*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इस मानव जीवन को पा करके मनुष्य को आत्मिक विकास करने का प्रयास करना चाहिए | आत्मिक विकास कैसे होगा ? इसके लिए हमारे धर्मग्रन्थों में आध्यात्म का मार्ग बताया गया है | अध्यात्म क्या है ? इसके विषय हमारे ग्रंथों में लिखा है कि आध्यात्म शब्द का अर्थ अपनी आत्मा या जीवन का अध्ययन करके अपना और देश का उत्थान करना , अपने अस्तित्व का बोध करना ही अध्यात्म है | जब मनुष्य को अपने अस्तित्व का बोध हो जाता है उसका जीवन अंतस के परमतत्त्व के विकास की ओर अग्रसर हो जाता है | अध्यात्म अन्वेषण एवं अनावरण के प्रयास के साथ आत्मानुसंधान का समायोजन करते हुए जीवन जीने का राजमार्ग है | कुछ लोग धार्मिक एवं वैदिक कर्मकांड को भी अध्यात्म मान लेते हैं जबकि सत्य यह है कि धार्मिक कर्मकांड का अध्यात्म से ज्यादा संबंध नहीं है परंतु यदि धार्मिक कर्मकांड भी भावपूर्ण ढंग से किया जाता है अध्यात्म में सहायक की भूमिका अवश्य निभाता है , परंतु धार्मिक कर्मकाण्ड करने वाले विद्वान अधिकतर अपने कर्मकांड और पूजा पद्धति तक सीमित रहते हुए ही संतुष्टि पा जाते हैं | वे अपने कर्मकाण्ड में इतना ज्यादा व्यस्त रहते हैं कि उनका आत्मविकास हो रहा है कि नहीं हो रहा है इससे उनको कोई मतलब नहीं रह जाता है जबकि अध्यात्म का प्रारंभ विश्वास से अधिक अपने अंतस की अभीप्सा से होती है जो अपने अस्तित्व का सच जानना चाहती है | धर्म में बताए गए चरम सत्य , परम तथ्यों का अनुभव करना चाहती है | इस प्रकार यदि कहा जाय तो आध्यात्म अनुभूति का पथ है , आत्मानुसंधान का मार्ग है , आत्म चेतना के अनावरण का विज्ञान एवं अपने ईश्वरीय स्वरूप के उद्घाटन का विधान है | अध्यात्म का नैतिकता होती है जो एक छोटी पौध के रूप में पनप रहे साधक के सुरक्षाकवच के रूप में प्रारंभिक दौर में सहायक होती है | परंतु जब वही पौध बड़े वृक्ष के रूप में विकसित हो जाती है फिर सामाजिक हितों का अधिक महत्व नहीं रह जाता | ऐसे मानव जीवन में सदाचार , तपस्या , एवं सेवा आदि साधक के जीवन के अभिन्न अंग बन जाते हैं | मनुष्य को सच्चे आध्यात्मिकता की ओर अपने कदम बढ़ाने चाहिए और यह कदम तभी बढ़ सकता है जब मनुष्य अपने विवेक के आधार पर मनुष्यता एवं नैतिकता को धारण करेगा अन्यथा आध्यात्मिक होने का दिखावा करने वाले आज समाज में बहुत लोग हैं |*
*आज बड़े-बड़े मंचों से आध्यात्म एवं आध्यात्मिकता के प्रवचन सुनने को मिलते हैं | आज आध्यात्म एक लोकप्रिय शब्द बन गया है जिसका प्रयोग बढ़ता जा रहा है | अधिकतर युवा अध्यात्म की ओर अपने कदम बढ़ा रहे हैं , परंतु जहां सकारात्मकता होती है नकारात्मकता भी होती है | समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो आध्यात्मिकता के प्रति भ्रामक धारणाएं भी रखता है , ऐसे लोग आध्यात्म एवं आध्यात्मिकता से बचने का प्रयास करते देखे जाते हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" ऐसे लोगों को भी देख रहा हूं जो समाज में भ्रमपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं | आध्यात्म एवं आध्यात्मिकता के विषय ऐसे लोग कहते हुए सुने जाते हैं कि आध्यात्मिकता को जीवन में नहीं उतारा जा सकता है , यदि इसको जीवन में धारण किया जाएगा तो जीवन का सारा आनन्द समाप्त हो जाएगा | कुछ लोगों का मानना है कि अध्यात्म साधारण मनुष्यों का कार्य नहीं है यह तो मात्र गृहत्यागी , सन्यासी , बाबाओं या बड़े - बुजुर्गों के ही काम की चीज है | जबकि यह सत्य नहीं है | ऐसी भ्रामकपूर्ण स्थिति उसी के मन में उत्पन्न होती है जो आध्यात्म के विषय में जानना नहीं चाहते हैं | अध्यात्म वह कला है जो मनुष्य के जीवन को सुरक्षित एवं सुंदर बना सकता है | आध्यात्म के लिए मनुष्य को कहीं जाने की आवश्यकता नहीं वह जहां है वहीं खड़ा रह करके अध्यात्म पथ का पथिक बन सकता है , परंतु आज मनुष्यों में नैतिकता की कमी है इसीलिए उनको अध्यात्म का पथ कठिन लगता है |*
*मनुष्य जहां भी , जिस भी अवस्था में रहे उसी के अनुरूप इस व्यवहारिक आध्यात्म को धारण करते हुए जीवन को अधिक सुंदर एवं अर्थपूर्ण बना सकता है | आवश्यकता है आध्यात्म को समझने की |*