*सनातन धर्म में त्रिदेव (ब्रह्मा , विष्णु , महेश) प्रमुख देवता माने गये हैं | ब्रह्मा जी सृजन , शिव जी संहार एवं श्रीहरि विष्णु को संसार का पालन करने वाला बताया गया है | संसार का पालन करने के क्रम में सृष्टि को अनेकानेक संकटों से बचाने एवं धर्म की पुनर्स्थापना करने के लिए समय समय पर विष्णु जी ने अनेकानेक रूपों में अवतार भी धारण किया है | इन अवतारों में प्रमुख हैं राम एवं कृष्ण | जहाँ अन्य अवतार की शरीर रचना भिन्न है वहीं राम एवं कृष्ण में किंचित भी भेद नहीं है | भगवान के अवतारों में भेद कदापि नहीं करना चाहिए क्योंकि इस संसार में मनुष्य के लिए जहाँ अनेक सुविधायें प्राप्त हैं वहीं उसके विचारों एवं कृत्यों के अनुसार अनेक प्रकार के अपराध भी बताये गये हैं | इन्हीं अनेक अपराधों में एक है "नामापराध" | राम कृष्ण में भेददृष्टि रखने वाले भगवान के दोषी कहे गये हैं | राम एवं कृष्ण के लिए कहा गया है :-- " राम कृष्ण दोउ एक हैं , अन्तर नहीं निमेष ! एक के नयन गम्भीर हैं , एक के चपल विशेष | जहाँ श्रीराम "मर्यादापुरुषोत्तम" हैं वहीं श्रीकृष्ण को " लीलापुरुषोत्तम" कहा गया है | भगवान भोलेनाथ माता पार्वती को भगवान श्रीराम की कथा सुनाते हुए अध्यात्म रामायण में कहा है :- "को वा ज्ञातुं त्वामतिमानं गतमानं मायासक्तो माधव शक्तो मुनिमान्यम् ! वृन्दारण्ये वन्दितवृन्दारकवृन्दं वन्दे रामं भवमुखवन्द्यम् सुखकन्दम् !!" अर्थात :- ब्रह्मा जी कहते हैं कि :- हे लक्ष्मीपते ! आप प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से परे हैं और सर्वथा निर्माण ( जिसका परिमाण या मान ना हो) हैं ! ऐसा कौन सा मायासक्त प्राणी है जो आपको जानने में समर्थ हो ! आप महर्षियों के माननीय हैं और कृष्ण अवतार के समय वृंदावन में अखिल देव समूह की वंदना करते हुए भी श्री राम अवतार में शिव आदि देवताओं से बंदनीय हैं | ऐसे आनंदघन भगवान श्री राम की मैं बंदना करता हूं | विचार कीजिए सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी जब राम - कृष्ण में भेद नहीं कर रहे हैं तो हम आप राम कृष्ण में भेद कर के नामापराधी बनने का प्रयास क्यों करते हैं |*
*आज सनातन धर्म में भी अनेक पंथ , संप्रदाय देखने को मिलते हैं | यद्यपि सब का उद्देश्य भगवत्प्राप्ति ही है फिर भी अनेक संप्रदाय के अनुयायी आपस में द्वेश की भावना रखते हुए समय-समय पर भिड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं जबकि ऐसा करना कदापि उचित नहीं कहा जा सकता , शैव - वैष्णव , सगुण - निर्गुण , साकार - निराकार आदि को मानने वाले स्वंय को श्रेष्ठ बताते हुए दिख रहे हैं | और तो और आज तो लोग राम एवं कृष्ण में ही भेद दृष्टि रखने लगे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे सभी लोगों को बताना चाहूंगा कि भगवान के अवतारों में कोई भेद नहीं करना चाहिए क्योंकि अनेक अवतारों की मान्यता के बाद भी सनातन आध्यात्म की मान्यता है कि जो निर्गुण ब्रह्म है वही सगुण होते हैं, निर्गुण और सगुण में कोई भेद नहीं है निराकार और साकार में कोई अंतर नहीं है | निराकार ही साकार और निर्गुण ही सगुण बनता है | जिससे आकार निकलता हो उसे ही निराकार कहते हैं जब निराकार परमात्मा राम, कृष्ण, वामन भगवान आदि रूप में निराकार से कोई साकार रूप धारण कर प्रकट होता है, वही साकार है | पानी की द्रवीभूत अवस्था जल है और घनीभूत अवस्था बर्फ है | जल को जिस आकार के पात्र में रख दें वह घनीभूत होकर वही आकार धारण करता है इसके लिए उसमें अलग से किसी अन्य तत्व को मिलाने की आवश्यकता नहीं होती | यही अवस्था भगवान के अनतारों की होती है | धर्म की स्थापना ही भगवान के अवतार के मूल कारण है | जहाँ जैसी आवश्यकता होती है वहाँ उसी प्रकार का स्वरूप धारण करके परमात्मा अवतरित हो जाता है | इसलिए इनमें भेद दृष्टि रखकर नामापराधी नहीं बनना चाहिए |*
*भगवान के अनेकों रूप एवं नाम हैं जिस रूप एवं जिस नाम में व्यक्ति की श्रद्धा हो उसी को प्रेम से अपना आराध्य बना लेना चाहिए ! परंतु किसी दूसरे नाम एवं रूप का विरोध भी नहीं कपना चाहिए | ऐसा करने पर व्यक्ति की आराधना सफल नहीं हो सकती |*