कर्म करते जाओ फल की चिंता मत करो….
हम अपने आस - पास अक्सर लोंगों को बोलते हुए सुनते हैं, हर कोई आध्यात्मिक अंदाज में संदेश देते रहता है - 'कर्म करते जाओ फल की चिंता मत करो…...।' वस्तुतः ठीक भी है। एक विचार यह है कि फल की चिंता कर्म करने से पहले करना कितना उचित है अर्थात निस्वार्थ भाव से कर्म को बखूबी अंजाम देना चाहिए। उसके परिणाम की चिंता नहीं करना चाहिए। कर्म करना हमारे हाथ में है और फल देना ईश्वर के हाथ में है। दूसरा विचार यह है कि कोई भी कार्य करने से पहले सोच - विचार करना आवश्यक है। जिससे कि कार्य को अच्छी तरह से पूरा किया जा सके।
भागवद् गीता में भी कहा गया है ➖
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥"
कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य का कर्म करने में ही अधिकार है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए फल की दृष्टि से कर्म नहीं करना चाहिए और न ही ऐसा सोचना चाहिए कि फल की आशा के बिना कर्म क्यों करूं।
इसमें चार तत्त्व हैं – १. कर्म करना तेरे हाथ में है। २. कर्म का फल किसी और के हाथ में है। ३. कर्म करते समय फल की इच्छा मत कर। ४. फल की इच्छा छोड़ने का यह अर्थ नहीं है कि तू कर्म करना भी छोड़ दे।
यह सिद्धांत जितना उपयुक्त महाभारत काल में अर्थात अर्जुन के लिए था, उससे भी अधिक यह आज के युग में हैं क्योंकि जो व्यक्ति कर्म करते समय उस के फल पर अपना ध्यान लगाते हैं या केंद्रित करते हैं। वे प्रायः तनाव में रहते हैं।| यही आज की स्थिति है। जो व्यक्ति कर्म को अपना कर्तव्य समझ कर करते हैं वे तनाव-मुक्त रहते हैं | ऐसे व्यक्ति फल न मिलने पंर निराश नहीं होते। तटस्थ भाव से कर्म करने करने वाले अपने कर्म को ही पुरस्कार समझते हैं। उन्हें उसी में शांति मिलती है। श्लोक में एक प्रकार से कर्म करने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। गीता के तीसरे अध्याय का नाम ही कर्म योग है।
यह संसार कर्म प्रधान है यहाँ निरन्तर कर्म करते रहना पड़ता है, बिना कर्म किये यहाँ कुछ भी नहीं प्राप्त किया जा सकता है। इस संसार में बहुत से लोग सुखद भविष्य की प्रतीक्षा में अपना समय बैठे-बैठे नष्ट करते रहते हैं। परंतु यह सत्य है कि भविष्य का आविष्कार नहीं होता जो हम करते हैं वही हमारे भविष्य में परिवर्तित हो जाता है। अगर मनुष्य अपनी जिंदगी में कुछ अच्छा करेगा तो उसकी जिंदगी में अच्छा होगा। यदि मनुष्य कुछ बुरा करेगा तो उसकी जिंदगी में बुरा ही होगा। बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो आज जिंदगी में सफल है और उसके पीछे सफलता का कारण हैं कि उन्होंने जिंदगी में सफलता पाने के लिए कर्म किया है। जो लोग असफल हैं उन्होंने कहीं ना कहीं कर्म ना करने के लिए बहानों का सहारा लिया है। ऐसे लोग जिंदगी में सफल है आप किसी भी मनुष्य को देख लीजिए किसी भी सफल व्यक्ति से पूछ लीजिए कर्म से ही भविष्य का आविष्कार होता है कर्म से ही एक मनुष्य की पहचान होती है। अगर आप भी कुछ अच्छा कर्म करोगे तो आपकी भी एक नई पहचान बन सकती है। अगर आप हाथ पर हाथ रखे बैठे रहोगे तो आप जिंदगी में कुछ भी खास नहीं कर सकोगे क्योंकि आपको जिंदगी में कुछ भी पहचान बनानी है तो कर्म ही सबसे महत्वपूर्ण है।
संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी रामचरितमानस के माध्यम से बताया है ➖ "करम प्रधान विश्व रचि राखा। जो जस करइ सो तस फल चाखा।।"
अर्थात जो जैसा कर्म करेगा उसको उन्हीं कर्मों के अनुसार फल भी भोगना पड़ेगा , यही संसार का विधान है। इसी को सर्वोपरि मानकर मनुष्य अच्छे कर्म करता है जिससे कि बदले में उसे अच्छे फल की प्राप्ति हो सके। कहने का तात्पर्य यह है कि फल को लक्षित करके कर्म किया जाए। फिर भागवद गीता में कही गई बात कि कर्म करो फल की चिंता मत करो….. मुझे तो दोनों तर्कसंगत लगते हैं। गोस्वामीजी की ये पंक्तियां भी गौर फरमाने योग्य है ➖
' होइहहिं सोइ जो राम रचि रखा.. कोकरी तर्क बढावहिं शाखा।"
अर्थात राम के मर्जी के बिना कुछ भी नहीं होता है, सबकुछ उनके इशारे पर ही होता है… उनकी मर्जी से ही होता है। कहने का तात्पर्य यह है कि राम ने अर्थात ईश्वर ने जो विधान रचि दिया है वही होगा। उनके आगे सभी ज्ञान और तर्क असफल हैं। अर्थात फल और कर्म का परिणाम ईश्वर के अधीन है, जो मनुष्य को कर्म के अनुसार प्राप्त होता है। इसलिए मनुष्य को जीवन में सत्कर्म अथवा अच्छा कर्म करना चाहिए।
प्रा. अशोक सिंह
☎️ 9867889171.