समाज में प्रायः लोग उन पुरुषों को कोसते हैं जिनके विवाहेतर सम्बन्ध होते हैं। विवाहेतर सम्बन्ध का अर्थ होता है किसी शादीशुदा पुरुष का अपनी पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्री से सम्बन्ध होना। वह स्त्री पास-पड़ोस की, सहकर्मी, कोई रिश्तेदार, किसी मित्र की पत्नी या कोई अन्य भी हो सकती है। समाज में इस सम्बन्ध को मान्यता नहीं मिलती और लोग इसे नाजायज कहकर तिरस्कृत करते हैं। यह सम्बन्ध सच अथवा झूठ बोलकर किसी भी कारण से बनाया जा सकता है।
विचारणीय है कि वास्तव में क्या केवल पुरुष ही अकेला इस अपराध के लिए दोषी होता है? क्या बिना किसी स्त्री के पुरुष ऐसे सम्बन्ध बना सकता है?
पुरुष तो चञ्चल प्रकृति का होता है। वह मौके तलाशता रहता है कि कोई उसे ऐसा मिल जाए जिससे वह सम्बन्ध बना सके। कुछ तो भँवरे की तरह इधर-उधर अवसर ताकते हुए मंडराते रहते हैं। यदि हम पुरुषों के लिए मर्यादा को निर्धारित करने की बात करते हैं तो फिर स्त्रियों के लिए मर्यादा का पालन करना और भी आवश्यक हो जाता है। पुरुष को हम दोष देते हैं परन्तु उसके साथ जो नाजायज सम्बन्ध बनाती है, वह भी तो कोई महिला ही होती है, जो सारी सामाजिक वर्जनाओं का त्याग करके कुमार्ग पर अग्रसर होती है।
इसलिए अकेले पुरुष को कटघरे में खड़ा कर देना उचित नहीं कहा जा सकता। पुरुष और महिला दोनों ही इस अनैतिक कृत्य के लिए बराबर के अपराधी होते हैं। ये लोग अपने घर-परिवार, बन्धु-बान्धवों, सहकर्मियों की नजरों से बचते हुए अपने सम्बन्ध को परवान चढ़ाने का प्रयत्न करते हैं। ये अपने घर-परिवार के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहण नहीं करते। उन्हें पूर्ण करने में कोताही बरतने लगते हैं। इसलिए घर में नित्य-प्रति लड़ाई-झगड़े होने लगते हैं। इससे उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। घर में अशान्ति होने पर भी उनके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती। चिकने घड़े बने ये दुनिया को अपने ठेंगे पर रखते हुए सदा अपनी अय्याशी में ही डूबे रहते हैं।
विवाहेतर सम्बन्ध बनाने वाले महिला और पुरुष मुखौटानुमा जिन्दगी जीते हैं। अपने कुकृत्य को छिपाने के लिए वे तरह-तरह के बहाने गढ़ते हैं, झूठ का सहारा लेते हैं। ईश्वर की झूठी कसम खाने के साथ-साथ वे अपने बच्चों तक की झूठी कसमें खा लेते हैं। जो बच्चे उनका जीवन होते हैं, मान होते हैं उन्हीं के प्रति ही वे लापरवाह हो जाते हैं।
मनीषी कहते हैं कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते। जब उनकी कारस्तानियाँ जग जाहिर हो जाती हैं, उस समय उन्हें अपनों के साथ-साथ अन्य लोगों से तिरस्कार और लानत-मलानत ही मिलते हैं। ऐसे लोग समाज की नजरों से स्वयं को तो गिराते ही हैं अपनों को भी उपहास का पात्र बना देते हैं। सभी अपने प्रियजनों को बिना किसी अपराध के नजरें झुकने के लिए विवश कर देते हैं।
ये विवाहेतर सम्बन्ध हमारी भारतीय संस्कृति के अनुसार एक गम्भीर अपराध कहलाता है, जिसकी कोई माफी नहीं होती। ऐसे सम्बन्ध न किसी की पत्नी स्वीकार करती है और न ही किसी का पति। बच्चों की आँखों में भी उन्हें अपने लिए घृणा ही दिखाई देती है। इस अपराध की सजा होती है सबका तिरस्कार, अवहेलना और सबके कटाक्षों को सहन करना। धीरे-धीरे ये लोग घर-परिवार और समाज से कटने लगते हैं।
कोई भी पति अथवा पत्नी अपने जीवन साथी की बेवफाई को सहन नहीं कर सकता। उन्हें लगता है कि उनके साथी ने उनकी पीठ में छुरा घोंपा है। इन सम्बन्धों का परिणाम अन्ततः पारिवारिक विघटन होता है। तिनका-तिनका जोड़कर जो आशियाना बनाया होता है, वह देखते-ही-देखते पल भर में बिखर जाता है, ढह जाता है। इसका घातक परिणाम बच्चों को भुगतना पड़ता है। वही इस प्रकरण में सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
समझदार लोग जो शादी करके अपनी गृहस्थी बसाते हैं, वे यदि जानते-बूझते हुए अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारें तो उनकी सहायता कोई नहीं कर सकता। उनके लिए तो बस यही कहा जा सकता है कि चार दिन की चाँदनी के बाद फिर अँधेरी रात ही आती है। इसलिए क्षणिक आवेश, किसी लोभ, किसी डर अथवा किसी की चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर अपने कदमों को कभी बहकने न दें। कुमार्ग पर कदम रखने से पहले अपने घर और बच्चों के विषय मे एक बार अवश्य सोच लें।
चन्द्र प्रभा सूद
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