2016
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दूसरों की नकल करने का स्वभाव हमारे उस विवेक को कुंठित कर देता है जो हमें अच्छाई और बुराई के अन्तर का ज्ञान कराता है। नकल करते समय हम अपने मस्तिष्क का नहीं बल्कि दिल का कहना मानते हैं।          यद्यपि नकल करते हुए मनुष्य को सदा अपनी अक्ल का ही इस्तेमाल करना चाहिए जो ईश्वर ने हमें उपहार के रूप में दी

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सफलता ढिंढोरा नहीं पीटती

24 दिसम्बर 2016
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गंभीरतापूर्वक विचार करने योग्य यह प्रश्न है कि सफलता ढिंढोरा पीटते हुए क्यों नहीं आती? उसका मित्र अकेलापन ही क्यों बन जाता है?         हम यदि कोई कार्य करते हैं तो उसके लिए आडंबर रचाते रहते हैं, अपनी तारीफों के पुल बांधते नहीं थकते, जोरशोर से चारों ओर हवा फैलाते हैं। ये सब आप समाचार पत्रों में, टीवी

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पेट भरने के लिए अन्न

5 नवम्बर 2016
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पेट भरने के लिए मनुष्य को क्या चाहिए? उसे दो रोटी और थोड़ी-सी सब्जी या दाल चाहिए। शेष सब चोंचलेबाजी होती है। मनुष्य की भूख यदि दिखावटी है तब तो उसके सामने छप्पन भोग भी परोस दिए जाएँ तो भी वह अतृप्त ही रहेगा, उसका पेट नहीं भरेगा। कैसी विचित्र विडम्बना है कि चौरासी लाख योनियों में एक मानव ही है ज

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पारस पत्थर

25 जनवरी 2017
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पारस पत्थर के विषय में बहुत सुना है। कहते हैं लोहे को यदि पारस पत्थर छू ले तो लोहा सोना बन जाता है। सोचना यह है कि पारस पत्थर में ऐसी क्या विशेषता है कि वह लोहे को सोना बनाता है। हम में से किसी ने ऐसा पत्थर नहीं देखा पर प्रायः सुनते रहते हैं इसके विषय में। वैसे सुनने में बहुत अच्छा लगता है पर

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बच्चों में संस्कार

9 जनवरी 2017
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हर माँ की हार्दिक इच्छा होती है कि उसकी सन्तान आज्ञाकारी हो। हर मिलने-जुलने वाला मन से उसकी सराहना करे। अपने बच्चों की प्रशंसा सुनकर उसका हृदय बाग-बाग हो जाता है। वह स्वयं को इस दुनिया की सबसे अधिक भाग्यशाली माँ समझती है।          सन्तान सर्वत्र प्रशंसा का पात्र बने इसके लिए माँ का दायित्व है कि वह

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स्त्री का अपना घर

22 नवम्बर 2016
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एक स्त्री सारी आयु यही सोचती रहती है कि उसका अपना घर कौन-सा है। जिस घर में उसका जन्म होता है, वह तो बाबुल यानी पिता का घर होता है। वहाँ से युवती होते ही उसे पराए घर यानी पति के घर में शादी करके भेज दिया जाता है। वह घर माता-पिता यानी सास-ससुर का होता है। उनके पश्चात पति का घर कहलाता है। फिर स

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मतिभ्रम की अवस्था

12 फरवरी 2017
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बहुधा हम सबको मतिभ्रम हो जाता है। इस मतिभ्रम का अर्थ है कि वास्तव में जो वस्तु नहीं होती, किसी और वस्तु में उसके होने का अहसास हमें होने लगता है। जैसे साँप को रस्सी समझ लेना अथवा रस्सी को ही साँप समझकर डर के कारण चिल्लाने लग जाना। अंधेरे स्थान पर किसी और के होने की कल्पना करके डरने लग जाना। बैठे-बैठ

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वैवाहिक जीवन की सफलता

19 अक्टूबर 2016
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वैवाहिक जीवन की सफलता पति-पत्नी के परस्पर आपसी सामञ्जस्य पर निर्भर करती है। वह किसी प्रकार के व्रतों पर निर्भर नहीं करती। यदि दोनों मिल-जुलकर प्रेम और सद्भावना से रहते हैं तो घर-परिवार में सब शुभ होता है। माता-पिता प्रसन्न रहते हैं, बच्चे संस्कारी व आज्ञाकारी बनते हैं और आने वाले अतिथि उनकी प्रशंसा

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यज्ञमय जीवन

28 फरवरी 2017
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यह संसार यज्ञमय है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि संसार एक हवन कुण्ड के समान है और मनुष्य का जीवन पूजा की भाँति है। एक दिन इस हवन कुंड में सर्वस्व होम हो जाना होता है। मनुष्य बस जोड़-जोड़कर रखता जाता है। उसे पता ही नहीं चलता कि कब उसका अन्तकाल आ जाता है अथवा उसका बुलावा आ गया और इस संसार से उसे व

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दूसरों का कष्ट समझो

8 दिसम्बर 2016
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दूसरे के कष्ट का मनुष्य को तभी ज्ञान होता है जब तक वह स्वयं उसका स्वाद नहीं चख लेता। अपनी परेशानियों से मनुष्य बहुत ही दुखी होता है। वह चाहता है कि सभी उससे सहानुभूति रखें। उसका ध्यान रखें और उसकी परवाह करें। बड़े दुख की बात है कि उसके इन दुखों को दूसरा कोई भी नहीं समझने के लिए तैयार नहीं ह

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प्रवाहमान जीवन

17 मार्च 2017
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मनुष्य का जीवन नदी की तरह निरन्तर प्रवाहमान है। गत्यात्मकता ही उसकी जीवनदायिनी शक्ति है। जब कभी उसकी यह गति बाधित होने लगती है तभी सारी समस्याओं का जन्म होता है। जैसे नदी की गति चट्टानों के आ जाने से सहज नहीं रह पाती उसी प्रकार मानव जीवन में दुखों और परेशानियों के आ जाने से रुकावट होने लगती है।     

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स्त्री-पुरुष में महान कौन

3 अक्टूबर 2016
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स्त्री और पुरुष दोनों का अपना अलग अस्तित्व है। दोनों ही समाज के अभिन्न अंग हैं। इन दोनों में से किसी एक के बिना इस समाज की परिकल्पना नहीं की जा सकती। पति-पत्नी के रूप में ये दोनों घर, परिवार और समाज में एक अहं किरदार निभाते हैं। इन्हें एक ही सिक्के के दो पहलू कहना उपयुक्त होगा, जिन्हें अलग करके नहीं

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घर का पर्यावरण शुद्ध करें

3 अप्रैल 2017
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नवरात्रों में घर का पर्यावरण शुद्ध करें।घर में रहने वाली, गृहकार्यों को दक्षता से निपटाने वाली पत्नी के विषय पुरुष प्रायः सोचते हैं कि उनकी पत्नी सारा दिन घर में निठल्ली बैठी रहती है। घर का काम भी कोई काम होता है। वे हर समय बस यही राग अलापते हैं कि उनकी पत्नी सारा दिन क्या करती है?            पुरुषो

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सबका साझा दुःख

1 नवम्बर 2016
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यह तेरा दुखयह है मेरा दुखइसका दुख, उसका दुखसबके दुख जानो जहान में एक समान।मत बाँटों अबइस दुख को कभीराजनीति करती कैदजाति-पाति, ऊँच-नीच की इन दीवारों में।इस दुख की नहीं कोई भी हदसीमा रहित है यहमन की गहराई से मान लो इस सच को।सबका दुख हैसाझा होता दुख हैइस पर ताण्डव करनाजश्न मनाना आखिर कब तक चल पाएगा?कहो

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दिन और रात

28 दिसम्बर 2016
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दिन के बाद रात और रात के बाद दिन यही प्रकृति का नियम है। सृष्टि के आरम्भ से ही ईश्वर ने यह विधान हमारे लिए बनाया है। सूर्य प्रातःकाल होते ही उदय होता है तब दिन होता है। जब चन्द्रमा अपने लावलश्कर के साथ प्रकट होता है तब रात्रि होती है। संध्या समय होने पर सूर्य अस्त हो जाता है और प्रातः होने पर चन्द्र

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बच्चों पर भरी बैग का बोझ

7 अक्टूबर 2016
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बच्चे बेचारे आजकल बस्ते यानी बैग के भार से दबे जा रहे हैं जो बहुत अधिक है। आजकाल यह फैशन बनता जा रहा है कि जितना बड़ा और भारी स्कूल का बैग होगा उस विद्यालय में उतनी ही अच्छी पढाई होगी।          विचारणीय है कि क्या वास्तव में शिक्षा का स्तर इतना बढ़ गया है कि भारी भरकम बोझ के बिना पढाई सम्भव नहीं हो सक

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माँ होने के मायने

5 जनवरी 2017
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माँ होने के मायने हैं परमपिता परमेश्वर की बनाई हुई सृष्टि का विस्तार करना। माता को ही इस विशेष योग्यता का उपहार उस मालिक ने दिया। इसी कारण ही हमारे शास्त्र माँ को देवता कहकर सदा सम्मानित करते हैं। बच्चों को 'मातृदेवो भव' का निर्देश देते हुए कहते हैं कि वे देवता के समान उसकी पूजा-अर्चना करें। उसकी से

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मानवीय बुद्धि का वरदान

10 नवम्बर 2016
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मानव को ईश्वर ने झोली भर-भर कर नेमतें दी हैं। उन सबसे बढ़कर उसे बुद्धि दी है। इस बुद्धि के बल पर उसने अनेकानेक चमत्कार किये हैं, इसमें कोई दोराय नहीं। इस बात से भी हम इंकार नहीं कर सकते इसी बुद्धि के सहारे से उसने अत्याचार, अनाचार, भ्रष्टाचार भी किये हैं। इसी बुद्धि के बल पर शक्तिशाली हाथी, खू

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मातृविहीन बच्चे

21 जनवरी 2017
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मातृविहीन बच्चे से बढ़कर अभागा कोई और इन्सान नहीं हो सकता। कुछ बच्चे बहुत दुर्भाग्यशाली होते हैं जिनकी माता उन्हें जन्म देते ही परलोक सिधार जाती है। कुछ बच्चों की माता उनकी बाल्यावस्था में ही इस असार संसार से विदा ले लेती है। इनके अतिरिक्त कुछ वे बच्चे होते हैं जिनके माता-पिता तलाक ले लेते हैं और उनक

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स्पेशल नीड वाले बच्चे

13 जनवरी 2017
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स्पेशल नीड वाले बच्चों को जन्म से ही अपने माता-पिता की विशेष प्रकार की देखभाल की आवश्यकता होती है। इसका कारण है कि वे आम बच्चों की तरह अपने कार्य स्वयं करने में पूरी तरह सक्षम नहीं होते हैं। उन्हें किसी सहारे की आवश्यकता होती है। कुछ बच्चे जन्म से ही मानसिक रूप से विकलांग होेते हैं। वे न बो

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सम्बन्धों में अबोलपन

18 नवम्बर 2016
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सम्बन्धों में कभी भी अबोलापन नहीं आना चाहिए। इस अबोलेपन के कारण उनमें दूरियाँ आने लगती हैं। इस प्रकार आपसी तानाकशी हो जाने पर मनमुटाव होने लगता है। धीरे-धीरे मनुष्य अपने आत्मीय रिश्तों को दाँव पर लगा देता है और फिर वह उन रिश्तों को हार जाता है। तब इन्सान को न चाहते हुए भी अकेलेपन का दंश झेलना पड़ता ह

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मनुष्य में देवों व दानवों के गुण

29 जनवरी 2017
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देवों और दानवों दोनों की सृष्टि करने के उपरान्त जब ईश्वर ने मनुष्य की रचना की। तब उसने केवल देवों के गुण अथवा दानवों के अवगुण उसे नहीं दिए अपितु मनुष्य में देवों और दानवों दोनों के ही गुण-अवगुण दे दिए। अब यह उसकी अपनी इच्छा पर निर्भर करत है कि वह देवों के गुण अपनाता या दानवों के अवगुण। वह किसका चयन

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प्यार में इन्कार

15 अक्टूबर 2016
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नलिनी अपने कमरे में अकेले बैठकर सोच रही थी कि आखिर नितिन ने ऐसा कदम  क्यों उठाया?        असल में नितिन कई दिनों से नलिनी के पीछे पड़ा हुआ था। उसने कई बार उससे पूछा था- "क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी?"नलिनी ने उत्तर दिया- "नहीं, मैं दोस्ती नहीं करना चाहती।"         नलिनी केवल पढ़ने के उद्देश्य से स्कूल आ

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हर स्थिति में एकसमान

7 फरवरी 2017
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अपने जीवनकाल में हर मनुष्य को सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय आदि द्वन्द्वों को सहन करना ही पड़ता है। ये सब चक्र के अरों की भाँति ऊपर-नीचे होती रहते हैं। इस क्रम को मनीषी 'चक्रनेमि क्रमेण' कहते हैं - नीचैरुपरि गच्छति दशा चक्रनेमिक्रमेण।अर्थात जैसे पहिए के अरे ऊपर नीचे घूमते रहते हैं उसी प्रकार म

