
इक अश्व है निकला सागर किनारे
पंख लगा के नभ में उड़ता जाए.
हरा हरा सा है रुप हरियाली का
कुहरा सा छाया है मतवाला सा.
पीठ पे बिठा के परियों को स्वर्ग से आया धरती के दर्शन कराने को.
अब तक था कहानियों में सिमटा
मोतियों से लिपटा,सुंदर बच्चों को लगता.
सोने के पंखों से उड़ता
वायु के वेग से लड़ता, गिरता औऱ संभलता और फिर दूर कहीं उड़ान भरता.
आंखों से ओझिल होता इक अश्व है निकला सागर किनारे.
शिल्पा रोंघे