परोपकारी मनुष्य जो सदा दूसरों के हित की चिन्ता में लगा रहता है, उसके लिए इस संसार में कुछ भी प्राप्त कर लेना कठिन नहीं होता। इसका कारण है कि मनुष्य सृष्टि का ऐसा प्राणी है जिसे ईश्वर ने इतनी सामर्थ्य दी है कि वह जो भी चाहे प्राप्त कर सकता है। उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। उसमें इतनी शक्ति है कि वह किसी भी जलचर, नभचर या भूचर प्राणी को अपने वश में कर सकता है। उनके माध्यम से अपना जीवन सुगम बना सकता है। शेर जैसे खूँखार जानवर को भी पालतू बनाने की उसमें शक्ति है।
संसार की जिस भी वस्तु को पाने की वह कामना करता है, चाहे वह लौकिक हो अथवा पारलौकिक हो, उसे पाकर ही वह चैन लेता है। दूसरों का हितचिन्तक बेशक बन्धु-बान्धवों की दृष्टि में बेकार के काम कर रहा होता है परन्तु सामाजिक दृष्टि से देखा जाए तो वह महान कार्य कर रहा होता है। यदि सभी लोग अपने-अपने स्वार्थों को महत्त्व देने लगें तो समाज की भलाई के कार्य फिर कौन करेगा? इस तरह तो किसी दीन, दुखी, असहाय, जरूरतमन्द का मीत कोई नहीं बनेगा। उनके आँसू पोंछने वाला कोई नहीं होगा। वे बेचारे तो अपेक्षित हो जाएँगे।
रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने हमें समझाने का प्रयास किया है-
परहित बस जिन्ह के मन माहीं।
तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥
अर्थात जिनके मन में सदैव दूसरे का हित करने की अभिलाषा रहती है अथवा जो सदा दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं, उनके लिए सम्पूर्ण जगत में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
तुलसीदास जी के कथन का अर्थ है कि परोपकारी व्यक्ति निस्स्वार्थ भाव से देश, धर्म और समाज के कार्यों में जुटा रहता है। उसका दृष्टिकोण विशाल होता है, संकुचित नहीं। वह मैं, मेरा घर, मेरे बच्चे वाली सोच को पीछे छोड़ चुका होता है। वह सम्पूर्ण विश्व को अपना घर मानता है और वहाँ रहने वाले सभी जीवों को अपना मानता है। इसीलिए वह सामान्य लोगों से कहीं ऊपर होता है यानी महान कहलाता है। लोग भी उस पर आँख मूँदकर विश्वास करते हैं। उसका कारण यही है कि दूसरों का हित साधने में उसका अपना कोई स्वार्थ नहीं होता।
ये लोग परम विश्वसनीय होते हैं। जो भी कोई व्यक्ति अपने सुख-दुख उनके साथ साझा करता है, वे उसे कभी सार्वजनिक नहीं करते। उनके कारण किसी को शर्मिंदगी का सामना नहीं करना पड़ता। उनका मन सागर की तरह गम्भीर होता है, जिसमें अनेक नदियों की तरह बहुत से लोगों की समस्याएँ रहती हैं। वे कभी भी किसी के समक्ष प्रकट नहीं होतीं। लोगों को भी विश्वास होता हैं कि उनके सामने प्रकट की गई किसी भी समस्या का समाधान देर-सवेर हो जाएगा।
परोपकारी जीवों को जीवन में यदि किसी विपरीत परिस्थिति का सामना करना पड़ जाए तो उनका साथ देने के लिए बहुत-सी बाहें उठ खड़ी होती हैं और बहुत से कदम उनके साथ चल पड़ते हैं। इस तरह पलक झपकते ही उनकी परेशानियाँ छूमन्तर हो जाती हैं। इस तरह एक विशाल भुजबल उनकी एक आवाज़ पर उठ खड़ा होता है। इस तरह उनको लोक कल्याण के कार्यों को सम्पन्न करने में सुगमता होती है।
ऐसे महान परोपकारी, समाजसेवी लोग यदि जीवन में मिल जाएँ तो प्रयास यही रहना चाहिए कि उनका साथ न छोड़ा जाए। उनके सम्पर्क से मनुष्य कई दोषों से मुक्त हो सकता है। उनके संसर्ग से शायद अपना जीवन भी सार्थक हो जाए। यही लोग आने वाली पीढ़ियों के लिए दिग्दर्शक का कार्य करते हैं।
चन्द्र प्रभा सूद
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