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अवसर की तलाश

26 नवम्बर 2016
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उचित अवसर की प्रतीक्षा में लोग प्रायः बैठे रहते हैं। वे सोचते हैं कि उचित समय आएगा तो वे कुछ विशेष कार्य करके सारी दुनिया को दिखा देंगे। ऐसे साधारण प्रकृति के लोग होते हैं जो उसकी राह देखने रहते हैं। न उन्हें उचित अवसर मिल पाता है और न ही वे कोई ऐसा चमत्कार कर पाते हैं कि संसार उनके कार्यों को उनके

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बच्चों का पालन-पोषण

16 फरवरी 2017
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हर माता-पिता अपनी सन्तान का लालन-पालन अपनी सामर्थ्य से भी बढ़कर करते हैं। उनके सुनहरे भविष्य के लिए जी-जान से यत्न करते हैं। वे सदा इस बात का ध्यान रखते हैं कि उनके बच्चे को किसी प्रकार की कोई कमी न होने पाए। इसका यह अर्थ कदापि नहीं लगाना चाहिए कि बच्चों को अपनी मनमानी करने के लिए खुली छूट दे

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औलाद से हारना

29 सितम्बर 2016
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प्रत्येक मनुष्य में इतनी सामर्थ्य होती है कि वह सम्पूर्ण जगत को जीत सकता है। सारे संसार पर आसानी से अपनी धाक जमा सकने वाला मजबूत इन्सान भी अपनी औलाद से हार जाता है। उसके समक्ष वह बेबस हो जाता है। यहाँ प्रश्न यह उठता है कि सर्वसमर्थ होते हुए भी आखिर मनुष्य अपनी सन्तान के समक्ष क्यों हथियार ड

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कुमित्र का त्याग

24 फरवरी 2017
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सन्मित्र का मिलना बड़े सौभाग्य का विषय होता है। वह मनुष्य के लिए एक एसैट की भाँति होता है। उसे गँवा देने की मूर्खता मनुष्य को कभी नहीं करनी चाहिए। सुमित्र मनुष्य का सच्चा सहायक होता है। बातचीत के स्तर की मित्रता तो इन्सान हर किसी से रख सकता है परन्तु जिसके पास बैठकर उसे अपनेपन का अहसास हो, वही वास्त

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मृत्यु का स्थान निश्चित

4 दिसम्बर 2016
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मृत्यु का समय तथा स्थान हर जीव के लिए निश्चित होता है। जीव कहीं पर भी क्यों न रहता हो, अपनी मृत्यु के निश्चित स्थान पर और निर्धारित समय पर पहुँच ही जाता है। हम देखते हैं कि रेल, बस, वायुयान आदि दुर्घटनाएँ भी यदा कदा होती रहती हैं, जहाँ अलग-अलग स्थानों पर रहने वाले अनेक लोगों की एकसाथ, एकसमय पर मृत्य

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रूढ़ियों से बचना आवश्यक

4 मार्च 2017
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व्रत रखना अथवा किसी त्योहार को मानना, यह व्यक्तिगत आस्था का विषय है, किसी पर उसे थोपना अनुचित कहलाता है। यदि कोई स्वेच्छा से अथवा प्रसन्नता से व्रत रखता हैं तो यह एक अलग विषय है। परन्तु यदि कोई नहीं रखता अथवा उसे ढकोसला मानता है तो उसकी अपनी सोच है। इसके लिए किसी की आलोचना करना या टीका-टिप्पणी करना

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जीवन में शून्य होने से बचें

23 अक्टूबर 2016
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शून्य का अपने आप में कोई भी महत्त्व नहीं होता परन्तु जब वह एक से नौ तक किसी भी संख्या के साथ जुड़ जाता है तब उसका मूल्य बढ़ जाता है। उदाहरण के तौर पर यदि शून्य को एक के साथ जोड़ दिया जाए तो वह दस बन जाता है।            इसी प्रकार से क्रमशः बीस, तीस, चालीस, पचास, साठ, सत्तर, अस्सी और नब्बे बन जाता है। य

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जीवन चलता रहे

12 मार्च 2017
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जीवन चलते रहने का नाम है। जब तक जीवन का रथ चलता रहता है तभी तक सब सुचारू रूप से आगे बढ़ता है। जहाँ पहिया रुका बस वहीं जीवन का अंत समझो।        जीवन का महत्त्व विरले ही समझते है और जिसने इसका रहस्य जान लिया वह स्वर्णाक्षरों में चमकता है। यूँ तो सभी अपना जीवन जीते हैं पर इस कला के जानकार ही बता सकते है

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सफलता की उड़ान

12 दिसम्बर 2016
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सफलता जब पंख लगाकर जब उन्मुक्त आकाश में पतंग की भाँति ऊँची उड़ान भरने लगती है तब उन पंखों को कतरने के लिए बहुत से लोग कैंची लेकर तैयार बैठे होते हैं। यह स्थिति वास्तव में बहुत ही कष्टकारक है, परन्तु सत्य है।          संसार में लोग अपने दुखों से दुखी नहीं होते दूसरो के सुखों से परेशान होते हैं। किसी क

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जीवन दर्पण

21 मार्च 2017
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जीवन एक चमकते हुए स्वच्छ दर्पण के समान है, वह अपने सामने खड़े मनुष्य को उसके अपने कर्मों को प्रतिबिम्बित कराता है। जैसा वह अपने भविष्य के लिए बोता है वैसा ही पा लेता हैं। अब यह उस पर निर्भर करता है कि उसकी अपने जीवन से क्या अपेक्षा है? कैसे लोगों की संगति में रहना चाहता है? दूसरों के साथ कैसा व्यवहार

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प्रारब्ध कर्म

21 सितम्बर 2016
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जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त ऐसी अनेक घटनाएँ मनुष्य के जीवन में घटती हैं जिनका कारण उसका प्रारब्ध होता है। प्रारब्ध का अर्थ है- परिपक्व कर्म। हमारे पूर्वकृत कर्मों में जो जब जिस समय परिपक्व हो जाते हैं, उन्हें प्रारब्ध की संज्ञा मिल जाती है। यह सिलसिला कालक्रम के अनुरूप चलता रहता है। इसमें वर्ष भी लग

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नकारात्मक विचार

30 मार्च 2017
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नकारात्मक विचार हमारे अंतस में अंगद की तरह पैर जमाकर विद्यमान रहते हैं। सकारात्मक विचारों पर ये नकारात्मक विचार जब हावी हो जाते हैं तब मनुष्य निराशा के अंधकूप में गोते खाते हुए डगमगाने लगता है।        नकारात्मक विचार से तात्पर्य है कि मनुष्य हर समय निराश रहता है। अच्छी-से-अच्छी बात में भी बुराई ढूँढ

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विश्वास की पूँजी

20 दिसम्बर 2016
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अपनों का विश्वास मनुष्य की सबसे बड़ी पूँजी होती है। जिस भी सम्बन्ध में विश्वास डगमगाने लगता है वहीं रिश्ता टूटने की कगार पर पहुँच जाता है। सदा यही प्रयास करना चाहिए कि आपसी विश्वास बना रहे, उसमें कभी कमी न आने पाए। यदि कहीं कोई गलतफहमी पनपने लगे तो अपना अहं व पूर्वाग्रह छोड़कर, मिल बैठकर उसे दूर कर लि

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देवासुर संग्राम

22 दिसम्बर 2016
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देवासुर संग्राम के विषय में वेदादि ग्रन्थों में प्रायः वर्णन मिलता है। यह देवासुर संग्राम आखिर है क्या? यह जिज्ञासा मन में उठनी स्वाभाविक है। भाष्यकार इस देवासुर संग्राम का शाब्दिक अर्थ करते हैं देवताओं और राक्षसों का युद्ध।          अब सोचना यह है कि ये देवता और राक्षस कौन थे और इनमें हर समय युद्ध

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नामी स्कूलों का मोह

5 अक्टूबर 2016
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सभी माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे किसी नामी स्कूल में पढ़कर अपना जीवन संवार लें और बड़ा आदमी बन सकें। अपनी तरफ से वे हर सम्भव प्रयास भी करते हैं। स्कूल में दी जाने वाली मोटी फीस आदि का भी प्रबन्ध करते हैं। इस तथ्य को हम झुठला नहीं सकते कि पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले सभी बच्चे होशियार नहीं हो जाते औ

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आए थे हरि भजन को

26 दिसम्बर 2016
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निम्नलिखित पंक्ति को पढ़कर हम कवि के अंतस की पीड़ा का सहज ही अनुमान लगा सकते हैं- 'आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास'अर्थात मानव का यह चोला मनुष्य को ईश्वर की भक्ति करने के लिए मिला था पर इस संसार की हवा लगते ही मनुष्य अपने सब वायदे भूलकर यहाँ के कारोबार में व्यस्त हो जाता है और फिर उस मालिक की ओर स

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दूसरों के उपहार का सम्मान करें

3 नवम्बर 2016
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यदि कोई बन्धु-बान्धव बहुत प्यार अथवा सम्मान से उपहार दे तो उसके मूल्य को नहीं आँकना चाहिए बल्कि उसे देने वाले की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए। जिस प्रेम से व्यक्ति ने उपहार दिया है, उसे उसी तरह से उसे ग्रहण करना चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि आपको वह पसन्द आ ही जाएगा। वह चाहे मन को न भाए अथवा नह

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योगी और भोगी की रात

30 दिसम्बर 2016
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गीता के दूसरे अध्याय में भगवान कृष्ण कहते हैं- या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुने:॥अर्थात सब प्राणियों के लिए जो रात्रि के समान है, उसमें संयमी जागृत होता है। जिन विषयों में जीव जागृत होते हैं, वह मुनि के लिए रात्रि के समान हैं।

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मनुष्य जीवन का रहस्य

23 सितम्बर 2016
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मनुष्य की जिन्दगी का सबसे बड़ा रहस्य यही है कि वह किसके लिए जी रहा है? यद्यपि वह स्वयं और अपने परिवार की खुशहाली के लिए अपनी सारी ताकत झौंक देता है तथापि सारी आयु इस सत्य से अन्जान रहता है कि उसके लिए कौन जी रहा है? उसकी असली ताकत कौन लोग हैं? जिन्दगी हर कदम पर मनुष्य की परीक्षा लेती है। इस पर

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माँ का समर्पण

3 जनवरी 2017
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माँ शब्द को सुनते ही एक ऐसी आकृति नजरों के सामने आ जाती है जो बच्चों की चिन्ता में हर समय घुलती रहती है। उसकी दुनिया उसके पति और बच्चों के इर्दगिर्द घूमती रहती है। अपने घर-परिवार से आगे उसे कुछ भी नहीं दिखाई देता।         उन्हीं की खुशी के लिए वह अपना सारा जीवन ही समर्पित कर देती है। उनके सुख में सु

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बुजुर्गों को यथोचित सम्मान दें

8 नवम्बर 2016
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आज लोगों के मन बहुत संकीर्ण होते जा रहे हैं। उसमें बस मैं और मेरे बच्चे रह सकते हैं और कोई नहीं। उनके घर में सब सदस्यों के लिए जगह होती है यानी सबके लिए अपने-अपने कमरे होते हैं परन्तु दुर्भाग्यवश उन बजुर्गों को वहाँ पर स्थान नहीं मिल पाता जिनकी बदौलत ही वे बच्चे इस मुकाम तक पहुँचे होते हैं।

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माँ ईश्वर का उपहार

7 जनवरी 2017
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माँ के रूप में एक बहुत ही अमूल्य उपहार मनुष्य को ईश्वर ने दिया है। उस परमात्मा को तो हम मनुष्य कभी इन चर्म चक्षुओं से देख नहीं सकते। परन्तु उस मालिक ने अपने प्रतिनिधि के रूप में जो माँ रूपी एक देवता मनुष्य को भेंट में दिया है, उसे हम प्रत्यक्ष देख सकते हैं। माता ईश्वर का ही दूसरा रूप है। ई

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उपहार में मिले गुण

9 अक्टूबर 2016
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आश्चर्य की बात है कि बहुत-से ऐसे गुण हैं जो ईश्वर की ओर से हमें उपहार स्वरूप अर्थात नि:शुल्क मिलते हैं जिनके विषय में हम जानकर भी अनजान बने रहना चाहते हैं । इस संसार में रहने वाले हम मनुष्य ऐसे कृतघ्न हैं जो सदा उनकी अवहेलना करते हैं, उन्हें अपने जीवन में उतारना ही नहीं चाहते। यदि उन्हें अपना लिया ज

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सोए को जगाना सरल

11 जनवरी 2017
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व्यक्ति यदि गहरी नींद में सो रहा हो तो उसे जगाया जा सकता है परन्तु जो सोने का ढोंग कर रहा हो (मचला बन जाए) तो उसे दुनिया की कोई भी ताकत कभी जगा नहीं सकती। कहने का तात्पर्य है कि सोने वाले को जगाया जा सकता है पर जो जाग रहा हो और जानते-बूझते सोने का दिखावा कर रहा हो तो उसे जगाना वाकई टेढ़ी खीर होती है।

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शत्रुता करना सरल

12 नवम्बर 2016
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शत्रुता करना जितना सरल होता है, उसका परिणाम भोगना उतना ही कठिन होता है। मित्रता करना और उसे निभाना दोनों ही कठिन कार्य कहे जाते हैं। अपने अतिप्रिय मित्र को भी पलभर में अपना दुश्मन बनाया जा सकता है पर दुश्मन को अपना बनाना टेढ़ी खीर होता है। उन दोनों में परस्पर विश्वास हो जाना असम्भव नहीं पर कठिन अवश्य

