मनुष्य के अधिकार क्षेत्र में है कि वह अपने भावी जीवन के लिए सपने देख सके। फिर अपने देखे हुए उन सभी सपनों को साकार करने के लिए वह दिन-रात एक कर देता है। अथक परिश्रम करता हुआ स्वयं को वह सफल लोगों को कतार में सम्मिलित करना चाहता है। यह बहुत ही प्रसन्नता का विषय है कि वह अपने जीवनकाल में कभी हार या असफलता का स्वाद चखना नहीं चाहता, जिससे उसके मुँह का स्वाद कड़वा हो जाए।
स्वयं को दुनिया की नजर में सफल प्रमाणित करने के लिए मनुष्य को किसी का मुँह नहीं देखना चाहिए बल्कि अपने बूते पर कदम आगे बढ़ाना चाहिए। उसे यह नहीं सोचना चाहिए कि कोई देवदूत आएगा और उसकी अँगुली पकड़कर वह उसे शीघ्र ही उसके लक्ष्य तक ले जाएगा। ऐसी परिकल्पना करने वाले केवल स्वप्न देखने तक ही सीमित रह जाते हैं, आगे बढ़कर सफलता को प्राप्त नहीं कर पाते। वे रेस में पिछड़ जाते हैं। उनके नाम के आगे नाकामी का ठप्पा चिपक जाता है। उसे हटाने के लिए वर्षों लग जाते हैं।
अपने सपनों को साकार करने या मूर्त रूप देने वालों को किसी की भी परवाह नहीं करनी चाहिए। लोगों को प्रसन्न करके कभी आगे नहीं बढ़ा जा सकता। टाँग खींचने वालों की कमी नहीं है। किसी को आगे बढ़ता हुआ देखकर बहुत कम ही लोग प्रसन्न होते हैं। फिर हर व्यक्ति अपनी बुद्धि के अनुसार ही परामर्श देता है। ऐसा भी आवश्यक नहीं कि कोई व्यक्ति आपकी योजना को ठीक से समझ ले और उसके अनुसार उचित रूप से आपका मार्गदर्शन कर सके। इसीलिए विद्वान कहते हैं- सुनो सबकी करो मन की।
इस सत्य से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि दुनिया में कर्मशील लोगों के सबसे ज्यादा सपने इस बात ने तोड़े हैं कि लोग क्या कहेंगे? मनीषी सत्य कहते हैं कि जितने मुँह उतनी बातें होती हैं। लोगों की बात सुनना चाहें या फिर उनसे परामर्श लेना चाहें तो इसमें कोई हर्ज नहीं। कार्य करते समय उन सुझावों को ध्यान में रखा जा सकता है। परन्तु अपनी योजना का क्रियान्वयन करते समय अपने विवेक पर विश्वास करना चाहिए। हर पहलू पर, उसके हानि-लाभ आदि विषयों पर मन्थन करके ही कदम आगे बढ़ाना चाहिए ताकि असफलता की जरा-सी भी गुँजाइश न रहने पाए।
एक बार कदम आगे बढ़ाकर पीछे नहीं हटना चाहिए। जब तक सफलता न मिले तब तक डटे रहना चाहिए। अपने कार्य को सच्चाई और ईमानदारी से करना चाहिए। यह आवश्यक नहीं कि प्रथम प्रयास में ही मनुष्य को सफलता मिल जाए। कभी-कभी मनुष्य पहले ही प्रयत्न में सफल हो जाता है और कभी-कभार उसे बारम्बार के प्रयास से भी निराश ही हाथ लगती है। हर स्थिति में, हर चुनौती का उसे सामना करना चाहिए।
जब मनुष्य को कभी असफलता का सामना करना भी पड़ जाए तो उसे हिम्मत हारकर, निराश होकर कभी बैठ नहीं जाना होता। अपना साहस जुटाकर पुनः अपने लक्ष्य को पाने के लिए जुट जाना चाहिए। यह सत्य मनुष्य को स्मरण रखना चाहिए कि मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती। परिश्रम का फल मिलने में देर हो सकती है, परन्तु मेहनत का फल कभी न मिले, यह नहीं हो सकता।
ईश्वर सदा उन्हीं लोगों की सहायता करता हे जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। उसे आलसी, कामचोर, निराश, टूटे हुए, थक-हारकर बैठे लोग पसन्द नहीं आते। उसे कर्मठ, कर्तव्यनिष्ठ, साहसी, उत्साही लोग ही अच्छे लगते हैं। इसलिए अपने कार्यों में सफलता पाने का लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। कितनी भी बाधाऐं रास्ता रोककर क्यों न खड़ी हो जाएँ, उस व्यूह को भेदकर ही अपने रास्ते सुगम बनाते रहना चाहिए। उस समय सफलता मनुष्य के पीछे भागती है और उसे छूने का प्रयास करती है।
चन्द्र प्रभा सूद
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