समस्याएँ अथवा परेशानियाँ मानव जीवन का एक अभिन्न हिस्सा हैं। उनसे बच पाना किसी भी व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं है। जब ये सिर उठाने लगती हैं तो इन्सान तौबा बोलने लगता है। यानी इनके प्रभावी होने की स्थिति में मनुष्य घबरा जाता है, घुटन-सी महसूस करता है। ये दोनों उसके साथ आगे-पीछे होते हुए चलती रहती हैं। कभी उसे दिखाई देती हैं यानी उसके जीवन को प्रभावित करती हैं तो कभी कुछ समय के लिए तिरोहित हो जाती हैं। ऐसा भी कह सकते हैं कि मनुष्य खुली हवा में साँस ले सके, इसलिए कुछ दिन के लिए वे आरामगाह में चली जाती हैं। परन्तु एक अच्छे व सच्चे मित्र की भाँति उसका साथ कभी नहीं छोड़तीं।
इन समस्याओं से घबराकर हार मान लेना इसका हल नहीं हो सकता। उनका सीना तानकर सामना करने से ही उनसे मुक्ति मिल सकती है। उनकी आँखों में आँखें डालकर ही उनसे उत्तर मांगना चाहिए। हम देखते हैं कि आँधी अथवा तूफान में वही बच सकते हैं जो थोड़ा झुक जाते हैं और जो वृक्ष तनकर खड़े रहते हैं, वे टूट जाते हैं। इसी प्रकार जो व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में तनकर खड़े रहते हैं या अनैतिक मार्ग अपना लेते हैं यानी उन हालातों में भी समझदारी नहीं दिखाते वे टूट जाते हैं। जो उस कठिन समय में सत्य के मार्ग पर चलते हुए धैर्य से उसके व्यतीत हो जाने की प्रतीक्षा करते हैं, वे निश्चित ही उभर जाते हैं।
जीवन सदा एक ही ढर्रे पर नहीं चल सकता। किसी को सदा ही सुख मिलता रहेगा और किसी को हमेशा दुख मिलता रहेगा, ऐसा नहीं हो सकता। ये सब क्रम से मनुष्य के पास आते रहते हैं। ये दुख-कष्ट कभी मनुष्य को उसके पूर्वजन्म कृत कर्मों के अनुसार मिलते हैं तो कभी अपनी मूर्खता से वह इन्हें न्योता दे देता है। अब आप कहेंगे कि स्वयं कोई दुख क्यों बुलाएगा? यह बिल्कुल सत्य है। हर इन्सान को ज्ञात है कि सदा समय से सोना और जागना चाहिए, समय पर खाना खाना चाहिए, भोजन सुपाच्य होना चाहिए प्रतिदिन सैर करनी चाहिए, आवश्यकता से अधिक भोजन कभी नहीं खाना चाहिए इत्यादि।
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या हम सब ऐसा करते हैं? इसका उत्तर हर ओर से नहीं में ही आएगा। यह सब नियम हमने तोते की तरह रटे हुए हैं। इनकी अनुपालना करने में हम तरह-तरह के बहाने बनाते हैं या फिर बगलें झाँकने लगते हैं। जानते-बूझते जब हम स्वयं ही अपने शत्रु बनने का कार्य करेंगे तो कष्ट भी तो हमें ही सहन करने पड़ेंगे। कोई और तो हमारे हिस्से के कष्ट नहीं भोगेगा। उस समय अपनी गलती को न मानने से इन्कार करके दूसरों पर दोषारोपण करके उन्हें कोसने से या ईश्वर को भला-बुरा कहने से समस्या नहीं सुलझ सकती। अपनी की हुई मूर्खताओं का खामियाजा खुद भुगतना ही पड़ता है।
इस तथ्य को हम यूँ भी समझ सकते हैं कि मनुष्य के जीवन की हर समस्या ट्रैफिक की लाल बत्ती की तरह होती है। हमें लाल बत्ती के हरे होने की प्रतीक्षा करनी होती है। यदि सिग्नल पर ठहरने के स्थान पर हम गाड़ी को तेजी से चलाकर कर जाने का प्रयास करेंगे तो अपने सही मार्ग से आने वाली गाड़ी से दुर्घटना होने की सम्भावना बढ़ जाती है। अपने साथ-साथ सामने वाले को भी क्षति हो सकती है। उस समय जान तक जाने का जोखिम हो सकता है। यदि हम थोड़ी देर प्रतीक्षा कर लें, तो वह लाल बत्ती हरी होनी ही होती है। तब हम निस्संकोच अपनी गाड़ी को चलाते हुए बिना किसी जोखिम के पार हो सकते हैं।
ईश्वर पर सच्चे मन से पूर्ण विश्वास रखना चाहिए कि वह सदा हमारा शुभ ही करेगा। धैर्य का दामन किसी भी कारण से कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए। सदा यही प्रयास करना चाहिए कि कष्ट का वह समय ईश्वर की अर्चना करते हुए, सज्जनों की संगति में रहते हुए और अपने ग्रन्थों का स्वाध्याय करते हुए शान्तिपूर्वक व्यतीत हो जाए। समय सदा से परिवर्तनशील है, बदलता ही रहता है, कभी एक जैसा नहीं रहता। आज दुख-परेशानी है तो शीघ्र ही सुख देने वाला समय भी जीवन में आ जाएगा। ऐसी आशा की ज्योति सदा अपने अन्तस में जलाए रखनी चाहिए, उसे किसी कारण से बुझने नहीं देना चाहिए।
चन्द्र प्रभा सूद
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