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मनुष्य की पाँच माताएँ

19 जनवरी 2017
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जन्मदात्री माता मनुष्य के लिए सर्वस्व होती है। उसे इस संसार में लाने का महान कार्य वह करती है, इस कारण वही उसके लिए सबसे बड़ी देवता होती है। उसी की छत्रछाया में रहकर मनुष्य जीवन के साथ-साथ दुनिया की दौलत प्राप्त करने में समर्थ होता है।          शास्त्रों के अनुसार अपनी माता के अतिरिक्त उसकी चार और मा

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जीवनसाथी का चुनाव

15 जनवरी 2017
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हर युवा अपने जीवन साथी को लेकर एक सपना बुनता है। यह निश्चित है कि वह अपने जीवन साथी में कुछ विशेष गुणों को देखना चाहता है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना-अपना दृष्टिकोण होता है। वह अपने साथी को अपने ही सोचे हुए उन मापदण्डों पर खरा उतरता हुआ देखना चाहता है। आज युवाओं में प्रेम के मायने बदल गए हैं। भ

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बालमन की पीड़ा

16 नवम्बर 2016
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'चिड़िया उड़। कौआ उड़। मोर उड़। हाथी उड़। पतंग उड़।'         यह खेल बाहर बरामदे में बच्चे बड़े उत्साह से खेल रहे थे। बीच-बीच में उनके चीखने-चिल्लाने की आवाजें भी आ रही थीं- “तू बेईमानी कर रहा है, मुझे नहीं खेलना तेरे साथ।”दूसरी आवाज आई- “ऐसे कैसे नहीं खेलेगा, मेरी बरी तो अभी आई ही नहीं।”         बच्चे खेलत

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माँ के चरणों में स्वर्ग

23 जनवरी 2017
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माता के चरणों में सभी स्वर्गिक सुख मिलते हैं। दूसरे शब्दों में माँ का मूल्य स्वर्ग के सुखों से कहीं बढ़कर है। शास्त्रों और मनीषियों ने ऐसा सोच-समझकर ही कहा होगा। हर धर्म स्वर्ग की कल्पना करता है। ऐसा माना जाता है कि उन सुखों को पाने के लिए मनुष्य को कठोर तपस्या करनी पड़ती है। तभी मरणोपरान्त उसे

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बुजुर्ग नमक की तरह उपयोगी

13 अक्टूबर 2016
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बुजुर्ग परिवार की रीढ़ होते हैं। उनके होने से ही परिवार का अस्तित्व होता है। यदि वे न होते तो परिवार भी नहीं होते। वे नमक की तरह बहुत उपयोगी होते हैं। जैसे नमक के बिना कितनी ही मेहनत करके बनाए सभी भोग स्वादिष्ट होने के स्थान पर स्वादहीन हो जाते हैं। उन्हें कोई भी खाना पसन्द नहीं करता। इसीलिए

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जीवन एक पाठशाला

27 जनवरी 2017
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जीवन एक पाठशाला है। जिसमें हम सभी विद्यार्थी हैं। इसके प्रधानाचार्य जगत पिता ईश्वर हैं और संसार के सभी जीव इसमें अध्यापक हैं। ये सभी निरन्तर हमें कुछ-न-कुछ सिखाते रहते हैं। बच्चे सवेरे उठकर तैयार होकर अफने विद्यालय जाते हैं। वहाँ निश्चित समय तक पढ़ाई करके घर वापिस लौट आते हैं। वहाँ से मिले

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ताली एक हाथ से नहीं बजती

20 नवम्बर 2016
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यह कथन बिल्कुल सत्य है कि ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती है। हम अपने दोनों हाथों का प्रयोग करते हैं तभी ताली बजा सकते हैं। हाँ, एक हाथ से मेज थपथपाकर अपनी सहमति अथवा प्रसन्नता अवश्य ही प्रदर्शित कर सकते हैं।         घर, परिवार अथवा समाज में लोगों के व्यवहार को देखते-परखते हुए ही हम इसका अनुभव कर सकते

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व्रत क्या है?

31 जनवरी 2017
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व्रत शब्द का अर्थ होता है नियम का पालन करना। सारी प्रकृति यानी सूर्य, चन्द्रमा, वायु आदि सभी अपने-अपने व्रत का पालन करती है। हर मौसम अपने समय पर आता है। और तो और पशु-पक्षी तथा सभी जलचर व नभचर भी अपने लिए निश्चित नियमों का पालन करते हैं।        हम मनुष्य ही इस सृष्टि के ऐसे जीव हैं जो किसी नियम का पा

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दूसरे के सहारे की बैसाखी

27 सितम्बर 2016
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अपना जीवन जीने के लिए आखिर किसी दूसरे के सहारे की कल्पना करना व्यर्थ है। किसी को बैसाखी बनाकर कब तक चला जा सकता है? दूसरों का मुँह ताकने वाले को एक दिन धोखा खाकर, लड़खड़ाकर गिर जाना पड़ता है। उस समय उसके लिए सम्हलना बहुत कठिन हो जाता है। बचपन की बात अलग कही जा सकती है। उस समय मनुष्य सदा माता-प

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भोग कभी समाप्त नहीं होते

5 फरवरी 2017
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सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना मनुष्य इस संसार में आने के उपरान्त सोचता है कि वह सदा के लिए यहाँ रहेगा। उसकी सत्ता को कोई भी चुनौती नहीं दे सकता। यदि कोई ऐसा दुस्साहस करने की चेष्टा करता है तो उसे बरबाद करने में वह अपनी ओर से कोई कसर नहीं रखना चाहता। वह अपने अन्तस में उठने वाली सभी कामनाओँ को पूर्

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अवसर की प्रतीक्षा न करें

24 नवम्बर 2016
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उचित अवसर की प्रतीक्षा में लोग प्रायः बैठे रहते हैं। वे सोचते हैं कि उचित समय आएगा तो वे कुछ विशेष कार्य करके सारी दुनिया को दिखा देंगे। ऐसे साधारण प्रकृति के लोग होते हैं जो उसकी राह देखने रहते हैं। न उन्हें उचित अवसर मिल पाता है और न ही वे कोई ऐसा चमत्कार कर पाते हैं कि संसार उनके कार्यों को उनके

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व्यक्तित्व में गहराई और विचार शुद्धता

9 फरवरी 2017
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मनुष्य का महान होना या बड़ा होना वाकई बहुत प्रशंसनीय होता है। इसके साथ ही मनुष्य के व्यक्तित्व में गहराई और विचारों में शुद्धता का होना भी उतना ही आवश्यक होता है। तभी एक महान व्यक्ति कहलाने का वह अधिकारी बन सकता है।         यहाँ पर मैं तालाब का उदाहरण देना चाहती हूँ। तालाब सदैव कुँए से कई गुणा बड़ा हो

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विवाह के प्रकार

17 अक्टूबर 2016
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विवाह पद्धति हमारी भारतीय संस्कृति का मूल है। इसका कारण है कि विवाह के पश्चात नवयुवक और नवयुवती गृहस्थाश्रम मे प्रवेश करते हैं। यह गृहस्थाश्रम शेष तीनों आश्रमों- ब्रह्मचर्याश्रम, वानप्रस्थाश्रम और सन्यासाश्रम का पालन करता है। हमारे शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाह माने गए हैं- ब्राह्म, दैव,

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स्वर्ग में भी अप्सराओं या हूरों की कल्पना

14 फरवरी 2017
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विश्व के प्रायः सभी धर्मग्रन्थों में यद्यपि अनेक तरह की विसंगतियाँ दिखाई देती है परन्तु स्त्रियों को नियन्त्रित करने के लिये, उन्हें खूँटे से बाँधकर रखने के लिए सभी एकमत हो जाते हैं। जिस स्त्री के साथ सारा जीवन व्यतीत करने के लिए वह कसमें खाता है, उसके आगे-पीछे घूमता है, उस स्त्री के लिये मुँह ढंकने

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विवेक को हरता क्रोध

28 नवम्बर 2016
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विवेक का हरण करने वाला क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है। वह उसके अंतस में विद्यमान रहता है और उसके विवेक पर निरन्तर प्रहार करता रहता है। इसीलिए मनीषी कहते हैं कि क्रोध में मनुष्य पागल हो जाता है। वह भले और बुरे में अन्तर करना भूल जाता है। अपनों को ही अपना शत्रु मानकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का क

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बच्चे के विकास में पिता की भूमिका

18 फरवरी 2017
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बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए पिता की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। वह अपनी सन्तान के सुरक्षित भविष्य के लिए स्वयं स्वेच्छा से खटता रहता है। दिन-रात उसके उज्जवल भविष्य की चिन्ता में ही घुलता रहता है। 'नीतिशास्त्रम्' ग्रन्थ की निम्न उक्ति हमें समझाते हुए कह रही है- स पिता यस्तु पोषक:

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आवश्यकतानुसार थाली में परोसें

19 सितम्बर 2016
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अपनी थाली में मनुष्य को उतना ही भोजन परोसना चाहिए जितना वह आराम से खा सकता है। यदि आवश्यकता से अधिक अन्न थाली में डाल लिया जाए तो मनुष्य उसे खाने में असमर्थ हो जाता है। अतः वह बच जाता है और फिर उस बचे हुए भोजन को कूड़ेदान में फैंक दिया जाता है। इस तरह यह अनमोल अन्न बरबाद होता रहता है।         अन्न का

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दूसरों में बुराई खोजना

22 फरवरी 2017
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दूसरों की गलतियों को यत्नपूर्वक खोजते हुए हम छिद्रान्वेषी बन जाते हैं। स्वयं को दूध का धुला मानकर हम चैन की बंसी बजाने लगते हैं। यद्यपि व्यवहारिकता में ऐसा नहीं होता। इस सृष्टि में कोई भी मनुष्य सर्वगुण सम्पन्न नहीं है।हर मनुष्य में कोई-न-कोई कमी अवश्य होती है। यदि किसी मनुष्य में कोई बुराई नहीं होग

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स्वाभिमान और अभिमान

2 दिसम्बर 2016
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स्वाभिमान और अभिमान ये दोनों मनुष्य के चरित्र को परिभाषित करते हैं। जहाँ स्वाभिमान उसके उच्च व्यक्तित्व का उदात्त अंग कहलाता है तो वहीं अभिमान उसके पतन का कारण बनता है।स्वाभिमान मनुष्य का गुण बन जाता है और अभिमान उसका अवगुण कहलाता है।         स्वाभिमान ही प्रत्येक मनुष्य का आभूषण है। यह हर इन्सान के

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दान देने का अहंकार नहीं

26 फरवरी 2017
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किसी को दान देना हो अथवा सहयोग करना हो तो अपना दायित्व समझकर करना चाहिए न कि किसी आशा या उम्मीद के कारण करना चाहिए। इसे सदा अपना नैतिक दायित्व समझना चाहिए, इसके लिए उसे अहंकार कदापि नहीं करना चाहिए। मनुष्य यदि अपने सच्चे मन से और कर्त्तव्य की भावना से जितना दूसरों को देने की प्रवृत्ति रखता है, उतना

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शब्द का प्रयोग सावधानी से

21 अक्टूबर 2016
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हर शब्द को यथासम्भव सम्हलकर ही सदा बोलना चाहिए। शब्द का कोई भी मूर्त रूप नहीं होता यानी हमारी तरह उनके शरीर या हाथ-पाँव नहीं होते। इसलिए वे हम इन्सानों की तरह हाथों-पैरों से झगड़ा नहीं करते और न ही हथियार चलाकर किसी को घायल कर सकते हैं अथवा किसी की जान ले सकते हैं। ये अशरीरी शब्द यानी शरीरधा

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बोझ से मुक्ति

2 मार्च 2017
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मनुष्य अपना जीवन तभी निश्चिन्त होकर व्यतीत कर सकता है जब वह अपने सिर पर लादी हुई दुश्वारियों की गठरी उतारकर फैंक देता है। अपने मनोमस्तिष्क पर उन्हें हावी नहीं होने देना चाहिए। इस सत्य से कोई मुँह नहीं मोड़ सकता कि जीवनकाल में दुख-परेशानियाँ भी आएँगी और सुख-समृद्धि भी आएगी। इन सबके चलते जीवन को हारना

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अति इच्छाओं का त्याग करें

6 दिसम्बर 2016
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इच्छाएँ या कामनाएँ असीम हैं। इनका कोई ओर-छोर नहीं है। इनके पीछे भागते रहने से परेशानियों के अतिरिक्त और कुछ भी हासिल नहीं होता। इन अनन्त कामनाओँ का निरोध करना अति आवश्यक होता है अन्यथा मनुष्य सारा जीवन भटकता ही रहता है। इस भटकाव का कभी अन्त नहीं होता। इसीलिए मनीषी समझाते हैं कि सुख और शान्ति

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धोखेबाजों से सावधान

6 मार्च 2017
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मनुष्य को धोखेबाजों या ठगों से हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए। वे चाहे तथाकथित धर्मगुरु कहलवाने वाले हों या फिर समाज में भ्रमण करने वाले आम धूर्त जन। इन सबसे किनारा करना ही इन्सान के लिए श्रेयस्कर होता है अन्यथा बाद में जब हानि उठाने पड़ती है तब मनुष्य के पास पश्चाताप करने के अतिरिक्त कोई और चारा नही बचता

