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भाषा

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इक अश्व है निकला सागर किनारेपंख लगा के नभ में उड़ता जाए.हरा हरा सा है रुप हरियाली काकुहरा सा छाया है मतवाला सा.पीठ पे बिठा के परियों को स्वर्ग से आया धरती के दर्शन कराने को.अब तक था कहानियों में सिमटामोतियों से लिपटा,सुंदर बच्चों को लगता.सो

फ्रेंच के साथ फ्रांसीसी जर्मन के साथ जर्मनवासी,जापानी भाषा के साथ जापान निवासी बना गए देश को विकसित और उन्नत.अंग्रेजी सभ्यता के बनकरअनुगामी, विकासशील से विकसित राष्ट्र का सफर अब तक क्या तय कर पाए है हिन्दुस्तानी ?

भाषा है हर संवाद के लिए जरूरी, फिर क्यों बनें अंग्रेजी जरूरी? अपनी निज भाषा, क्यों बनें तमाशा? शब्दों के अर्थ में बंधकर, बोले जो भी भाषा, वहीं है अपनी आशा संवाद के लिए जरूरी है जितनी भाषा, खुद को सुनाने के लिए भी, जरूरी है अपनी भाषा। चहुंओर लड़ाई है, कहीं क्षेत्रवादिता, कहीं भाषावादिता, वाद, विवा

***** कुछ कुछ - किस्त तीसरी ***** *** व्याकरण - भाषा की, जीवन की *** ** मैं और हम *

सादर नमस्कार , न जाने क्योंमेरे ह्रदय में यह सोचकर पीड़ा होती है कि कि आज कल क्यों हम भारतीय अपनी मात्र भाषा को भूलते जा रहे हैं| क्यों हम केवल और केवल अंग्रेजी पर ध्यान दे रहे हैं हम यह

भाषा-व्यक्तित्व का आईना डा. वेद प्रकाश भारद्वाज भाषा एक आईने की तरह होती है। हम जैसी भाषा बोलते हैं या लिखते हैं वैसा ही हमारा व्यक्तित्व होता है जो भाषा के आईने से सबके सामने आ जाता है। इस दृष्टि से यदि हम आज के युवाओं और बच्चों की भाष

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हिंदी हमारी मात्र् भाषा है, लेकिन अन्ग्रेज़ी ना तो मात्र्भाषा है ना ही राष्ट्रभाषा !हमारा देश दुनिया के सम्रदतम देशों में से एक है जहाँलगभग ३०० से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं किन्तु हमारे संविधान ने इनमें से२२ भाषाओं को संरक्षण प्रदान कि

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संस्कृत दिवस : 7 अगस्त#संस्कृत में #1700 धातुएं, #70 प्रत्यय और #80 उपसर्ग हैं, इनके योग से जो शब्द बनते हैं, उनकी #संख्या #27 लाख 20 हजार होती है। यदि दो शब्दों से बने सामासिक शब्दों को जोड़ते हैं तो उनकी संख्या लगभग 769 करोड़ हो जाती है। #संस्कृत #इंडो-यूरोपियन लैंग्वेज

हिन्दी मूलतः फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है- हिन्दी का या हिंद से सम्बन्धित । हिन्दी शब्द की उत्पति सिन्धु-सिंध से हुई है, क्योंकि ईरानी भाषा में ‘स’ को ‘ह’ बोला जाता है । इस प्रकार हिन्दी शब्द वास्तव में सिन्धु शब्द का प्रतिरूप है । कालांतर में हिंद शब्द सम्पूर्ण भारत का पर्याय बनकर उभरा । इस

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संस्कृत किसी भाषा की मां नहीं है. किसानों ने कभी भी संस्कृत में अपनी फसल नहीं बेची. मछुआरों ने संस्कृत में मछली का रेट नही बताया. ग्वालों ने संस्कृत में दूध नहीं बेचा, सैनिक ने कमांडर से इतिहास में कभी भी संस्कृत में बात नहीं की, किसी मां ने बच्चे को संस्कृत में लोरी नहीं सुनाई, खेल के मैदान में कभी

भारतीय राजनीति के रंगमंच मायावती जी लड़ाई अब माँ हैभाषा के विषय में निर्मला जोशी जी के बेहद खूबसूरत शब्द  'माता की ममता यही  , निर्मल गंगा नीर  इसका अर्चन कर गए तुलसी सूर कबीर ' आज भारत की राजनीति ने उस भाषा को जिस स्तर तक गिरा दिया है वह वाकई निंदनीय है। उत्तर प्रदेश   बीजेपी के वाइस प्रेसीडेन्ट दया

क, ख, ग, घ, ङ- कंठव्य कहे गए,क्योंकि इनके उच्चारण के समयध्वनिकंठ से निकलती है।एक बार बोल कर देखिये |च, छ, ज, झ,ञ- तालव्य कहे गए,क्योंकि इनके उच्चारण केसमय जीभतालू से लगती है।एक बार बोल कर देखिये |ट, ठ, ड, ढ , ण- मूर्धन्य कहे गए,क्योंकि इनका उच्चारण जीभ केमूर्धा से लगने पर ही सम्भव है।एक बार बोल कर द

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