धार्मिक आस्था का मूल अध्यात्म
सामान्य रूप से भारत में छः दर्शन
प्रचलित हैं | इनमें एक वर्ग उन दर्शनों का है जो नास्तिक दर्शन कहे जाते हैं |
इनमें प्रमुख है चार्वाक सिद्धान्त | यह दर्शन केवल प्रत्यक्ष को प्रमाण मानता है
| ईश्वर की सत्ता नहीं मानता और शरीर को ही प्रमुख मानता है | आत्मा की सत्ता को
स्वीकार नहीं करता | बौद्ध दर्शन प्रत्यक्ष और अनुमान दो प्रमाण मानता है | विश्व
के सभी पदार्थों को क्षणिक मानता है | यह भाव जगत के अन्तः स्वरूप और दृश्य स्वरूप
दोनों को सत्य मानता है और यह भी स्वीकार करता है कि जगत की बाह्य और अन्तः सत्ता
दोनों स्वतन्त्र हैं | जैन दर्शन कर्मवाद को प्रमुखता देता है, जगत को अनादि मानता
है | सत् को उत्पत्ति और विनाश से रहित स्वीकार करता है | सम्यक् दर्शन, सम्यक् चरित्र
और सम्यक् ज्ञान ही मोक्ष के साधन माने जाते हैं | ईश्वर की सत्ता और वेद की प्रामाणिकता
को जैन और बौद्ध दोनों ही दर्शन स्वीकार नहीं करते |
दूसरा वर्ग आस्तिक दर्शनों का है |
आस्तिक दर्शन ईश्वर की सत्ता स्वीकार करते हैं और वेद को प्रमाण मानते हैं | इनमें
सर्वप्रथम वैशेषिक दर्शन है | यह ईश्वर और जीव को नित्य तत्व मानता है और वेद को
ईश्वरीय वाणी स्वीकार करता है | न्याय दर्शन प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और शब्द को
प्रमाण मानता है | शरीर और आत्मा को पृथक मानता है | वेद की प्रामाणिकता तथा ईश्वर
के कर्तृत्व को स्वीकार करता है | सांख्य दर्शन प्रकृति और पुरुष दो तत्वों को
स्वीकार करता है | प्रकृति अचेतन है और पुरुष चेतन | प्रकृति और पुरुष के विवेक से
निर्लिप्त स्वरूप का ज्ञान हो जाना ही मोक्ष का हेतु है | वेदों की प्रामाणिकता
सांख्य को स्वीकार है | योग दर्शन सांख्य का ही सहयोगी दर्शन है | मीमाँसा
कर्मकाण्ड का दर्शन है | इसका उद्देश्य ही शास्त्रों पर प्रबल निष्ठा उत्पन्न करके
अधर्म की निवृत्ति तथा धर्म की प्रवृत्ति करना है | इन सबके अतिरिक्त द्वैतवाद और
अद्वैतवाद आदि मान्यताएँ भी हैं | ये सब वैष्णव दर्शन कहे जाते हैं | शैव और
वैष्णव दोनों दर्शन सविशेष ब्रह्म का प्रतिपादन करते हैं |
ये सभी दर्शन एकत्व में अनेकत्व और
अनेकत्व में एकत्व का बोध कराते हैं | उपनिषदों और पुराणों के द्वारा वेदार्थ का
विस्तार करके आचार्यों ने धर्म के व्यावहारिक एवं व्यापक रूप को व्यक्त करने का
प्रयास किया है, और यही धार्मिक आस्था भारतीय जन मानस में व्याप्त है | आज हमारे
समाज के मानस में पुराणों द्वारा प्रतिपादित आस्था व्याप्त है | हमारे जीवन का कोई
क्षेत्र ऐसा नहीं जिस पर धार्मिकता का प्रभाव न हो | जन्म से लेकर मृत्यु तक होने
वाले सोलह संस्कारों से सभी परिचित हैं | हमारे जन्म के समय गाए जाने वाले सोहर,
विवाह के अवसर के घोड़ी बन्ने, पर्वों और उत्सवों पर गए जाने वाले गीत सभी में
धार्मिक आस्था झलकती है | नृत्य, लोक गाथाएँ, लोक संगीत सभी पूर्णतः धार्मिकता से
ओत प्रोत हैं | भारत के किसी भी प्रान्त के निवासी – चाहे वे आदिवासी हों या
जनजातियाँ हों – सभी के मनों में धार्मिक आस्था समान रूप से विद्यमान है | देव
पूजा, श्राद्ध, पितृ पूजा सभी को स्वीकार्य है | चाहे कश्मीर के अमरनाथ हों या गुजरात
के रंगनाथ, उदयपुर के द्वारकाधीश हों, कच्छ के सोमनाथ हों अथवा मध्यप्रदेश के महाकाल,
तमिल के तिरुपति बाला जी हों या केरल के गुरुवयूर हों अथवा तमिलनाडु के पद्मनाभ,
उड़ीसा के जगन्नाथ, बिहार के वैद्यनाथ, बंगाल की महाकाली, नेपाल के पशुपतिनाथ हों
अथवा काशी के विश्वनाथ, अयोध्या के राम हों या मथुरा के कृष्ण – सभी में सारे ही
भारतवासियों की पूर्ण आस्था है | बद्रीनाथ, केदारनाथ, हरिद्वार और रामेश्वर सभी हम
सबके लिये दिव्य तीर्थ हैं | शिव, विष्णु, दुर्गा, सरस्वती, सूर्य, गायत्री सभी के
उपास्य हैं | सन्ध्या उपासना और ब्रह्म विद्या में सभी की आस्था है | शिष्टाचार,
अभिवादन और आशीर्वाद सर्वत्र एक ही रूप में स्वीकृत है | हमारे व्रतोत्सव होली
दिवाली विजयदशमी जन्माष्टमी शिवरात्रि दुर्गा पूजा गणेश पूजा सभी हमारे धार्मिक
आस्था के प्रतीक हैं | स्वर्ग नरक देवलोक प्रेतलोक आदि की मान्यताएँ सिद्ध करती
हैं कि इस धार्मिक आस्था के कारण ही भारत एक है, अखण्ड है | गौ की महत्ता और मातृ
भूमि के प्रति स्वर्ग से भी बढ़कर आदर हमारी धार्मिक आस्था के आधार हैं | आदि
शंकराचार्य, निम्बकाचार्य, बल्लभाचार्य, रामानन्द, चैतन्य, रामदास, तुकाराम,
ज्ञानेश्वर, कबीर, नानक, सूर, तुलसी, मीरा तथा गार्गी मैत्रेयी जैसी विदुषियों आदि
द्वारा स्थापित की हुई धार्मिक आस्था - जो पूर्ण रूप से भारत के समृद्ध दर्शन का
प्रतिनिधित्व करती है - ही आज भारतीय जन मानस में व्याप्त है और सदा व्याप्त रहेगी
| आज जो संघर्ष और विघटनकारी स्थितियाँ हैं वे केवल धार्मिक आस्था के अभाव के कारण
ही हैं | यदि हम अपने इन धार्मिक आदर्शों का पालन करना आरम्भ कर दें तो वर्तमान की
बहुत सी समस्याओं का समाधान हो सकता है | लेकिन इतना भी ध्यान अवश्य रहे कि
धार्मिक आस्था किसी प्रकार के सतही रीति रिवाज़ों के साथ धन और पद का फूहड़ प्रदर्शन
नहीं होती अपितु पूर्ण रूप से अध्यात्मपरक होती है...
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/12/03/spirituality-is-the-base-of-religious-beliefs/