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सुख का मूलमन्त्र जानो

1 अक्टूबर 2016
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मेरा मन होता है व्यथित यूँ ही सदादेखकर इस दुनिया के दिखावे वाला अनोखा व्यवहार पाकर।अनावश्यक हीबना लिया है मैंनेएक संकुचित दायराअपने इर्द-गिर्द चारों ओर अनजाने ही।हर समय बसयही सोचती रहतीनहीं कोई साथी अपनासब झूठ का व्यापार हो रहा जग में।मन से नहीं हैचाहता किसी कोकोई भी इस दुनिया मेंदिलों में शेष केवल

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अमूल्य मनुष्य

10 मार्च 2017
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मानव इस सृष्टि की एक बहुमूल्य रचना है। ईश्वर ने कुछ सोचकर ही इसे इस संसार में भेजा है। मनुष्य स्वयं अपना मूल्य नहीं जानता परन्तु इसे करोड़ों में भी नहीं खरीदा जा सकता। मानव शरीर का एक-एक अंग यदि खरीदने की आवश्यकता पड़े तो उसका मूल्य चुकाना कठिन हो जाता है। मेडिकल साइंस के अनुसार अंगों का प्रत्यारोपण क

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जैसा खाओ अन्न वैसा होगा मन

10 दिसम्बर 2016
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सोना-जागना, परिश्रम करना, परिवार का पालन-पोषण करना जिस प्रकार किसी मनुष्य के लिए जीवन के आवश्यक कार्य हैं, उसी तरह से भोजन कमाना भी मनुष्य की मजबूरी है। यदि वह धनार्जन नहीं कर सकेगा तो निश्चित ही उसके घर-परिवार के लिए भूखों मरने की नौबत आ जाएगी। अन्न या भोजन मनुष्य के लिए एक जीवनदायिनी शक्ति ह

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स्वभाव त्यागना कठिन

15 मार्च 2017
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अपने मूल स्वभाव को त्याग पाना किसी भी जीव के लिए बहुत कठिन कार्य होता है। ऐसा ही मनुष्य का भी हाल होता है। कुछ समय के लिए तो मनुष्य अपना जन्मजात स्वभाव बदल सकता है परन्तु दीर्घकाल तक उस पर टिके रहना उसके लिए सम्भव नहीं हो पाता। इसका कारण है उसकी चञ्चल प्रकृति जो उसके स्थायित्व में सदा बाधक बनती है।

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दूसरों का मूल्यांकन

25 अक्टूबर 2016
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दूसरों का मूल्यांकन करते समय हमें ऐसा प्रतीत होता है कि फलाँ व्यक्ति में तो ऐसी कोई विशेष योग्यता नहीं है जिसकी चर्चा अवश्य करनी चाहिए। इस संसार में कोई भी व्यक्ति दूसरे को योग्य कहकर उसकी प्रतिष्ठा नहीं करना चाहता।         अपने घर की ओर नजर डालिए वहाँ आपका बेटा अथवा बेटी इतने योग्य हो सकते हैं कि द

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कष्ट देने वाले को फूल

19 मार्च 2017
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मनुष्य इस संसार में शत्रु अथवा मित्र लेकर पैदा नहीं होता बल्कि यहाँ रहते हुए उनका चयन करता है। अपनी सहृदयता से, अपने सद् व्यवहार से वह किसी भी पराए को जीवन भर के लिए अपना बना सकता है। कठोर से कठोर व्यक्ति को मोम की तरह पिघला सकता है।         इसके विपरीत नाक के बल के सामान अपने किसी प्रियजन अथवा किसी

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सफलता के लिए स्वर्णिम अवसर

14 दिसम्बर 2016
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उन्नति करने के लिए हर मनुष्य को उसके जीवन काल में एक ही स्वर्णिम अवसर मिलता है। समझदार मनुष्य उस अवसर को पहचान लेता है और उसका सदुपयोग कर लेता है। तब जीवन की ऊँचाइयों को छू लेता है। परन्तु यदि वह मौका हाथ से गँवा दिया तो कोई गारंटी नहीं कि वह पल फिर जीवन काल में दुबारा आएगा। 'पञ्चतन्त्रम्'

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सामर्थ्यानुसार दान

23 मार्च 2017
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अपने खून-पसीने से कमाए धन में से कुछ अंश अवश्य ही दान देना चाहिए। प्रयास यही करना चाहिए कि यथासंभव दान योग्य या सुपात्र को ही दिया जाए। स्वेच्छा से किये गये दान का पता नहीं चल पाता कि अपनी गाढ़ी कमाई से दिया गया दान सुपात्र को मिला या नहीं। यदि किसी कारणवश दान कुपात्र को दिया गया और वह उससे कोई कुकर्

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हर स्थिति के लिए तैयार रहें

15 सितम्बर 2016
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जीवन में मनुष्य को हर प्रकार की स्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। स्थिति चाहे बुरी-से-बुरी हो या अच्छी-से-अच्छी हो उसे अपना सन्तुलन बनाए रखना चाहिए। उसे उम्मीद का दामन नहीं छोडना चाहिए। आशा की एक किरण के सहारे मनुष्य कुछ भी कर गुजरता है। मुझे अकबर और बीरबल का एक किस्सा याद आ रहा

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किसी से मजाक करना

27 मार्च 2017
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हंसी-मजाक परेशानियों भरे माहौल से छुटकारा पाने का बहुत अच्छा साधन होता है। दूसरों को प्रसन्न रखना बहुत अच्छी आदत है। इससे वातावरण खुशगवार हो जाता है। कोई मनुष्य कितनी भी परेशानी में क्यों न हो वह मुस्कुराए बिना नहीं रह सकता। हंसते-खेलते रहने से जीवन जीना आसान हो जाता है।         मुँह बिसूरकर रहने वा

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सीढ़ियों की तरह जीवन

18 दिसम्बर 2016
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हमारा जीवन सीढ़ियों की तरह है। ऊपर जाओ तो सफलता की बुलन्दियों को छू लो और यदि नीचे उतरने पर आएँ तो गिरावट का कोई अन्त नहीं। इनके अतिरिक्त यदि घुमावदार सीढ़ियों में उलझ गए तो फिर मनुष्य को चक्करघिन्नी की तरह गोल-गोल घूमते रह जाना पड़ता है।           जितना हम जीवन में पढ़-लिखकर योग्य बनते हैं उतनी ही उन्न

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अपनी अच्छाई न त्यागें

1 अप्रैल 2017
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हमें अपनी अच्छाई को या अपने सद् गुणों को कदापि नहीं छोड़ना चाहिए। जब दुष्ट व्यक्ति अपनी दुष्टता के व्यवहार को नहीं छोड़ते तो हम सज्जनता के गुणों का त्याग क्योंकर करें।         एक दृष्टान्त दिया जाता है कि एक महात्मा नदी में स्नान कर रहे थे। वहाँ उन्हें एक बिच्छु दिखाई दिया। वे उसे एक पत्ते पर रखकर बचा

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दीपक तले अन्धेरा

30 अक्टूबर 2016
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'दीपक तले अंधेरा' हमारे सयानों ने सोच-समझकर ही यह वाक्य कहा है। दीपक जब जलता है तो चारों ओर उसका प्रकाश फैलाता है परन्तु जिस स्थान पर वह रखा जाता है यानि उसके ठीक अपने ही नीचे प्रकाश नहीं पहुँच पाता। उस स्थान पर अंधेरा ही रहता है।          इस वाक्य के पीछे के छुपे मर्म को समझना बहुत आवश्यक है। यह वा

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अनुकरणीय पथ

4 अप्रैल 2017
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किसी भी वाक्य की सत्यता को कसौटी पर परखने के लिए हम शास्त्रों में प्रमाण खोजते हैं अथवा विद्वानों की शरण में जाते हैं। वही सत्य-असत्य का बोध कराकर सबका मार्गदर्शन करते हैं। वे मनुष्य के विवेक को पैना करके उसे सही और गलत की पहचान करने के लिए सक्षम बनाते हैं। तब वह अपने सशय से मुक्त होकर अपने उद्देश्य

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दूसरों की सहानुभूति बटोरना

31 अक्टूबर 2016
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दूसरों की सहानुभूति बटोरने में कुछ लोगों को बहुत मजा आता है। इसके लिए वे हर रोज नए-नए बहाने तलाशते रहते हैं। कभी अपने स्वास्थ्य का रोना रोते रहते हैं तो कभी अपनी नाकामयाबी का।            कुछ लोग हर समय ही दूसरों के सामने अपने स्वास्थ्य अथवा अपनी मजबूरियों का रोना रो करके दूसरों को यह बताना चाहते हैं

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मनुष्य अकेला ही जिम्मेदार

23 दिसम्बर 2016
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मनुष्य को स्वयं अकेले ही अपने सभी पाप-पुण्य कर्मों के लेखे-जोखे का भुगतान करना होता है वहाँ कोई उसका साथी नहीं बनता। भरी भीड़ में भी वह अपने आपको अकेला ही पाता है।           'एकला चलो रे' गुरुवर रवीन्द्र नाथ टैगोर की यह पंक्ति सदा ही प्रेरणा देती है और मार्गदर्शन कराती है। यह पंक्ति हमें हमारे जीवन ज

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शारीर में प्राण

22 सितम्बर 2016
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प्राणशक्ति जीव के शरीर में रहती है जिसके कारण उसका यह जीवन होता है और जब यह प्राण शरीर से बाहर निकल जाता है तो जीव की मृत्यु हो जाती है। तब उस निर्जीव शरीर का संस्कार कर दिया जाता है। कोई कितना भी प्रिय क्यों न हो उसे विदा करना पड़ता है। हम सभी मोटे तौर पर शरीर में विद्यमान प्राणवायु के विषय में इतना

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चुगलखोरी की लत

25 दिसम्बर 2016
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चुगलखोरी एक कला विशेष है, जिसमें व्यक्ति निपुणता हासिल न ही करे तो अच्छा है। इस शब्द का प्रयोग सभी गाली के रूप में करते हैं। चमचा, बॉस का कुत्ता आदि कहकर लोग उनके सामने अथवा पीछे उनका उपहास उड़ाते हैं। इन चिकने घड़ों को इस विशेषण से कोई अन्तर नहीं पड़ता। वे उल्टा खुश होते हैं। इस चुगलखोरी की नामुराद आद

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अपने लिए समय निकालें

2 नवम्बर 2016
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आज की व्यस्त दिनचर्या में से अपने लिए थोड़ा-सा समय निकाल पाना सबसे कठिन कार्य लगता है। चाहे कार्यक्षेत्र की थकान की अधिकता हो अथवा कोई छोटी-मोटी बिमारी, उन सबको नजरअंदाज करते हुए मनुष्य बस अपने काम में जुटा रहता है। उसके पास आराम करने का समय ही नहीं होता। मनुष्य अपने दायित्वों को निभाने के

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दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार

27 दिसम्बर 2016
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मनुष्य को व्यवहार कुशल बनना चाहिए। उसमें इतनी समझ अवश्य होनी चाहिए कि हर व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार नहीं किया जा सकता। सज्जनों और विद्वानों के साथ सज्जनता का व्यवहार करना चाहिए अर्थात उनके समक्ष सदा विनम्र होकर ही रहना चाहिए। उनकी तरह सहृदय बनकर रहना चाहिए। दुर्जनों के साथ तो किसी भी तरह

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खो रहा बचपन

6 अक्टूबर 2016
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छोटे-छोटे बच्चों पर भी आज प्रैशर बहुत बढ़ता जा रहा है। उनका बचपन तो मानो खो सा गया है। जिस आयु में उन्हें घर-परिवार के लाड-प्यार की आवश्यकता होती है, जो समय उनके मान-मुनव्वल करने का होता है, उस आयु में उन्हें स्कूल में धकेल दिया जाता है। अपने आसपास देखते हैं कि इसलिए कुकुरमुत्ते की उगने वाले

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रिश्ते निभाना

29 दिसम्बर 2016
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संसार में रहते हुए सांसारिक रिश्ते निभाना बच्चों का खेल कदापि नहीं है। यहाँ कदम-कदम पर अग्नि परीक्षा में खरा उतरना पड़ता है। रिश्तों की दौलत हमारे पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार ईश्वर की ओर से हमें उपहार में मिलती है। उसे सम्हालना हमारे हाथ में होता है। हम चाहें तो उस पूँजी को अपने सुकृत्यों और अपने

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अपने दोष देखो

4 नवम्बर 2016
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हर इन्सान में अच्छाई और बुराई दोनों ही का समावेश होता है। ऐसा नहीं हो सकता कि किसी मनुष्य में केवल अच्छाइयाँ ही हों और दूसरे में केवल बुराइयाँ ही हों। यदि मनुष्य में कोई भी कमी नहीं होगी तो फिर वह मानव नहीं रह जाता बल्कि ईश्वर तुत्य बन जाता है। इसके विपरीत केवल कमियाँ ही किसी मनुष्य में नही

