किए गए कर्मों का हिसाब प्रत्येक मनुष्य को इसी दुनिया में चुकाना पड़ता है। किसी भी कारण से लिया कर्जा चुकाने की इच्छा मनुष्य में होनी चाहिए। किसी की धन-सम्पत्ति को धोखे से हथिया लेना अथवा हड़प कर जाना उस समय बहुत अच्छा लगता है। परन्तु जब उसका फल भोगने के समय आता है तो परिणाम बहुत ही कष्टदायी होता है। इस दुनिया में मनुष्य इसलिए जन्म लेते हैं क्योंकि उन्हें अपने पूर्व जन्म के अनुसार किसी से कुछ लेना होता है या फिर किसी को कुछ देना होता है। प्रत्येक व्यक्ति को कुछ-न-कुछ लेने अथवा देने के हिसाब चुकता करने के लिए ही इस जन्म में बन्धु-बान्धव मिलते हैं। इसमें उसकी किसी सम्मति की आवश्यकता नहीं होती।
इस लेनदेन के अनुसार ही इस संसार में रिश्ते मिलते हैं। यह ईश्वर का न्याय है, जिसे समझना हम मनुष्यों की बुद्धि से परे की बात है। इसके अनुसार कोई बेटा बनकर आता है तो कोई बेटी बनकर आती है। कोई पिता बनकर आता है तो कोई माँ बनकर आती है। कोई पति बनकर आता है तो कोई पत्नी बनकर आती है। कोई प्रेमी बनकर आता है तो कोई प्रेमिका बनकर आती है। कोई मित्र बनकर आता है तो कोई शत्रु के रूप में आता है। कोई पड़ोसी बनकर आता है तो कोई रिश्तेदार बनकर आता है। यह ईश्वर का नियम है कि दुःख हो या सुख सबका हिसाब देना ही पड़ता हैं।
इन सबके बीच सम्बन्ध केवल पूर्वजन्म के लेनदेन का भुगतान करने तक का होता है। जब उनके बीच के लेनदेन का हिसाब चुकता हो जाता है तब उनका वियोग हो जाता है यानी वह व्यक्ति विशेष इस दुनिया से विदा हो जाता हैं। उसका वियोग किस आयु में हुआ है, यह मायने नहीं रखता। सार यही है कि उसका हिसाब पूरा हो गया और वह छोड़कर चला गया। उस प्रिय जन के चले जाने पर बन्धु-बान्धव उसे याद करके रोते हैं और व्यथित होते हैं।
एक बोधकथा देखते हैं। एक सेठ जी बहुत ही दयालु थे। धर्म-कर्म में विश्वास करते थे। उनके पास जो भी व्यक्ति उधार माँगने आता वे उसे मना नहीं करते थे। वे मुनीम को बुलाते और जो उधार माँगने वाले व्यक्ति से पूछते- "भाई! तुम उधार कब लौटाओगे? इस जन्म में या फिर अगले जन्म में?"
जो लोग ईमानदार होते वो कहते - "सेठ जी हम तो इसी जन्म में आपका कर्ज चुकता कर देंगे।"
परन्तु कुछ लोग जो ज्यादा चालक व बेईमान होते वे कहते -"सेठ जी! हम आपका कर्ज़ अगले जन्म में उतारेंगे।"
वे अपनी चालाकी पर वे मन ही मन खुश होते। अगले जन्म में उधार वापसी की उम्मीद लगाए बैठा है। ऐसे लोग मुनीम से पहले ही कह देते कि वो अपना कर्ज अगले जन्म में लौटाएँगे और मुनीम कभी किसी से कुछ पूछता नहीं था। जो जैसा कह देता मुनीम वैसा ही बही में लिख लेता।
एक दिन एक चोर भी सेठ जी के पास उधार माँगने पहुँचा। उसे मालूम था कि सेठ अगले जन्म तक के लिए रकम उधार दे देता है। हालांकि उसका मकसद उधार लेने से अधिक सेठ की तिजोरी को देखना था। चोर ने सेठ से कुछ रुपये उधार माँगे, सेठ ने मुनीम को बुलाकर उधार देने को कहा। मुनीम ने चोर से भी वही पूछा और बही में अगले जन्म की बात लिख दी।
मुनीम ने तिजोरी खोलकर पैसे उसे दे दिए। चोर ने भी तिजोरी देख ली और तय किया कि इस मूर्ख सेठ की तिजोरी आज रात में उड़ा दूँगा। वह रात में ही सेठ के घर पहुँच गया और भैंसों के तबेले में छिपकर सेठ के सोने का इन्तजार करने लगा। अचानक चोर ने सुना कि भैंसे आपस में बातें कर रही हैं। वह चोर भैंसों की भाषा ठीक से समझ पा रहा है । एक भैंस ने दूसरी से पूछा - "तुम तो आज ही आई हो न, बहन !"
उस भैंस ने जवाब दिया - “हाँ, आज ही सेठ के तबेले में आई हूँ, सेठ जी का पिछले जन्म का कर्ज उतारना है और तुम कब से यहाँ हो ?”
उस भैंस ने पलटकर पूछा तो पहले वाली भैंस ने बताया - "मुझे तो तीन साल हो गए हैं, बहन! मैंने सेठ जी से कर्ज लिया था यह कहकर कि अगले जन्म में लौटाऊँगी ।
सेठ से उधार लेने के बाद जब मेरी मृत्यु हो गई तो मैं भैंस बन गई और सेठ के तबेले में चली आयी। अब दूध देकर उसका कर्ज उतार रही हूँ। जब तक कर्ज की रकम पूरी नहीं हो जाती तब तक यहीं रहना होगा ।”
चोर ने जब उन भैंसों की बातें सुनी तो उसके होश उड़ गए। उसे समझ आ गया कि उधार हर हाल में चुकाना ही पड़ता है, चाहे इस जन्म में चुकाओ या फिर अगले जन्म में। वह उल्टे पाँव सेठ के घर की ओर भागा और जो कर्ज उसने लिया था उसे मुनीम को लौटाकर रजिस्टर से अपना नाम कटवा लिया ।
इस बोधकथा का सार यही है जो धन किसी से उधार लिया है, छीना है, धोखे से हथियाया है, उसका भुगतान तो करना ही पड़ता है। बैंक से लिए लोन की तरह कई गुना अधिक ब्याज के साथ लौटाना पड़ेगा। जितना समय अधिक बीतता जाएगा, उसी अनुपात में वह बढ़ता जाएगा। इसलिए अपने मन को बेईमानी करने से रोकना चाहिए ताकि अगले जन्म में कष्ट न भोगना पड़े। उस समय ईश्वर को उलाहना न देना पड़े कि किस जन्म की सजा दे रहा है
चन्द्र प्रभा सूद
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