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वैराग्य की पराकाष्ठा

31 दिसम्बर 2016
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वैराग्य की पराकाष्ठा मनुष्य का अपने शरीर तक से मोहभंग करवा देती है। वह इस असार संसार के साथ-साथ स्वयं अपने को भी विस्मृत कर देना चाहता है। इसीलिए कह बैठता है- 'क्या तन मांजता रे आखिर माटी में मिल जाना।'अर्थात इस शरीर को क्या माँजना इसने तो मिट्टी में मिल जाना है।

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पुनर्जन्म और कर्मसिद्धान्त की गुत्थी

16 सितम्बर 2016
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मानव मन आदिकाल से ही कर्मसिद्धान्त और पुनर्जन्म की गुत्थी सुलझाने में लगा हुआ है। यह अबूझ पहेली की तरह उसे सदा उलझाती रहती है। ऋषि-मुनियों ने इस उलझन को सुलझाने का बहुत प्रयत्न किया। शास्त्रों में तीन प्रकार के कर्मों का उल्लेख किया गया है- संचित कर्म, प्रारब्ध कर्म और क्रियमाण कर्म।

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माँ की शीतल छाया

2 जनवरी 2017
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माँ के विषय में गाई गई गीत की एक पंक्ति स्मरण हो रही है- माँवाँ ठण्डियाँ छावाँ कि छावाँ कौन करेअर्थात माँ शीतल छाया देती है। उसके समान और कोई भी ऐसी शीतलता वाली छाया नहीं दे सकता। माँ की गोद है ही ऐसी कि सारी आयु मनुष्य के ताप हरती रहती है। वहाँ आकर मनुष्य को वास्तविक शान्ति मिलती ह

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अपनी सामर्थ्य पहचानें

6 नवम्बर 2016
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मनुष्य अपनी स्वयं की शक्ति व कमजोरी को भली-भाँति जानता है। उससे बढ़कर और कोई बेहतर तरीके से उसे जान-समझ नहीं सकता। इसलिए जैसा वह चाहता है उसे स्वयं ही अपने रास्ते का चुनाव कर लेना चाहिए। मनुष्य यदि साहसी है तो वह अपने लिए चुनौतियों भरी कठिन डगर चुनेगा। उस पर जगल के राजा शेर की तरह गर्व से सिर

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माँ घर की धुरी

4 जनवरी 2017
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माँ घर और परिवार की धुरी या केन्द्र बिन्दु होती है। घर के सारे सदस्य उसी के चारों ओर घूमते रहते हैं। उसके बिना घर घर नहीं रह जाता, वह श्मशान के समान बन जाता है। उस घर में पसरने वाला सन्नाटा बहुत ही कष्टदायी होता है। आज भी पुरुष प्रधान समाज में वही घर का मुखिया कहा जाता है। घर के कार्यों का बट

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जीवन साथी की जासूसी

8 अक्टूबर 2016
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बहुत से पति-पत्नी आपसी सम्बन्धों से इतने निराश हो जाते हैं कि एक-दूसरे की जासूसी जैसा घृणित कार्य करने लगते हैं। वे भूल जाते हैं कि अपने जीवन साथी की जासूसी करवाकर वे अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। इसका खामियाजा उन्हें भविष्य में भुगतना पड़ता है। एक-दूसरे पर कीचड़ उछालकर वे दोनों अपना सुख-चैन खो

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माँ का रूठना

6 जनवरी 2017
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माँ का रूठना मानो सारे संसार का रूठ जाना होता है। जिन लोगों की माँ उनसे नाराज होकर रूठ जाती है, उन्हें घर-परिवार के लोग और समाज कभी माफ नहीं करता। सब सुख-सुविधाएँ होते हुए भी उनके मन का एक कोना रीता रह जाता है। उन्हें हर समय मानसिक सुख और शान्ति प्राप्त करने के लिए इधर-उधर भटकते ही रहना पड़ता हैं।

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बच्चों का विकास बाधित न करें

9 नवम्बर 2016
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बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए माता और पिता दोनों की ही भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। दुर्भाग्य से किसी एक की मृत्यु हो जाने के कारण उनके बच्चे के जीवन पर बहुत दुष्प्रभाव पड़ता है। यदि दुर्भाग्यवश माता और पिता का तलाक हो जाए तब स्थितियाँ और भी विकट एवं गम्भीर हो जाती हैं। बच्चा माता के पास रहता

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माँ के बिना अधूरापन

8 जनवरी 2017
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माता के बिना मनुष्य का जीवन कभी पूर्ण नहीं होता बल्कि उसमें अधूरापन रह जाता है। माता जिसने मनुष्य को जन्म दिया है, इस संसार में लाने का महान दायित्व निभाया है, उसका पालन-पोषण करने के लिए अनेक कष्ट सहे हैं, उस माँ की अनदेखी उसे भूलवश भी नहीं करनी चाहिए। माता की आवश्यकता मनुष्य को जीवन के हर कदम पर  प

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श्राद्ध किसके लिए

24 सितम्बर 2016
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आजकल एक बार फिर पितृपक्ष चल रहा है। अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर श्राद्ध किसका करना चाहिए? मरे हुए परिवारी जनों का अथवा जीवित माता-पिता का? यह एक गम्भीर चिन्तन का विषय है। मुझे श्राद्ध का अर्थ यही समीचीन लगता है कि अपने जीवित माता

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वृद्धावस्था में माँ की देखभाल

10 जनवरी 2017
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वृद्धावस्था में अपनी माता का ध्यान उसी प्रकार रखना चाहिए जिस तरह वह बचपन में आपका ख्याल रखती थी। आयु बढ़ने के साथ-साथ दिन- प्रतिदिन शारीरिक रूप से अक्षम होते रहने के कारण वह अपने दैनन्दिन कार्यों को करने में असमर्थ होने लगती है। इसलिए उसके जीवन में स्वाभाविक रूप से ही असुरक्षा की भावना आने लगती है।

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कांक्रीट के जंगल

11 नवम्बर 2016
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कंक्रीट के जंगल में रहते-रहते हम सभी शहर वासी संवेदना से रहित होते जा रहे हैं। ऊँची-ऊँची बहुमंजिली इमारतें हमारी प्रगति व वैभव का प्रतीक हैं। एक जैसे बने ये आलिशान भवन मानो हमें मुँह चिढ़ा रहे हैं।       इनमें रहने वाले हम दिन-प्रतिदिन अपने में सिमटते जा रहे हैं। मैं, मेरे बच्चे और मेरा परिवार बस। इस

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रहस्यों का ढिंढोरा न पीटें

12 जनवरी 2017
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अपने बड़बोलेपन के कारण हमेशा हर बात का ढिंढोरा पीटते रहना उचित नहीं होता बल्कि कुछ रहस्यों को गोपनीय रखना भी आवश्यक होता है। ईश्वर ने हम मनुष्यों को बुद्धि का वरदान इसीलिए दिया है कि हम सदा सोच-समझकर विचार करें और बोलें। अपने रहस्यों को उद्घाटित करना समझदारी का काम नहीं बल्कि सरासर मूर्खता है।

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जन्म-मृत्यु के दो पाटों के बीच

10 अक्टूबर 2016
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यह संसार चक्की के दो पाटों की भाँति निरन्तर चलायमान है। इसका एक पाट जन्म है और दूसरा पाट मृत्यु है। इस जन्म और मृत्यु के दोनों पाटों में जीव आजन्म पिसता रहता है। इस क्षणभंगुर संसार में जन्म और मृत्यु के दो पाटों में पिसते हुए मनुष्य का अन्त निश्चित है। अतः इस असार संसार से विरक्ति होना स्वाभाविक ही

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'द' का अर्थ

14 जनवरी 2017
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उपनिषद की कथा है कि एक बार देवता, असुर व मनुष्य प्रजापति के पास गए और उनसे उपदेश देने के लिए कहा। उन्होंने उन्हें केवल 'द' शब्द का उपदेश दिया। तीनों ने उस शब्द का अर्थ अपनी बुद्धि के अनुसार लगाया। देवताओं ने 'द' शब्द से संयम अर्थ लिया। असुरों ने इस 'द' शब्द से अर्थ समझा दया। मनुष्यों ने 'द' शब

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मृत्यु विश्राम स्थली

13 नवम्बर 2016
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दिनभर भागदौड़ करते हुए जब मनुष्य थक जाता है तो वह रात्री उसके लिए विश्राम स्थली बन जाती है। नींद पूरी कर लेने के पश्चात प्रातःकाल नए दिन की चुनौतियों को स्वीकार करने के लिए वह तरोताजा हो जाता है। उसी प्रकार जीवन पर्यन्त संसार सागर में द्वन्द्वों के थपेड़ों को झेलता हुआ मनुष्य बहुत थक जाता है,

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माँ और मातृत्व

18 जनवरी 2017
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माँ की पूर्णता उसके मातृत्व से होती है, ऐसा शास्त्रों और मनीषियों का कथन है। सन्तान पर माँ का अधिकार हर रिश्ते से नौ मास अधिक होता है क्योंकि वह नौ माह तक उसे अपने गर्भ में धारण करती है। उसे अपने रक्त से सींचती है। दुर्भाग्यवश यदि पति और पत्नी में तलाक की स्थिति बनती है तो उस समय कानूनन माँ को ही ना

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वायुमंडल पर पर्यावरण का प्रभाव

16 जनवरी 2017
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वायुमण्डल में चारों ओर ही नकारात्मक बयार बह रही है। इसका गहरा प्रभाव हम सबके तन यानि स्वास्थ्य, मन, धन और मस्तिष्क सब पर  हो रहा है।          सबसे पहले हम तन की चर्चा करते हैं। पर्यावरण के दूषित होने कारण हमारे शरीर पर प्रभाव पड़ता है। गाड़ियों, एसी, फेक्टरियों आदि के धुँए के कारण दूषित वायु के चलने स

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सहृदय मानव

15 नवम्बर 2016
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मानव मन बहुत ही सहृदय होता है। कुछ लोग अपने कृत्यों से उसे पत्थर-सा कठोर बना लेते हैं। वे इस प्रकार का प्रदर्शन करते हैं कि कोई जिए या मरे, उन्हें किसी की भी कोई परवाह नहीं है। परन्तु हर समय ऐसा हो नहीं पाता है। समय आने पर बड़े-बड़े पत्थर दिल इन्सानों को फूट-फूटकर रोते हुए यानी मोम-सा पिघलते हुए देखा

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सात पतन के कारण

20 जनवरी 2017
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अपने जीवन में सदा सुख की कामना करने वाला इन्सान यदि इन सातों के फेर में फँस जाए तो उसके लिए जीना दुश्वार हो जाता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और स्वार्थ- ये सातों मनुष्य के पतन के कारक हैं।      हमारे अंत:करण में विराजमान शत्रुओं में काम प्रमुख शत्रु है। इससे मित्रता करने वाले को शर्मिं

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ईश्वर का स्मरण सदा

12 अक्टूबर 2016
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अपने दुखों, कष्टों और परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए ही मनुष्य को भगवान याद आते हैं। अपनी पीड़ा से छुटकारा पाने के लिए हर इन्सान ईश्वर को याद करने लगता है। यदि सुख में प्रभु को याद किया जाए तो मनुष्य के पास दुख नहीं आता। यानी उसमें दुखों से लड़ने, उनसे मुक्ति पाने की सामर्थ्य मिल जाती है। इस तरह मा

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सौतेली माँ

22 जनवरी 2017
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माँ तो माँ होती है चाहे वह अपनी सगी माँ हो या सौतेली। सौतेली माँ की छवि हमारे दृष्टिपटल पर कोई अच्छा भाव लेकर नहीं आती। इसका कारण है कि सौतेली माँ के विषय मे हमने जितना पढ़ा है या सुना है, उसके अनुसार उसका नकारात्मक चरित्र ही अधिकाँशत: हमारे समक्ष चित्रित किया जाता है। इन सबसे उसके विषय में ऐ

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चन्दन विष व्यापे नहीं

17 नवम्बर 2016
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चंदन वृक्ष की सुगन्ध और शीतलता के कारण अजगर जैसे विशाल विषधर उस पर लिपटे रहते हैं उस पर उनके विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसी प्रकार उत्तम प्रकृति के महान लोगों पर भी बुरी सगति का कोई असर नहीं होता। रहीम जी ने इसी बात को बड़े सुन्दर शब्दों में कहा है-जो रहीम उत्तम प्रकृति , का करि सकत कुसंग।चन्दन विष

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आध्यात्म ज्ञान

24 जनवरी 2017
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हमारी वाणी, हमारी श्रवण इन्द्रिय, हमारी नासिका या घ्राण शक्ति, हमारी आँखें, हमारा, हमारा प्राण आदि हमारे होते हुए भी हमारे नहीं होते। अर्थात कुछ समय पश्चात हमारा साथ छोड़ देते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ये हमें साधन के रूप में निश्चत समय के लिए मिलते हैं। यदि इनका उपयोग हम आत्मोन्नति के लिए करते ह

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बाहुबल पर भरोसा आवश्यक

26 सितम्बर 2016
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मनुष्य को अपने बाहूबल पर पूरा भरोसा होना चाहिए। यदि उसे स्वयं पर विश्वास होगा तो वह किसी भी तूफान का सामना बिना डरे या बिना घबराए कर सकता है। वैसे तो ईश्वर मनुष्य को वही देता है जो उसके पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार उसके भाग्य में लिखा होता है। परन्तु फिर भी जो व्यक्ति स्वयं ही अपनी शक्ति पर भरोसा

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प्रलोभनों से बचें

26 जनवरी 2017
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समाज में रहते हुए मनुष्य को नानाविध प्रलोभनों का सामना करना पड़ता है। जो लोग उनसे प्रभावित हुए बिना अपने रास्ते पर चलते रहते हैं वे जीवन की ऊँचाइयों में छूते हैं। इसके विपरीत जो उनके झाँसे में आ जाते हैं वे अपना मार्ग भटक जाते हैं। उनमें से कुछ लोग कभी-कभी भटकते हुए किसी सज्जन की संगति पाकर सन्मार्ग

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जीव की यात्रा अकेले

19 नवम्बर 2016
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जीव को जन्म-जन्मान्तरों की यात्रा अकेले ही तय करनी पड़ती है। सारे सुख और सारे दुख उसे अकेले ही झेलने होते हैं। दूसरा व्यक्ति उससे सहानुभूति रख सकता है, उसकी सेवा-सुश्रुषा कर सकता है, अपने हाथ से उसे खिला सकता है परन्तु उसकी होने वाली शारीरिक अथवा मानसिक किसी भी प्रकार की पीड़ा को साझा नहीं कर सकता।

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0ईटा की महानता

28 जनवरी 2017
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माँ की महिमा के विषय में शास्त्रों, कवियों, मनीषियों और लेखकों के द्वारा आज तक बहुत लिखा जा चुका है। परन्तु पिता की महानता का वर्णन करने में इन सबने ही कृपणता का प्रदर्शन किया है। सन्तान के पालन-पोषण में यद्यपि उसकी भूमिका भी अहं होती है।       शास्त्रों ने कहा है कि पिता आकाश से भी ऊँचा होता है। इस

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मोबाइल संस्कृति

14 अक्टूबर 2016
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छोटे बच्चे से लेकर बड़ों तक सबके पास मौजूद इस मोबाइल ने दिलों और घर में दूरियाँ बढ़ा दी हैँ। सभी सदस्य इसी पर व्यस्त रहते हैं, एक ही घर में रहते हुए किसी से बात करने का समय उन्हें नहीं मिल पाता। यह चिन्ता का विषय है। इस मोबाइल की इतनी तल लग गई है कि न चाहते हुए भी इसके बिना रह पाना कठिन हो जाता है।

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अपनी माँ की सुरक्षा

30 जनवरी 2017
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कुछ लोगों का मानना है कि परिवार में पुत्र का होना बहुत आवश्यक होता है। इसका कारण वे बताते हैँ कि वह कुल को तारने वाला होता है और 'पुम्' नामक किसी नरक से उद्धार करवाता है। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि जो बच्चे अपने दादा या अधिकतम अपने परदादा का नाम तक नहीं जानते वे किस कुल का उद्धार करेंगे। अपने

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असहिष्णु बनते हम

21 नवम्बर 2016
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इक्कीसवीं सदी में महान वैज्ञानिकों ने जहाँ आश्चर्यजनक चमत्कार किए हैं वहीं दूसरी ओर हम मनुष्य आवश्यकता से अधिक असहिष्णु बनते जा रहे हैं। यह समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा क्यों हो रहा है? आजकल समाज में जनमानस की बढ़ती हुई असहिष्णुता के समाचार नित्य प्रति टी.वी. पर, समाचार पत्रों में और सोशल मीडिया

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माता-पिता वृक्ष की तरह

2 फरवरी 2017
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हमारे माता-पिता परोपकारी महान वृक्ष की तरह होते हैं जो अपने बच्चों को अपना सर्वस्व सौंप देते हैं। जब बच्चे छोटे होते हैं तब उनके साथ उन्हें खेलना अच्छा लगता था। बच्चे उनके साथ रूठते हैं, जिद करते हैं और नई नई माँगे रखते हैं तो उन्हें पूरा करके वे गौरवान्वित होते हैं। वे भी उनकी सारी कामनाओँ को खुशी-

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व्यापक और व्याप्त

18 सितम्बर 2016
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ईश्वर को हम सर्वव्यापक मानते हैं। वह इस ब्रह्माण्ड के कण-कण में व्याप्त है। उस परमात्मा की सत्ता का हम अनुभव तो कर सकते हैं पर उसे इन भौतिक चक्षुओं से देख नहीं सकते। उसकी इस व्याप्ति का अर्थ हम कर सकते हैं - व्याप्त होने की अवस्था या भाव, विस्तार या फैलाव और सभी अवस्थाओं में प्रायः व्याप्त

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ईश्वर की पूजा किस रूप में

4 फरवरी 2017
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ईश्वर साकार है या निराकार यह सदा से ही विवाद का कारण रहा है। कुछ लोग निराकार की उपासना करते हैं और कुछ लोग साकार की आराधना करते हैं। दोनों ही प्रकार के साधक अपने-अपने पक्ष में बहुत-सी दलीलें देते हैं। वास्तव में ईश्वर का कोई स्वरूप नहीं है। वह एक ऐसा प्रकाश पुञ्ज है जिसका दर्शन करना असम्भव तो

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ईश्वर को जीवों की चिन्ता

23 नवम्बर 2016
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मनीषी कहते हैं कि जो व्यक्ति ईश्वर के प्रति पूर्णतः समर्पित होते हैं, उनकी चिन्ता वह मालिक स्वयं करता है। इस संसार के सभी जीव परमात्मा का ही अंश हैं। इस भौतिक संसार के माता-पिता जैसे अपने बच्चों की सारी सुविधाएँ देते हैं, उसी तरह परमपिता भी अपने सब बच्चों के सुख-दुख और सुविधाओं के विषय में सदा सोचता

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उड़न भरते बच्चों को अपनों का मोह

6 फरवरी 2017
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पक्षियों के बच्चों की भाँति जब बच्चे लम्बी उड़ान भरकर दूर परदेश में चले जाते हैं तो उनके मन का कोई कोना रीता रह जाता है। अपनी मातृभूमि और जन्मदाता माता-पिता की याद उन्हें सदा सताती रहती है। अपनी नौकरी, व्यवसाय अथवा शिक्षाग्रहण आदि की विवशताओं के कारण इतनी दूरी को पाट पाना उनके वश में नहीं रह जाता।

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पाणिग्रहण संस्कार के वचन

16 अक्टूबर 2016
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भारतीय संस्कृति में पाणिग्रहण संस्कार अथवा विवाह का बहुत महत्त्व है। इसका अर्थ है - विशेष रूप से उत्तरदायित्व का वहन करना। विवाह योग्य युवा स्त्री और पुरुष का यह विवाह उन दोनों के साथ-साथ उनके पारिवारों के जीवन में भी परिवर्तन लाता है। अग्नि के समक्ष सात फेरे लेकर और ध्रुव तारे को साक्षी मानत

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भावावेश से बचें

8 फरवरी 2017
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भावनाओं के क्षणिक आवेश में बहकर हम किसी ओर का नहीं स्वयं का ही नुकसान कर लेते हैं। यह आवेग एक प्रकार से ज्वर के समान होता है जिसके ताप में जलते हुए हम स्वयं ही कष्ट प्राप्त करते हैं। इससे बाहर निकलने का रास्ता भी हमें स्वयं ही खोजना होता है।        हम आवेश में क्यों आ जाते हैं? यह हमारा नुकसान क्यों

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रूठकर अलाग बैठना

25 नवम्बर 2016
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लड़-झगड़कर मुँह फुलाकर अलग-थलग होकर बैठ जाना अथवा अपने-अपने रास्ते चल देना किसी भी समस्या का हल नहीं होता। समस्या का समाधान आपस में मिल-बैठकर किया जाता है। यानि कोशिश यही रहनी चाहिए कि बातचीत का रास्ता बन्द न हो।          सम्बन्धों में कितनी भी कटुता क्यों न आ जाए उनसे किनारा नहीं किया जा सकता। देर-सव

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सामान सौ बरस का

11 फरवरी 2017
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एक मनुष्य को अपने जीवन में दो वक्त की रोटी, सिर छिपाने के लिए एक छत और दो जोड़ी कपड़ों की मात्र आवश्यकता होती है। ऐसा हमारे सयाने लोगों का कथन है।          समस्याएँ तभी जन्म लेती हैं जब हमारी महत्त्वाकाँक्षाएँ पैर पसारने लगती हैं। तब हमारा दिन-रात का सुख-चैन सब हवा होने लगता है अर्थात छिनने लगता है। ह

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किसी की मुस्कुराहट पर न जाएँ

28 सितम्बर 2016
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किसी व्यक्ति के हँसते-मुस्कुराते हुए चेहरे को देखकर यह अनुमान लगाना कदापि उचित नहीं है कि उसे अपने जीवन में कोई गम नहीं है। अपितु यह सोचना अधिक समीचीन होता है कि उसमें सहन करने की शक्ति दूसरों से कुछ अधिक है।         पता नहीं अपनी कितनी मजबूरियों और परेशानियों को अपने सीने में छुपाकर वह दूसरों के चे

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स्वर्गीय और नारकीय सुख-दुख

13 फरवरी 2017
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स्वर्ग और नरक की परिकल्पना हर धर्म में की गई है। परन्तु स्वर्ग या नरक कोई ऐसे विशेष स्थान नहीं है जहाँ मरकर मनुष्य जाता है। विद्वानों का मानना है कि उनकी चाहत करना वास्तव में अज्ञान का प्रमाण है। स्वर्ग और नरक दोनों इसी धरती पर हैं। इनसे हम सबका वास्ता पड़ता रहता है। मनीषी समझाते हैं कि माता के

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धन्यवाद करना सीखें

27 नवम्बर 2016
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इन्सान हर समय कभी ईश्वर से और कभी उसकी बनाई हुई दुनिया से सदा शिकायत करता रहता है। वह तो मानो धन्यवाद करना ही भूल गया है। पता नहीं वह इतना नाशुकरा कैसे है?            मनुष्य हर समय किसी-न-किसी वस्तु की कामना करता रहता है। यदि वह उसे मिल जाती है तो यही कहता है यह उसके परिश्रम का फल है। उसके पूर्ण हो

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झूठा आडम्बर

15 फरवरी 2017
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जरा देखो तोहँसते-हँसते आजजीतती जा रही है अबयह मौत, जिन्दगी की बाजी को हमसे।खुश होंगे बच्चेकि अब है छूटी जानजो बुजुर्गों के बन्धन मेंअब तक न चाहते हुए भी फँसी हुई थी।उनकी आजादीनहीं रहेगी बन्धकउनका कमरा भी तोअब खाली हो जाएगा जो भरा हुआ था।जीवनकाल मेंजिन्होंने न पूछाएक घूँट पानी का कभीआज अपने नाम को प्

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भागकर विवाह करना

18 अक्टूबर 2016
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आजकल प्रेम विवाह का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। लड़के और लड़की के बीच में जब प्रेम हो जाता है तो उसके पश्चात वे विवाह कर लेते है। हमारे ऋषि-मुनियों ने इस विवाह को शुभ नहीं माना। निश्चित ही उन्हें इसमें कुछ बुराई दिखाई दी होगी। इस प्रेम विवाह को हम गंधर्व विवाह की श्रेणी में रख सकते हैं। यदि युवक और

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आशा का दामन न छोड़ें

17 फरवरी 2017
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मनुष्य इस आशा में सारा जीवन व्यतीत देता है कि कभी तो उसके दिन बदलेंगे और वह भी सुख की साँस ले सकेगा। वह उस दिन की प्रतीक्षा करता है जब उसका भी अपना आसमान होगा जहाँ वह लम्बी उड़ान भरेगा। उसकी अपनी जमीन होगी जहाँ वह पैर जमाकर खड़ा हो पाएगा। तब कोई उसकी ओर चुभती नजरों से देखने की हिमाकत नहीं करेगा।      

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उत्तरों की खोज

29 नवम्बर 2016
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इस संसार में मनुष्य जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने मन में उठते हुए कुछ प्रश्नों के उत्तर खोजने में लगा रहता है। इस खोज में उसका सारा जीवन व्यतीत हो जाता है पर ये प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते हैं। वह कोई सन्तोषजनक हल नहीं ढूँढ पाता। ये प्रश्न निम्नलिखित हैं-        हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है? क्या ईश

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मनुष्य का मिथ्या अहं

19 फरवरी 2017
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प्रत्येक मनुष्य अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में अनथक परिश्रम करता हुआ धन-वैभव जुटा लेता है। तब सोचने लगता है कि वह इतना सामर्थ्यवान हो गया है कि मानो अलाद्दीन का चिराग उसके हाथ लग गया है। अब वह दुनिया की हर वस्तु खरीद सकता है, अपनी मुट्ठी में कर सकता है। इस संसार की कोई भी ऐसी वस्तु नहीं हो सकती, जिसकी वह

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हिंदी दिवस

14 सितम्बर 2016
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हिन्दी दिवस 14 सितम्बर पर विशेष-आज हिन्दी दिवस पर हमें आत्ममंथन करने की आवश्यकता है। वाकई क्या हम हिन्दी भाषा के विस्तार अथवा प्रचार-प्रसार के प्रति मन, वचन और कर्म से सन्नद्घ हैं? मेरे विचार में ऐसा नहीं है। हम सबका इस विषय में दोहरा चरित्र है। कहने को हमें हिन्दी से बहुत प्यार है क्योंकि

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कुशासन में रहना असुरक्षित

21 फरवरी 2017
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यदि किसी देश में कुशासन हो तो समझ लेना चाहिए कि वह देश संक्रमण काल से गुजर रहा है। वहाँ अराजकता का साम्राज्य बना रहता है। उस देश की जनता में भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी, धोखाधड़ी, अनैतिक व्यवहार आदि का प्रचलन बढ़ने लगता है। वहाँ परस्पर आत्मीयता, भाईचारा और विश्वास जैसे नैतिक गुण समाप्त होने की कगार पर पहुँ

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मैं और तुम नहीं, हम

1 दिसम्बर 2016
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मेरे कुछ भी कह देने से न जाने क्यों तुम्हारा झूठा अहं तिलमिला जाता है।छोड़ दो पुरुषत्व का ओढ़ा झूठा दम्भबन जाओ एक आम साधारण इन्सान।पुरानी बेकार की रिवायतों को छोड़ोजीवन में कुछ नया लाओ, नया सोचो।हम दोनों हैं जब एक रथ के दो पहिएतब क्या होगा बड़प्पन और छोटापन।दोनों को बराबर मानने से ही मिलेगाजीत की खुश

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गुरु-शिष्य की कसौटी

23 फरवरी 2017
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गुरु की प्रशस्ति में साहित्य में बहुत कुछ लिखा गया है। 'गुरुगीता' नामक एक अलग से भी एक पुस्तक है, जिसके श्लोकों में गुरु का यशोगान किया गया है। यह भी सत्य है कि अपने शिष्यों के जीवन निर्माण में उसकी भूमिका सक्रिय होती है, जिसे हम प्रशंसनीय कह सकते हैं। वह कुम्हार के पात्रों की भाँति अपने शिष्यों के

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वैवाहिक संस्था पर कुठाराघात

20 अक्टूबर 2016
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भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात करने के लिए पाश्चात्य लोग तैयार बैठे हुए हैं। उनके पिछलग्गू देशीय महानुभाव भी आग में घी डालने कार्य कर रहे हैं। इसका दुष्परिणाम है वे विवाह जैसी सामाजिक व्यवस्था को तहस-नहस करना चाहते हैं। पर शायद वे भूल रहे हैं- यूनान, मिस्र, रोमा सब मिट गए जहाँ से बा

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रचनाकर की सफलता

25 फरवरी 2017
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रचनाकार वही सफल होता है जो समाज को दिशा देने का अपना दायित्व पूर्णरूपेण निभाता है। यद्यपि लेखन स्वान्त: सुखाय होता है तथापि उसमें रचनाकार का श्रम परिलक्षित होना चाहिए। यह तभी सम्भव हो सकता है जब वह कुछ जानना और समझना चाहे अन्यथा उसका किया हुआ सृजन स्तरीय नहीं हो सकता।         साहित्य सृजन के लिए सबस

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जैसा कर्म वैसा फल

3 दिसम्बर 2016
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सुकर्म या दुष्कर्म जैसा भी कर्म मनुष्य इस संसार में रहते हुए करता है, परमात्मा उसे उसी के अनुरूप फल देता है। यानी कि सुकर्मों के बदले सुख, समृद्धि और शान्ति आदि देता है। दुष्कर्मों के बदले उससे उसका सब कुछ छीन लेता है। एक कथा आती है कि एक बार महारानी द्रौपदी प्रातःकाल स्नान करने के यमुना जी

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असहिष्णुता

27 फरवरी 2017
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आजकल असहिष्णुता शब्द की राजनैतिक गलियारों में चर्चा बहुत जोरों पर है। इसका अर्थ है दूसरे लोगों को अथवा उनके कथन को सहन न कर पाना। समझ में नहीं आता कि दिन-प्रतिदिन हम लोग इतने असहिष्णु क्यों बनते जा रहे हैं? हम लोग किसी को भी बर्दाशत नहीं करना चाहते।          आज धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर या किसी

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मर्यादा का पालन

30 सितम्बर 2016
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स्त्री हो या पुरुष मर्यादा का पालन करना सबके लिए आवश्यक होता है। घर-परिवार में माता-पिता, भाई-बहन, बच्चों और सेवक आदि सबको अपनी-अपनी मर्यादा में रहना होता है। यदि मर्यादा का पालन न किया जाए तो बवाल उठ खड़ा होता है, तूफान आ जाता है। मर्यादा शब्द भगवान श्रीराम के साथ जुड़ा हुआ है। संसार उन्हें आज

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यक्ष प्रश्न पत्नी का पति से

1 मार्च 2017
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तुमने चाहा मैं तो सीता बन गईपर क्या तुम मेरे राम बन सके?पग-पग पर तुमने मेरे लिए बसमर्यादाओं की रेखाएँ ही खींचीमैं उन पर अब तक उतरी खरी न सुना तुम्हारा उलाहना कभीभविष्य में भी नहीं सह पाऊँगीतुम्हारी परोसी गई अवहेलनाचाहे तुम नित नए बहाने खोजोइस जीवन में हार नहीं मानूँगीतुमने चाहा मैं तो सीता बन गईपर

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ईश्वर पर विश्वास रखें

5 दिसम्बर 2016
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ईश्वर पर यदि दृढ़ विश्वास हो तो मनुष्य अपने सभी कर्मों को उसी को ही समर्पित करता है। किसी भी कर्म को करने से पहले वह उस मालिक का स्मरण करता है और उसका धन्यवाद करता है। इस तरह मनुष्य अशुभ कार्यों में फँसने से बच जाता है और परेशानियों से भी बच जाता है। जिस कार्य में मनुष्य को सफलता मिलती है, उस

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पढ़ने की प्रवृत्ति

3 मार्च 2017
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आज समय और परिस्थितियाँ बदल रही हैं। पुस्तकें पढ़ने की प्रवृत्ति मानो कहीं खो रही है। दुर्भाग्य की बात है कि बच्चे पढ़ने के नाम से ही दूर भागने लगते हैं। अपनी पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें पढ़ने में बच्चों की कमतर होती प्रवृत्ति वास्तव में चिन्ता का विषय बनती जा रही है। बड़े हो जाने पर उनकी यह

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मन की असीम शक्तियाँ

22 अक्टूबर 2016
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मनुष्य यदि अपने अंतस में झाँककर देख सके और अपनी असीम शक्तियों को पहचानकर उनका भरपूर लाभ उठा सके तो अपने किसी भी सपने को पूरा करने से उसे कोई नहीं रोक सकता।         इसका कारण है कि मानव मन को ईश्वर ने असीम ऊर्जाकोष का उपहार दिया है। प्रत्येक मनुष्य में इतनी सामर्थ्य होती है कि वह जो भी चाहे हाथ बढ़ाकर

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कचरे जैसे लोगों से बचें

5 मार्च 2017
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संसार में कुछ लोग ऐसे होते हैँ जो कचरे के ढेर की भाँति होते हैं। ऐसे लोगों को कूढ़-मगज कहा जाता है। वे ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, घृणा, चिन्ता, निराशा आदि नकारात्मक विचारों का बहुत-सा कूड़ा अपने मस्तिष्क में भरकर रखते हैं। यद्यपि इसका जीवन में न तो कोई महत्त्व होता है और न ही कोई आवश्यकता होती है। जब उनक

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साहसी बनो

7 दिसम्बर 2016
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साहसी और पराक्रमी लोगों को सदैव ही अपने बाहुबल पर पूर्ण विश्वास होता है। वे कभी तथाकथित तान्त्रिकों-मान्त्रिकों के फेर में नहीं पड़ते। वे अपने बलबूते पर अपना स्थान समाज में स्वयं ही बना लेते हैं। किसी प्रकार के कर्मकाण्ड पर उनको भरोसा नहीं होता। वे जंगल के राजा शेर की तरह निष्कंटक अपना अस्तित्व बनाए

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ब्रह्मभोज का तिरस्कार

7 मार्च 2017
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बहुत दिनों से इच्छा थी मृत्युभोज की कुप्रथा पर लिखने की। पाँच जनवरी की डी. पी. शर्मा जी की इस आशय पर लिखी  पोस्ट पढ़ी जिसमें उन्होंने इसका पुरजोर बहिष्कार व विरोध करने का आग्रह किया था। इस कुप्रथा पर अपने विचार लिखने से मैं स्वयं को रोक नहीं पा रही। आशा है कि आप सभी सुधी लोग इस विषय पर मेरे  विचारों

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अपनों से बिछुड़ना

20 सितम्बर 2016
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अपने किसी प्रियजन को जब इस असार संसार से विदा करना पड़ता है तब मन उस अकथनीय पीड़ा से विदीर्ण होने लगता है। यह दुख सहन करना बहुत ही कठिन होता है। जैसे किसी भी कारण से शाखा से टूटा हुआ फूल वापिस उसी टहनी पर नहीं लगाया जा सकता, उसी प्रकार इस दुनिया से विदा हुए मनुष्य को पुनः लौटाकर उसी रूप में वापिस नहीं

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व्यवहार पर अंकुश

9 मार्च 2017
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आजकल भौतिक प्रगतिशीलता के चलते हम लोग कंक्रीट के जंगलों का बड़ी तेजी से निर्माण और विकास करते जा रहे हैं। इस कारण दिन-प्रतिदिन नीम जैसे छायादार और औषधीय गुणों से युक्त पेड़ों को भी काटकर कम करते जा रहे हैं। पेड़ों पर अमानवीय अत्याचार करने के कारण ही आज पर्यावरण का सन्तुलन बिगड़ता जा रहा है। इसके लिए वैज

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सिद्धान्तों से समझौता नहीं

9 दिसम्बर 2016
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विचारणीय है कि मनुष्य को ईश्वर ने यह बहुमूल्य शरीर, धन-दौलत, सम्पत्ति, घर-परिवार, बन्धु-बान्धव आदि इतना कुछ दिया है। फिर भी वह थोड़ी-सी धन-सम्पत्ति के लिए सारी आयु झगड़ा करता रहता है। उसके लिए छल-फरेब करता है। किसी की भी धन-सम्पत्ति हड़पने से चूकता नहीं है यानी होशियारी दिखाता है। फिर उसका परिणाम चाह

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रिश्तों को बचाना आवश्यक

11 मार्च 2017
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एक-दूसरे के लिये जीने का नाम ही वास्तव में जिन्दगी कहलाता है। सामाजिक प्राणी इस मनुष्य को कदम-कदम पर दूसरों के सहारे की आवश्यकता पड़ती रहती है। उदाहरणार्थ मनुष्य स्वयं अपने आप को गले नहीं लगा सकता। अपनी पीठ नहीं थपथपा सकता। इसी तरह अपने ही कन्धे पर सिर रखकर रो भी नहीं सकता। इस तरह के अनेक कार्य हैं ज

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जैसा खाओ अन्न वैसा होगा मन

24 अक्टूबर 2016
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हमारे आचरण पर हमारे खानपान का बहुत प्रभाव पड़ता है। शायद सुनने में अटपटा-सा लग रहा है पर यह सत्य है। छांदोग्य उपनिषद हमें बताती है- आहारशुद्धौ सत्तवशुद्धि: ध्रुवा स्मृति:। स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्ष:॥अर्थात आहार शुद्ध होने से अंत:करण शुद्ध होता है। इससे ईश्वर में स

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जीवनसाथी से विश्वासघात

14 मार्च 2017
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अपने जीवन साथी के साथ विश्वासघात करने की अनुमति समाज किसी को कदापि नहीं देता, फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष हो। यदि उन्हें विवाहेत्तर सम्बन्ध बनाने की स्वतन्त्रता दे दी गई होती तो सामाजिक व्यवस्था का ताना-बाना अब तक टूटकर कब का बिखर गया होता। उस स्थिति में इन्सान पशुओं के समान व्यवहार करने वाला बन

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समर्पण

11 दिसम्बर 2016
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समर्पण चाहे इस संसार के इन्सानों के लिए हो या भौतिक कार्यों के प्रति हो अथवा परमपिता परमात्मा के लिए ही क्यों न हो, पूर्णरूपेण होना चाहिए अन्यथा उस समर्पण का कोई अर्थ नहीं रह जाता। वह समर्पण बस एक प्रदर्शन मात्र ही बनकर रह जाता है। तब इसके कोई मायने नहीं होते। पति-पत्नी में पूर्ण समर्पण होता

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कृतज्ञता ज्ञापन

16 मार्च 2017
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इन्सान हर समय कभी ईश्वर से और कभी उसकी बनाई हुई दुनिया से सदा शिकायत करता रहता है। वह तो मानो धन्यवाद करना ही भूल गया है। पता नहीं वह इतना नाशुकरा कैसे है?            मनुष्य हर समय किसी-न-किसी वस्तु की कामना करता रहता है। यदि वह उसे मिल जाती है तो यही कहता है यह उसके परिश्रम का फल है। उसके पूर्ण हो

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ईश्वर की उपासना माँ के रूप में

2 अक्टूबर 2016
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परमपिता परमात्मा की उपासना हर व्यक्ति अपनी तरह से करता है। मेरा यह मानना है कि ईश्वर के किसी रूप की उपासना यदि माँ के रूप में की जाए तो अधिक उपयुक्त होगा। माँ से बढ़कर और कौन है जो सन्तान के विषय उससे अधिक भली-भाँति समझता है।         इसलिए यदि मनुष्य परमेश्वर से अपनी निकटता और घनिष्ठता को बढ़ाना चाहता

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प्रेम की जिज्ञासा

18 मार्च 2017
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जीवन में प्रेम के विषय में जिज्ञासा की जाए तो मनुष्य के मन मन्दिर के द्वार स्वतः खुल जाते हैं। जिस व्यक्ति ने प्रेम को जान लिया वह आज नहीं कल अपने मन मन्दिर के द्वार पर दस्तक अवश्य देगा। जब प्रेम में अभूतपूर्व आनन्द मिलता है तो प्रार्थना में भी उतना ही रस मिलता है। प्रेम यदि बून्द है या बिन्दु है तो

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शार्टकट से बचें

13 दिसम्बर 2016
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किसी भी कार्य को सावधानी पूर्वक करना चाहिए। कार्य की सफलता के लिए मनुष्य के पास दो रास्ते होते हैं। एक रास्ता होता है शार्टकट वाला, यानि गलत मार्ग। जबकि दूसरा रास्ता लम्बा और सीधा होता है। यह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि वह कितना धैर्यशाली है? वह किस मार्ग का चुनाव करना चाहता है?

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मन के गुलाम

20 मार्च 2017
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मानव मन उसे बड़े ही नाच नचाता है। यह सदा आगे-ही-आगे भागता रहता है। इसकी गति बहुत तीव्र होती है। मनुष्य देखता ही रह जाता है और यह पलक झपकते ही पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाकर वापिस लौट आता है। इससे पार पाना बहुत ही कठिन होता है। यह चाहे तो मनुष्य को सफलता की ऊँचाइयों पर पहुँचा सकता है और चाहे तो गर्त म

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आकर्षक पैकिंग से सावधान

26 अक्टूबर 2016
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आकर्षक पैकिंग को देखकर हम प्रभावित हो जाते हैं और यह मान लेते हैं कि इसके अन्दर रखी वस्तु भी उतनी ही अच्छी क्वालिटी की होगी जितनी यह दिखाई देती है। परन्तु हमेशा ही ऐसा नहीं होता। बहुधा हम धोखा खा जाते हैं और फिर अपने अमूल्य धन एवं समय की हानि कर बैठते हैं। उस समय हम स्वयं को ठगा हुआ सा महसूस

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विश्वास बनाए रखें

22 मार्च 2017
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मनुष्य को अपने जीवन में निश्चिन्त होकर रहना चाहिए। जब मनुष्य बन्धु-बान्धवों पर विश्वास करके कदम आगे बढ़ाता है तो उसे कोई चिन्ता नहीं होनी चाहिए। एक छोटे बच्चे को जब माता, पिता या अन्य लोग ऊपर उछालते हैं तो उस नन्हें से बच्चे को यह विश्वास होता है कि उसे किसी प्रकार की कोई हानि नहीं होगी। इसीलिए वह भी

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सामान सौ बरस का

15 दिसम्बर 2016
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इस दुनिया के सारे खजाने अपने लिए प्राप्त करने की इच्छा करता हुआ मनुष्य सारा जीवन कठोर परिश्रम ही करता रहता है। उसे पलभर का भी चैन नहीं मिलता। दिन-रात एक करके वह बहुत कुछ जुटा भी लेता है। जो वह हासिल नहीं कर सकता उसके लिए जोड़-तोड़ करने में लगा रहता है। इस क्रम में वह कभी प्रसन्न हो जाता है तो कभी उदास

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परछाई छू नहीं सकते

24 मार्च 2017
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हर मनुष्य की अपनी स्वयं की एक परछाई होती है। वह अपनी परछाई के पीछे सदा भागता रहता है जो कभी उसके हाथ नहीं लगती। मनुष्य आगे-आगे चलता जाता है और यह परछाई हमेशा उसके पीछे-पीछे ही चलती रहती है। चाहकर भी वह हाथ बढ़ाकर उसे छू नहीं सकता।          इंसान जब पीछे मुड़ जाती कर इसे देखने का प्रयास करता है तो यह स

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मिलावटी होते इन्सान

20 जून 2016
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मिलावटी खाद्यान्न खाते-खाते इन्सान भी दिन-प्रतिदिन मिलावटी होते जा रहे हैं। यह पढ़-सुनकर तो एकबार हम सबको शाक लगना स्वाभाविक है। यदि इस विषय पर गहराई से मनन किया जाए तो हम हैरान रह जाएँगे कि धरातलीय वास्तविकता यही है। हम मिलावटी हो रहे हैं यह कहने के पीछे तात्पर्य है कि हम सभी मुखौटानुमा जिन

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जीवन का आनन्द

26 मार्च 2017
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जीवन का आनंद वही ले पाते हैं जो कठोर श्रम करते हैं आलस करने वाले या सुविधाभोगी नहीं। जिन्हें पकी-पकाई खीर मिल जाए वे खीर बनाने का रहस्य नहीं जान सकते। उसके लिए कितना श्रम करना पड़ता है, कितनी प्रकार की सामग्रियाँ जुटाई जाती हैं? उसको बनाने वाले की भावना या उसके प्यार के मूल्य को वे उतना नहीं जान सकते

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शनगत की रक्षा

17 दिसम्बर 2016
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जीवहत्या बहुत बड़ा अपराध है। किसी को भी कारण-अकारण जान से मार देना कोई बड़ा बहादुरी का कार्य नहीं है। इसलिए हर सामर्थ्यवान व्यक्ति का कर्त्तव्य बनता है कि वह यथासम्भव असहायों की रक्षा करे। यहाँ हम चर्चा करेंगे कि किन-किन मनुष्यों का वध न करके उनकी रक्षा करना कर्त्तव्य होता है। महर्षि वाल्मीकि

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न भी कहें

28 मार्च 2017
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आँख मूँद करके किसी बात को मानने के बजाय न कहने की आदत भी डालिए। जीवन में बहुत से ऐसे मोड़ आते हैं जब मनुष्य के समक्ष दुविधा की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। उस समय भी यदि न नहीं कह पाए तो बहुत बड़ी समस्या में भी घिर सकते हैं। तब न कहिए और सुखी रहिए। सुनने में थोड़ा विचित्र लग रहा है पर यह एक सच है। इसका स

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अफवाहों पर ध्यान न दें

29 अक्टूबर 2016
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सुनी-सुनाई अफवाहों पर हमें ध्यान नहीं देना चाहिए। अफवाहें फैलाने वाले बेसिर-पैर की बातों को उड़ाते रहते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि फैलाई गयी सारी खबरों में सच्चाई हो। कभी-कभी उनकी सत्यता की परख करने पर परिणाम शून्य होता है। उस समय हमारे मन को कष्ट होता है कि काश हमने इन अफवाहों को सुनकर व्यक्ति विशेष

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सकारात्मक सोच अपनाएँ

31 मार्च 2017
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अपने द्वारा निर्धारित लक्ष्य पर पहुँचने के मनुष्य यदि लिए कटिबद्ध हो गया हो तब उसे नकारात्मक लोगों की निराशाजनक बातों की ओर कदापि ध्यान नहीं देना चाहिए। उनके सामने उसे बहरा अथवा मूर्ख बन जाने का ढोंग करना चाहिए। तब फिर उन्हें अनदेखा करके उसे अपने लक्ष्य का संधान कर लेना चाहिए।         ये निराशावादी

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मृगतृष्णा के पीछे भागना

19 दिसम्बर 2016
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मृगतृष्णा के पीछे मनुष्य आखिर कब तक भागता रहेगा। इस भटकन का कहीं कोई अन्त तो होना चाहिए न। सीमित समय के लिए मिले इस मानव जीवन को मनुष्य मानो रेस में भागते हुए बिता देता है। अपना सारा सुख-चैन गँवाकर भी यदि उसे शान्ति मिल जाए तब गनीमत समझो। वह न्यायकारी परमात्मा किसी के साथ अन्याय नहीं करता

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शरीर स्वस्थ रहना आवश्यक

2 अप्रैल 2017
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उपनिषद् का उपदेश है कि हमारा शरीर एक रथ है। हमारा शरीर एक वाहन ही तो है जो चलता रहता है और हमें भी चलाता है। इसमें यदि कोई रुकावट आ जाए यानि इसमें रोग आ जाए, एक्सीडेंट हो जाए या किसी कारण से चोट आ जाए तो सब अस्त-व्यस्त हो जाता है। मृत्यु आने पर जब यह निष्क्रिय हो जाता है। जैसे गाड़ी के नष्ट हो जाने

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बच्चों के भोलेपन का दुरूपयोग

4 अक्टूबर 2016
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अपने बच्चों की सहजता, सरलता और भोलेपन का दुरूपयोग घर के बड़ों को कदापि नहीं करना चाहिए। मेरे कथन पर टिप्पणी करते हुए आप लोग कह सकते हैं कि कोई भी अपने बच्चों का नाजायज उपयोग कैसे कर सकता है?           इस विषय में मेरा यही मानना है कि हम बड़े अपनी सुविधा के लिए अनजाने में ही बच्चों को गलत आदतें सिखाते

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भावनाओं का क्षणिक आवेग

21 दिसम्बर 2016
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भावनाओं के क्षणिक आवेश में बहकर हम किसी ओर का नहीं स्वयं का ही नुकसान कर लेते हैं। यह आवेग एक प्रकार से ज्वर के समान होता है जिसके ताप में जलते हुए हम स्वयं ही कष्ट प्राप्त करते हैं। इससे बाहर निकलने का रास्ता भी हमें स्वयं ही खोजना होता है।        हम आवेश में क्यों आ जाते हैं? यह हमारा नुकसान क्यों

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मिलावटी खानपान

16 जून 2016
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वास्तविकता यही है कि आज हम मिलावट के युग में जी रहे हैं। जिस भी चीज में देखो कुछ-न-कुछ मिला होता है। हम लोगों को कोई भी खाद्य पदार्थ अपने शुद्ध रूप में नहीं मिल पाता जिनको पाना हम सबका अधिकार है। हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे जीवन के साथ यह मिलावट का खेल चल रहा है। प्रायः टीवी और समाचार पत्रो

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एकान्तवास

14 सितम्बर 2016
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एकान्तवास यदि स्वैच्छिक हो तो मनुष्य के लिए सुखदायी होता है। इसके विपरीत यदि मजबूरी में अपनाया गया हो तो वह कष्टदायक होता है। प्राचीनकाल में ऐसी परिपाटी थी कि जब घर-परिवार के दायित्वों को मनुष्य पूर्ण कर लेता था यानी बच्चों को पढ़ा-लिखाकर योग्य बना देता था और बच्चों का कैरियर बना जाता था तथा

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जीवन की जंग जीत लो

17 सितम्बर 2016
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हर मनुष्य जीवन और मृत्यु की जंग को सुविधापूर्वक जीत लेना चाहता है। वह इस जन्म-मरण के रहस्य को जानने और समझने के लिए हर समय उत्सुक रहता है। यह कुण्डली मारकर उसके जीवन में बैठा हुआ है। सारा जीवन बीत जाता है पर यह सार उसकी समझ में नहीं आ पाता। इन्सान क्या करे और क्या न करे की कशमकश से उभर नहीं पाता।

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इंसानियत से उठता विश्वास

25 सितम्बर 2016
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इन्सानियत से दिन-प्रतिदिन मनुष्य का विश्वास उठता जा रहा है। संसार में प्रायः लोग अपना हित साधने में ही व्यस्त रहते हैं। इसलिए आज वे सवेदना शून्य होते जा रहे हैं। उनकी यह प्रवृत्ति निस्सन्देह चिन्ता का विषय बनती जा रही है। माना जाता है कि जिस व्यक्ति में संवेदना नहीं है वह तो मृतप्राय होता है। शायद क

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अवसाद

11 अक्टूबर 2016
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डिप्रेशन या अवसाद आधुनिक भौतिक युग की देन है। हर इन्सान वह सब सुविधाएँ पाना चाहता है जो उसकी जेब खरीद सकती है और वे भी जो उसकी सामर्थ्य से परे हैं। इसलिए जीवन की रेस में भागते हुए हर व्यक्ति अपने आप में इतना अधिक व्यस्त रहने लगा है कि सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक गतिविधियों के लिए उसके पास समय ही न

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दुनिया चला चली का मेला

14 नवम्बर 2016
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यह दुनिया चला चली का मेला है। निश्चित समय के लिए हम इस संसार में आते हैं। अपना-अपना समय पूर्ण करके हम यहाँ से विदा ले लेते हैं और नयी यात्रा की शुरूआत करते हैं। पुनः पुनः वही क्रम जब तक संसार में अपने आने के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते। वह लक्ष्य है मोक्ष की प्राप्ति। जब तक अपना लक्ष्य हम पा नहीं

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माँ की डाँट में भी प्यार

17 जनवरी 2017
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माँ की डाँट-फटकार में भी उसका प्यार ही छुपा होता है। ऐसा कहा जाता है कि जो प्यार करता है उसे डाँटने का भी अधिकार होता है। इस संसार में माँ से बढ़कर अपनी सन्तान से और कोई स्नेह कर ही नहीं  सकता। बच्चा चाहे रोगी हो, विकलाँग हो या कैसा भी हो, उसी में उसके प्राण अटके रहते हैं। उसके लिए सभी बच्चे उसके हृद

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